ये गालियाँ ,पार्क और मिठाई की दुकानें जो कभी बच्चों के शोर एवं किलकारियों से गूँजा करती थी, अब वह सन्नाटे के शोर से गूंज रही हैं I बच्चों की किलकारियां जो चिड़ियों के मधुर संगीत के साथ कानों में मीठा रस घोला करती थी खामोश हैI वे पार्कों के झूले जो कभी अशांत हुआ करते थे आज वह शांति के संगीत प्रस्तुत कर रहे हैं I जिन बच्चों से सभी जगह गुंजायमान हुआ करती थी अब वह बच्चे केवल घरों के आंगन तक सीमित हो गए हैं I बच्चों को घरों में रोकने काम कितना मुश्किल है इसे शायद शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं I वास्तव में यह कितने खामोश बचपन के दिन है Iकोरोना महामारी का प्रभाव सभी लोगों पर पड़ा है लेकिन सबसे प्रतिकूल प्रभाव इन बच्चों के बचपन पर ही पड़ा है I हम सब यह कामना करते हैं कि जल्द से जल्द यह महामारी दूर होगी और बच्चों के बचपन के दिन फिर से गुलजार होंगेI फिर से उन गलियों में गली क्रिकेट, दुकानों पर मिठाइयों ,टॉफियां लेने और पार्कों के झूलों पर बैठने की जिद होगी जो सन्नाटे के शोर को दूर करेगी और हमें फिर से इसमें सहभागिता का अवसर प्राप्त होगा I
इन काली सदियों के सर से ,जब रात का आंचल ढलकेगा I
जब दुख के बादल पिघलेंगे ,जब सुख का सागर झलकेगा I
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नगमे गाएगी I
वो सुबह कभी तो आएगी , वो सुबह कभी तो आएगी II
" साहिर लुधियानवी जी"