मां दुर्गा एनर्जी एंपावरमेंट
1.मां दुर्गा
2.शेर सवारी क्यों
3.मां के रूप और मानव चक्र
4.चैत्र नवरात्रि क्यों मनाते हैं
5.मां के रूप विस्तार से
6.कथा
7. SUMMARY TABLE
8.ध्यान
9. अपनी प्रैक्टिस कैसे करें
10. दूसरों के लिए कैसे करे
माँ दुर्गा
मां दुर्गा की शक्ति को सभी जानते हैं .
आदि काल से मनुष्य का स्वभाव शक्ति पाने का रहा है .चाहे सांसारिक कार्यों में हो या कोई सिद्धि प्राप्त करनी हो. और शक्ति -साधना का रूप है मां दुर्गा.
दुर्गा से हम शक्ति ले सकते हैं, जो नवदुर्गा में है जो 9 तरह की शक्तियां हमें प्रदान करती है. मां को देवी ,देवता, किन्नर सभी अलग-अलग रूपों में पूजते हैं.
मां को बाघ पर सवार एक निडर रूप में दर्शाया गया है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा ब्रह्मा (निर्माता) विष्णु (रक्षक) शिव (विनाशक )की संयुक्त ऊर्जा से बनी है .
जब महिषासुर से युद्ध करना था,तो एक ऐसी शक्ति की आवश्यकता थी जो ना इंसानी रूप में हो और ना ही भगवान रूप में. क्योंकि उस उसे वरदान था कि वह ना तो इंसान के हाथों मारा जाएगा न हीं भगवान के हाथों, इसलिए ब्रह्मा विष्णु महेश के हाथों से भी वह नहीं मारा जा सका .
तब स्त्री ऊर्जा की उत्पत्ति की आवश्यकता थी तब देवी दुर्गा को सभी देवताओं द्वारा विभिन्न हथियार दिए गए.
हथियार
शंख - जिसकी ध्वनि भगवान की उपस्थिति दर्शाती है
धनुष और तीर
एक ही हाथ में - यह दर्शाता है - हम नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा दोनों को संतुलित कर सकते हैं. और दोनों ही ऊर्जाओं की जीवन में हमें संतुलन में आवश्यकता भी है.
कमल - आधा खिला कमल. कीचड़ में खिलता है - यह दर्शाता है कि वासना और लालच भरी दुनिया में रहते हुए भी आध्यात्मिक गुणवत्ता को खिलाया जा सकता है.
सुदर्शन चक्र - .
यह वह चक्र है जो किसी काम के लिए निकलता है ,तो उसको पूरा करके ही वापस लौटता है. यह हमें शिक्षा देता है कि हमें दृढ़ निश्चय होना चाहिए.
जो काम हम ठान लेते हैं वह हमें पूरा करना चाहिए.
तलवार - यह दर्शाता है कि इंसान के पास अपनी नकारात्मकता भेदने या खत्म करने का शस्त्र है - जो वह जन्म के साथ ही अपने साथ लाया है.
त्रिशूल
त्रिशूल के 3 प्वाइंट्स होते हैं या नोके होती है - जो यह बताती है कि हमारे जीवन में तीन महत्वपूर्ण तत्व है अति सक्रियता निष्क्रियता या पवित्रता संतुलन है.
आशीर्वाद में उठा हाथ - यह दर्शाता है कि पूरे ब्रह्मांड में जितने भी सजीव और निर्जीव जीव है सभी की यह मां है . उनकी रचयिता है.
मां की ज्योत - ज्ञान का प्रतीक है. कोई कभी भी पूर्ण नहीं होता है . उसे हमेशा ही ज्ञान की जरूरत होती है. कोई कितना भी ज्ञानी क्यों न हो उसे आगे ज्ञान की आवश्यकता होती ही है.
2 .शेर सवारी क्यों
मां पार्वती शिवजी से नाराज होकर एक बार तपस्या कर रही थी .तभी एक भयानक शेर वहां आया और मां के पास ही बैठा . और उसने उठने के इंतजार करने लगा. लेकिन मां की तपस्या कई साल चली वह शेर भी उस तपस्या में लीन हो गया. तब शिव जी आए और उन्होंने इस तपस्या को समाप्त किया था. मां ने उस शेर से कहा कि तुमने इस तपस्या में मेरे साथ दिया है ,इसलिए आज से तुम मेरा वाहन हो. जिस प्रकार शेर वाहन
3. मां के रूप और मानव चक्र
ग्रंथों के अनुसार एक बार जब कार्तिक और इंद्र के बीच मतभेद होता है तब कार्तिक के हाथों इंद्र का वध हो जाता है .
तब कार्तिक को स्मृति लुप्त का श्राप मिलता है .तब मां पार्वती जी वह श्राप अपने ऊपर ले लेती हैं ,और वह पुनर्जन्म लेकर मछुआरों के घर जन्म लेती है. जब मां पार्वती का वापस जाने का समय आता है तब शिवजी उनकी स्मृति वापस लाने के लिए उनके रूपों की कथा उन्हें
सुनाते हैं .
हर रूप की कथा सुना कर उनके उस रूप को एक चक्र पर स्थापित करते हैं .और उस चक्र को खोलते हैं. तब से मां का हर रूप उनके चक्रों पर वास करता है. उनके चक्रों को खोल कर उन्हें वापस लाते हैं.
चक्र
हमारे शरीर में कई नड़ियां हैं -जो कई जगहों पर मिलती है. जहां यह मिलती है -वहां यह एक भवर बनाती है. यह चक्र कहलाते हैं.
जैसे त्रिवेणी संगम में 3 नदियां मिलती है - वह भंवर बन जाता है. वैसे ही हमारे शरीर में भंवर बनता है, जिन्हें चक्र कहा जाता है.
जिस प्रकार भवर के ऊपर का मुंह खुला होता है और नीचे तिकोना होता है, वैसे ही इन चक्रों का मुख सामने शरीर के अंगों में यह खुला होता है और पीछे रीढ़ की हड्डी में इनका कोना होता है .
जिस प्रकार हमारी कार बिना संतुलित पहिए के सही नहीं चल सकती उसी प्रकार हमारा जीवन भी इन चक्रों को संतुलित किए बिना संतुलित नहीं चल सकता.
वैसे हमारे शरीर में 260 से भी ज्यादा चक्र हैं लेकिन उनमें 114 प्रमुख हैं.
उनमें से सात चक्र सबसे ज्यादा प्रमुख है.
इन सात चक्रों से हमारे शरीर के सारे भाग जुड़े हैं .यह सात चक्र स्थूल शरीर में विभिन्न अंत स्रावी sravi ग्रंथियों से जुड़े हुए हैं. यह ग्रंथियां शरीर के अलग-अलग विषयों के साथ जुड़ी है.
शक्ति ब्रह्मांड से चक्रों में चक्रों से ग्रंथि में ग्रंथि से शरीर में शरीर के सभी avvayo में इस प्रकार यदि यह चक्र संतुलित है तो पूरा शरीर संतुलित है.
यह सात चक्र है .
ऊपर के तीन चक्र आध्यात्मिक होते हैं और नीचे के तीन चक्र सांसारिक होते हैं .
बीच में अनाहत चक्र है जो दोनों दुनिया को समझता है.
4.नवरात्रि क्यों मनाते हैं
प्रत्येक वर्ष नवरात्रि 4 बार आती है.
पहली नवरात्रि चैत्र में
क्षेत्र में दूसरी आसान/ आषाढ़ में
तीसरी अश्विन में और
चौथी माघ में
दो नवरात्रि गुप्त रूप से गुप्त साधना के लिए होती है . तंत्र साधना करने वाले लोग गुप्त रूप से साधना करते हैं.
आसान और माघ वाली नवरात्रि गुप्त साधना के लिए होती है. मां का आवाहन करने वाले गुप्त रूप से आसान और माघ में मां की साधना करते हैं और सिद्धियां प्राप्त करते हैं ,मंत्रों और तंत्रों के द्वारा.
चैत्र नवरात्रि में मां ने महिषासुर का वध किया था. नव रातों के युद्ध के बाद.
राम जी ने रावण को मारने के पहले 9 दिन की उपासना की थी - 9 दिन और 9/नौ रातों तक .तब से यह नवरात्रि मनाई जाती है.
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का महत्व मां के नौ रूप ऊर्जा से भरे हैं.
किसी भी चीज को पाने के लिए या तो हम उसे हराकर पा सकते हैं, या प्रेम से पा सकते हैं. मां को हरा तो कोई भी ना सका इसलिए हम मां के इन रूपों से प्रेम करते हैं ,भक्ति भावना के साथ समर्पण करते हैं. मां से उर्जा मांगते हैं शक्ति मांगते हैं. नवरात्रि एक ऐसा त्यौहार है जब मां स्वयं धरती पर होती है . ऊर्जा बहुत ही सकारात्मक होती है, शक्तिमान होती है.
98% लोग जो मांस मदिरा के बिना रह भी नहीं सकते वह भी इन दिनों में इस चीज का त्याग कर देते हैं और नवरात्रि की भक्ति भावना में डूब जाते हैं.
इतनी मान्यता है नवरात्रि की. एक तो सकारात्मक ऊर्जा होती है और दूसरी बात कि लोग अपनी नकारात्मक ऊर्जा को छोड़ देते हैं.
नवरात्रि में ऊर्जा बहुत ही सकारात्मक होती है अतः ध्यान करने का बहुत महत्व और फायदे हैं.
नवरात्रि की एक विशेषता है कि दो ऋतु का मिलन होता है और ब्रह्मांड से विशेष ऊर्जा मिलती है.
5.मां के रूप विस्तार से
1. शैल-पुत्री -शैलपुत्री (पर्वत की बेटी )
वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहला रूप है । पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी। उस जन्म में उनका नाम सती-भवानी था. वह भगवान शिव की पत्नी है/ थी । एक बार राजा दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी। उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था ,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी | दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है।
इसलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा शैल मतलब पर्वतराज.
2.ब्रह्मचारिणी रूप
जब मां शैलपुत्री रूप में जन्मी तो उन्हें शिवजी को पाने की इच्छा जागृत हुई ,क्योंकि वह अपना पिछला जन्म तो भूल चुकी थी.
तब मां ने शिवजी को पाने के लिए घोर तपस्या की थी . अतः इस रूप को ब्रह्मचारिणी रूप कहते हैं.
ब्रह्म मतलब तपस्या और चारिणी मतलब करने वाली
ब्रह्मचारिणी जी के इस रूप के दर्शन करने से लालच अहंकार जैसी नकारात्मक ऊर्जा हमारे जीवन से खत्म हो जाती है और दृढ़ निश्चय की भावना बढ़ती है .
यह रूप विद्यार्थियों और अध्यात्म में आगे बढ़ने की इच्छा रखने वालों की मदद करता है.
3.चंद्रघंटा रूप
मां के इस रूप में मां को माथे पर चांद घंटी रूप में है. इस रूप की दो कथा मशहूर है .
नंबर 1
जब ब्रह्मचारिणी रूप में मां ने शिवजी को पाया तब उनका विवाह शिव जी से हुआ.
जब शिव जी विवाह करने आए तो वह अपने उसी वैरागी रूप में आए और बारात में भी सब अलग अलग तरह से लोग आए .तब मां नैनावती और पिता हिमावत चिंतित हो गए. नैना वती जी मूर्छित हो गई तब मां पार्वती ने शिव जी से कहा आज इस रूप में क्यों आए हो? तब शिव जी ने कहा तुमने मुझे इस रूप में ही स्वीकार किया था.
मां ने कहा कि मुझे आप स्वीकार है परंतु माता पिता को चिंता होती है आपको आज इस रूप का बदलाव करना होगा. तब विष्णु जी ने शिव जी का रूप बदला और सुंदर सा नाम दिया .तब लक्ष्मी जी ने कहा कि शिव जी सुंदरेश्वर है और पार्वती जी चंद्रघंटा है.
कभी कभी जिस तरह वैरागी शिव जी ने संसार के लिए और पार्वती जी के लिए रूप बदला - उससे हमें शिक्षा मिलती है कि हमें कभी-कभी दूसरों के लिए भी परिवर्तित होना होता है .
दूसरी कथा - जब महिषासुर और इंद्र के बीच युद्ध हुआ तब देवताओं की ऊर्जा शक्ति से चंद्रघंटा उदित हुई और सब ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र दिया और वह युद्ध के लिए तैयार हुई.
4. कुष्मांडा रूप - इनको अष्टभुजा देवी भी कहते हैं .
निवास स्थान सूर्य.
कु - छोटा सा
शम मतलब तेज
अंडा मतलब बीज
छोटा सा तेज या बीज जिसने पूरे ब्रह्मांड की रचना की है. शिव जी को शून्य का नाम दिया गया. मां के रूप और शिव जी को मिला कर लिए ब्रह्मांड पूर्ण होता है. जब कुछ भी नहीं था तब मां ने ब्रह्मांड की रचना की थी. यही आदि शक्ति है इन्हीं से ब्रह्मांड की ऊर्जा आती है.
5. स्कंदमाता
तारकासुर राक्षस को वरदान मिला था कि वह शिव पार्वती के पुत्र द्वारा ही मारा जाएगा .तब शिव जी और पार्वती जी ने मिलकर अपनी उर्जा से दोनों ने एक ऊर्जा बनाई और उस ऊर्जा के बॉल को लेकर वह राक्षस - तारकासुर भाग् गया .उसे मारने के लिए उस ऊर्जा के बॉल को बचाने के लिए अग्नि और गंगा ने उसे लिया उसे बचाने के लिए, पर उसकी शक्ति इतनी ज्यादा थी कि दोनों मिलकर उसको संभाल नहीं पाए.
शिव और पार्वती की उर्जा थी - अतः वह इसको संभाल नहीं पाए.
वह बच्चा जो था वह ऊर्जा रूप में था वह उनके हाथ से गिर गया और चार भागों में विभाजित हो गया. वहां पर कृतिका रहती थी.
उन्होंने (कृतिकाए)उन चार बच्चों को ले लिया. जब मां पार्वती को पता चला कि वह बच्चे वहां है तो वह लेने गई पर उन्होंने (कृतिकाए )ने बच्चे को देने से मना कर दिया.
कृतिका वह बोलने लगी कि यह हमारे बच्चे हैं. तब शिवजी ने पार्वती जी को समझाया कि इसका पैदा होने का उद्देश्य बहुत बड़ा है. कृतिकाए ऐसे स्थान पर हैं जहां कोई नकारात्मक ऊर्जा नहीं है. तो इसे यहीं पर सुरक्षित रहने दिया जाए .जब तक यह बड़ा होता है तब मां पार्वती ने उन चार बच्चों को मिलाकर एक बच्चा बनाया. इसलिए इस बच्चे के चार मुंह है और कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद है.
6.कात्यायनी 18 भुजाएं
कात्य ऋषि की पुत्री कात्यायनी पैदा हुई . वह मां के भक्त थे उन्हें इच्छा जागृत हुई कि मां उनके घर में बेटी के रूप में जन्म ले. तब उन्होंने तपस्या की. तब मां ने वरदान दिया. जब वह उनके घर जन्मी तब उनका नाम कात्यायनी पड़ा.
दूसरी कथा
महिषासुर का वध करने के लिए मां को हथियारों की जरूरत थी. तब ब्रह्मा विष्णु महेश ने मां को सभी अस्त्र -शस्त्र दिए और और मां ने महिषासुर का वध किया. अतः मां के इस रूप को कात्यायनी रूप कहते हैं .
7. कालरात्रि
भक्तों के लिए मां काली है और जो हमारे अंदर नकारात्मक चीजें हैं उनके लिए महाकाली है. यानी मां के यह रूप हमारे अंदर से नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करती है .जब मां पार्वती पर शुंभ निशुंभ मोहित हो गए तो उन्हें पाना चाहते थे. तब शिव बाबा ने मा पार्वती जी को उनके महाकाली होने का आभास दिलाया. उनके सामने उनके इस रूप से परिचय करवाया. शुंभ निशुंभ का वध करने में बहुत से राक्षस मरे, परंतु एक रक्तबीज था - जिस का वध कर पाना मुश्किल हो रहा था, क्योंकि उनका एक बूंद
जमीन पर गिरते ही एक और रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था. तब मां ने उस रक्त को पीना शुरू कर दिया. इस तरह मां ने उसके शरीर का सारा रक्त जमीन पर गिरने ही नहीं दिया और पूरा रक्त पीने के बाद वह समाप्त हो गया था.
मां ने रखतबीज के खून पीने के साथ उसकी [उस राक्षस की] सारी नकारात्मक शक्ति मां के अंदर प्रवेश कर गई थी, और मां अपने आप को कंट्रोल नहीं कर पा रही थी. तब शिव जी को उनके चरणों में लेटना पड़ा था, उन्हें शांत करने के लिए. इस रात में बहुत कुछ हुआ था और यह रात बहुत लंबी चली थी ,इसलिए इसे कालरात्रि रूप का नाम दिया गया.
8. महागौरी
महागौरी रूप मां पार्वती एक बार शिव जी से नाराज होकर ध्यान में चली गई थी. और कई साल बीत गए तब शिव बाबा उन्हें खोजते हुए वहां आए . और उन्होंने देखा ना मां पूरी रूप से काली पड़ गई है साधना करते करते. वैसे तू साधना करने से रंग साफ हो जाता है पर मां की चमड़ी ऊपर से पूरी तरह से काली पड़ गई थी. शिव बाबा ने उन्हें अपना एहसास दिलाया और उन्हें उठाया और गंगाजल छींटा उनके ऊपर और उन्हें पवित्र किया, तब मां का तेजस्वी रूप उभरकर सामने आया.
तब उनको बाबा ने कहा तुम गोरी हो मेरी महागौरी - महादेव की महागौरी .तब से मां का नाम महागौरी पड़ गया.
9. सिद्धिदात्री –
जब मां ने कुष्मांडा रूप में विश्व की रचना की थी. तब मां ने ब्रह्मा जी को संसार आगे चलाने के लिए जिम्मेदारी दी. ब्रह्मा जी को संसार चलाने में दिक्कत आई तब उन्होंने कहा की संसार चलाने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों की आवश्यकता है. तब मां ने शिव जी के आधे रूप को स्त्री में परिवर्तित कर दिया और उनकी दुविधा को दूर किया. इसलिए शिव बाबा को अर्धनारेश्वर के रूप में जाना जाता है. सभी मनुष्यों में यह नियम YING-YANG एनर्जी होती है. इस रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है. क्योंकि उन्होंने इस रूप में सिद्धि दी थी शिव बाबा को.
चक्रास
1. मूलाधार चक्र रूट चक्र –
• यह स्पाइन के बेस में अथवा रीड की हड्डी के बेस में स्थित है.
• इसका रंग लाल है.
• यह आपको आत्मविश्वास या कॉन्फिडेंस, ट्रस्ट या विश्वास दिलाता है.
• यह आपके आत्मसम्मान से संबंधित है .
• यही वह स्थान है जहां से हमारे मूल इंस्टिंक्ट्स जागृत होती है .
• करो या मरो की जो भावना है वह इसी चक्र से जागृत होती है.
2.स्वाधिष्ठान या सक्रल चक्र –
यह हमारी नाभि के नीचे होता है.
इसका रंग नारंगी होता है .
यह हमारी इंद्रियों के आकर्षण से और किसी चीज को जन्म देने से संबंधित होता है.
गुस्सा डर नफरत यह सारे इमोशंस और बाकी इमोशंस भी इसी चक्र से जागृत होते हैं .
3.मणिपुर या सोलर प्लेक्सस चक्र
• यह छाती और नाभि के बीच में जिसको ब्रेस्टबोन के नीचे बोलते हैं वहां स्थित होता है .
• इसका रंग चटक पीला होता है.
• यह हमारे लोअर बैक या फिर कमर के निचले हिस्से को ,हमारी पाचन शक्ति को हमारे लिवर को, हमारे गॉलब्लैडर को अफेक्ट करता है.
• दृढ़ इच्छाशक्ति अपने आप को स्वीकार करना -जिस प्रकार हम हैं वैसे खुद को स्वीकार करना .
• आपका विल पावर
• यह सारी भावनाएं और शक्तियां इसी चक्र जागृत होती है.
• यहीं से हमारी अंदर जो सहज वृत्ति भावना - instinctual emotion
• जन्म लेता है और यहां से एक बड़ा रूप धारण करके निकलता है.
4. अना हत्या हॉट चक्र
यह हमारी छाती के बीच में बीच होता है.
इसका रंग हरा है .
भावनाएं जो यहां उत्पत्ति होती है - वह है प्यार, किसी को माफी देना किसी के प्रति उदारता रखना, इमोशनल सिक्योरिटी, कंपैशन यह सारी दिल से जुड़ी सारी भावनाएं इसी चक्र में उदित होती है
5.विशुद्ध चक्र
• यह हमारे कंठ में लोकेटेड होता है.
• इसका रंग नीला है.
• यह हमें बातचीत करने की क्षमता, अपने आप को किसी और के सामने एक्सप्रेस करना, अपनी बात को रखना अपनी क्रिएटिविटी को रखना, अपने आप को दर्शाना अपनी इंडिविजुअलिटी को
• अपनी इंडिविजुअलिटी को दर्शाना - यह सारी क्षमता जो है - हमारे विशुद्ध चक्र में उत्पत्ति होती है .
6. आज्ञा चक्र या थर्ड आई चक्र
यह हमारे दोनों भागों के बीच में स्थित होता है .
इसका रंग जामुनी या इंडिगो होता है .
हमारा मस्तिष्क हमारी जो सेंस ऑर्गन है ,एक्शन ऑर्गन है, वह सारी इसी चक्र से ताल्लुक रखती है.
आध्यात्मिक जागरूकता ,समय का बोध, जिसे हम स्पिरिचुअलिटी अवेयरनेस एंड टाइम भी कहते हैं - यह सारी भावनाएं इसी चक्र में उत्पत्ति होती है.
7.सहस्त्र आया फिर क्रॉउन चक्र
यह सर की चोटी में होता है
इसका रंग बैंगनी हो अथवा सुनहरा होता है.
यह हमारी कॉन्शसनेस से प्योर कॉन्शसनेस से ताल्लुक रखता है , जिसे हम जागरूकता कहते हैं.
इसे हम वह स्थान कहते हैं जो सीधा हमें सुप्रीम सेंटर हमारे जन्मदाता के साथ हमें जोड़ता है, हमारा संबंध बनाता है.
यह चक्र हमें हमारे भगवान से और हमें खुद से जोड़ता है
8. स्टार चक्र सोल स्टार चक्र
यह चक्र हमारे भौतिक शरीर के ऊपर होता है और करीबन हमारे सर से एक हाथ की दूरी पर होता है.
करीबन 6 इंच ऊपर होता है.
कभी-कभी यह 2 फीट तक भी होता है कुछ लोगों में ही 2 फीट तक ऊपर भी होता है.
आप इस चक्र के माध्यम से मां दुर्गा से जुड़ सकते हैं.
9. Spirit स्टार चक्र
• यह हमारा नवा चक्र है और करीब 12 से 18 इंच या फिर 30 से 45 सेंटीमीटर हमारे सर के ऊपर होता है और यह हमें
• हमारे आध्यात्मिक कनेक्शन से जोड़ता है और यूनिवर्स / ब्रम्हांड
• से बातें करना ,एंजल से बातें करना, spirit गाइड से बातें करना और अगर लाइट beings से बातें करना है - यह इन सभी से संबंध रखता है.
• इस चक्र के माध्यम से हम अपने हायर सेल्फ से अपने क्रिएटर से सुप्रीम क्रिएटर से जुड़ सकते हैं.
मां के रूप दिन भोग दिन मंत्र- चक्र
मां शैलपुत्री
प्रथम दिन Ghee चंद्र
मंत्र- ओम देवी शैलपुत्री नमः
चक्र रूट/ मूलाधार
मां ब्रह्मचारिणी
दूसरा दिन
चीनी मंगल
मंत्र- ओम ब्रह्मचारणी नमः
चक्र स्वाधिष्ठान/
sacral
मां चंद्रघंटा
तीसरा दिन दूध
शुक्र
मंत्र- ओम देवी
चंद्रघंटाए नमः
चक्र मणिपुर
मां कुष्मांडा
चौथा दिन मालपुआ सूर्य
मंत्र- ओम देवी कुष्मांडाए नमः
चक्र अनाहत
मां स्कंदमाता
पांचवा दिन केले बुध
मंत्र- ओम देवी स्कंदमाता नमः
चक्र विशुद्धि
मां कात्यायनी छठा दिन शहद बृहस्पति
मंत्र- ओम देवी कात्यायनी नमः
चक्र आज्ञा
मां कालरात्रि
सातवां दिन गुड शनि
मंत्र- ओम देवी कालरात्रि नमः
चक्र सहस्रार/ crown
मां महागौरी आठवां दिन नारियल राहु
मंत्र- ओम देवी महागौरी नमः
चक्र सोल स्टार/solstar
मां सिद्धिदात्री नौवां दिन
विभिन्न प्रकार केफल आदि केतु
मंत्र- ओम देवी सिद्धिदात्री नमः
चक्र स्पिरिट स्टार/spirit star
मां दुर्गा एनर्जी एंपावरमेंट की प्रैक्टिस कैसे करनी है:
पहला तरीका:
पहले आराम से बैठ जाए .
दूसरा अपना औरा क्लीन करें.
जैसे भी आप करते हैं - यदि आपको कोई तरीका नहीं आता है -तो ॐ Om को अपने चारों तरफ घूमते हुए देखे और आपकी औरा (aura)क्लीन करते हुए महसूस करें.
बिल्कुल उसी तरह से जिस तरह से नजर उतारी जाती है .
तो आपका औरा क्लीन aura clean हो जाएगा.
अब तीसरा स्टेप है कि मां को अपने मन में बुलाए.
एफर्मेशन दे या अपने शब्दों में मां का आवाहन करके मां को अपने तरीके से बुलाए - मेरे मन में आए मेरे मन मंदिर में आए आपका स्वागत है.
मंत्र जाप करें :
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः”
अगर आप कोई और जाप करना चाहे तो वह भी कर सकते हैं .
फिर आप रूट चक्र पर ध्यान लगाएं - और ओम शैलपुत्री नमः का 11 बार जाप करें. 1 मिनट रुक जाए उस चक्र पर.
फिर ऐसे ही बाकी चक्रों पर जाएं .
1- एक मिनट रुक जाए उस चक्र पर, उस चक्र से संबंधित मंत्र दोहराएं .
जिस चक्र पर आप जा रहे हैं उस चक्र का मंत्र 11 बार दोहराएं पूरी श्रद्धा और भावना के साथ और इस प्रक्रिया को पूरा करें.
फिर बाकी जगहों पर ऐसे ही एक एक करके जाए और उस चक्र का जाप करें.
उस माता के रूप का ध्यान करें और महसूस करें कि माता ने आपका चक्र पूरी तरह से संतुलित कर दिया है .
हर चक्र पर जाकर आपको 11 बार जाप करना है- देवी के उसी रूप का.
जब आपको लगे कि आपकी ध्यान साधना और चक्र बैलेंस हो गया है तो आप मां का धन्यवाद करें दिल से और उठ जाए.
अब दूसरों के लिए कैसे करना है:
सेम प्रोसेस - बिल्कुल इसी तरह से आपको दूसरों के लिए भी हीलिंग करनी है.
दूसरों को बुलाना है अपने सामने और फिर यही प्रोसेस करना है.
दूसरा तरीका:
कितनी बार टाइम कम होता है और हम चाहते हैं कि हमारी प्रैक्टिस नहीं छूटे. उस समय आप इस तरीके को अपना सकते हैं. हालांकि यह मेन तरीका नहीं है, पर माता की शक्ति आई और उसने मुझे गाइड किया की मेरे भक्तों की प्रैक्टिस छुटने नहीं चाहिए जिस तरह हम माता से जुड़ना चाहते हैं माता भी अपने भक्तों के बीच रहना चाहती हैं. इसलिए मैं यह तरीका भी आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूं.
पर आपसे अनुरोध है कि आप मेन तरीके को ही प्रैक्टिस के लिए अपनी जिंदगी में अपनाएं.
मां दुर्गा की प्रैक्टिस कैसे करनी है
सबसे पहले माता का जाप करेंगे
सबसे पहले कंफर्टेबल बैठ जाए
अपनी breathe पर कंसंट्रेट करें
10 बार सांस अंदर ले और बाहर छोड़ दे और पूरी तरह से रिलैक्स महसूस करें/ शांत महसूस करें.
अब अपने मन में मां को महसूस करें.
उसके बाद आपको अपने सामने माता के सभी रूपों को देखना है
रूट चक्र में शैलपुत्री
ऐसे ही बात बाकी चक्रों में भी माता के सभी रूपों को ध्यान करें और उनसे जुड़े…
सबसे पहले शैलपुत्री रूप रूप चतरा में आते हुए महसूस करें और महसूस करें कि आपका रूट चक्र संतुलित हो रहा है पूरी तरह से
1 मिनट रुक कर फील करें रूट चतरा पर और फिर ऊपर वाली सभी चक्रों पर धीरे धीरे जाए एक-एक करके 1 मिनट रुके और महसूस करें कि वह चतरा पूरी तरह से संतुलित हो गया है ऐसे करते करते आप सभी चक्रों पर ध्यान करें और सभी को संतुलित करें
यह तो थी अपनी प्रैक्टिस अब दूसरों को हीलिंग कैसे देनी है:
जिस तरह से आपने अपना किया - उसी तरह दूसरों का भी करना है .
जिसके लिए भी हीलिंग कर रहे हैं उसको अपने सामने महसूस करें और हीलिंग दे.
मां के नौ रूपों के साथ कनेक्ट हो और एनर्जी/ हीलिंग भेजें.
जब किसी को भी मां दुर्गा की हीलिंग दे रहे हैं –
तब मां के सभी रूपों के साथ कनेक्ट हो
और सामने वाले को मां दुर्गा की हीलिंग भेजें .
ऐसा सोचे और महसूस करें कि सामने वाले का सभी चक्र संतुलित हो गया है .
सामान्य हो गया ,सब ठीक हो गया है.
Note:
अगर आप रिकी चैनल है तो Hon Sha Ze Sho Nen सिंबल अपने क्लाइंट के ऊपर बना सकते हैं और हीलिंग दे सकते हैं.
अगर आपको चक्रास की विस्तृत किताब /चक्रास या रेकी और किसी विषय पर किताब चाहिए इंग्लिश या हिंदी में तो दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकते हैं.
डिटेल नॉलेज ऑफ चक्रास के लिए नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क करिए
ये किताब मेरे रेकी गुरु को सरपित है.उनके कहने पर लिखी है मैंने.
धनयवाद.