हसरत जयपुरी ने कहा था कि ,’खुशी फुलझड़ी की तरह होती है थोड़ी देर के लिए चमक बिखेरती है फिर बुझ जाती है और उदासी अगरबत्ती की तरह होती है देर तक जलती है और बुझने के बाद भी कमरे में महक बिखरी रहती है।‘ इस कहानी की नायिका श्रेया का जीवन भी कुछ ऐसा ही था।सब कुछ था उसके पास,अच्छा वकालत का कैरियर,उच्च मध्यम वर्गीय परिवार,दोस्त जो अब थोड़े दूर चले गए थे काम की वजह से पर फोन पे अक्सर बात होती और वीडियो कॉल भी आते अक्सर,फिर भी वो उदास रहती थी।वो अपने आपको इस चकाचौंध में अकेला पाती थी। जैसे- जैसे वो जीवन की सीढ़ियां चढ़ रही थी , उसका अकेलापन और उसकी उदासी और बढ़ रही थी। पर हमेशा से ऐसा नहीं था, श्रेया बचपन में ऐसी नही थी,कम बोलती थी , पर अपने भाई बहनों से खूब बात करती थी I मिलनसार और खुश रहने वाली लड़कियों थी।पर धीरे-धीरे उदासी उसे अपने शिकंजे में लेती गई ।वो दोस्तों के साथ रहती तो हंसती -बोलती पर अंदर ही अकेलापन उसे घेरे रहता।काम के वक्त भी,वह पूरा डूब के काम करती तो थी,पर जैसे ही वो खाली होती वो उदास रहती। उसे किसी सहेली ने थेरेपी की सलाह भी दी थी। फिर क्या होता है जानने के लिए कहानी अंत तक अवश्य पढ़ें |
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