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ये माएँ

31 मई 2016

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ये माएं सच मुच पागल होती है 

जब दुखी होती हैं तब भी 

जब खुश होती हैं तब भी 

आंसुओं से रोती  हैं 

ये माएं सच मुच  पागल होती हैं 

पालती  हैं कोख में अपने नौ माह 

जीवन एक नया देती हैं 

उसकी हर ख़ुशी के लिए अपना दिन रात एक कर देती हैं 

भले ही औलाद भूल जाये माँ को 

माँ हर साँस में याद उसको करती है 

ये माएं सचमुच पागल होती है 

खुद गीले में सो जाती हैं 

मगर संतान को सूखा बिस्तर देती हैं 

हर मोड़ पर हर कदम पर 

थामे उसकी उंगली चलती हैं 

उसकी हर हरकत को ,

आँखों में ही भांप लेती हैं 

फिर भी दिल दुखाये औलाद गर 

आंसूओं का समंदर मन में पी  लेती हैं 

ये माएं सचमुच पागल होती हैं 

चाहतीं हैं  दिल से हो दुनिया में  नाम अपने अंश का' 

अपने हर सुख का बलिदान वो देती हैं 

खुद भूखी सो जाये मगर 

औलाद को न भूखा सोने देती हैं 

फिर भी न जाने कैसे होते हैं वो 

जो कभी न समझते माँ के मन को 

झेल कर अनगिनत दुःख को वो 

अपनी औलाद के लिए दुआ वो करती है 

परिवार की बिखरी कड़ियों को वो 

मनका मनका वो पिरोती है 

ये माएं सचमुच पागल होती हैं 

आखिर माँ  , " माँ "  जो होती है 

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रचनाएँ
mukhraiyashalini
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मन में अनेकों विचार समय समय पर उठते रहते हैं ,वही विचार कविता के रूप में प्रस्फुटित होते हैं
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ये माएँ

31 मई 2016
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ये माएं सच मुच पागल होती है जब दुखी होती हैं तब भी जब खुश होती हैं तब भी आंसुओं से रोती  हैं ये माएं सच मुच  पागल होती हैं पालती  हैं कोख में अपने नौ माह जीवन एक नया देती हैं उसकी हर ख़ुशी के लिए अपना दिन रात एक कर देती हैं भले ही औलाद भूल जाये माँ को माँ हर साँस में याद उसको करती है ये माएं सचमुच पा

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बचपन

1 जून 2016
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