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mukhraiyashalini

Shalini Mukhraiya

2 अध्याय
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मन में अनेकों विचार समय समय पर उठते रहते हैं ,वही विचार कविता के रूप में प्रस्फुटित होते हैं  

mukhraiyashalini

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पुस्तक के भाग

1

ये माएँ

31 मई 2016
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ये माएं सच मुच पागल होती है जब दुखी होती हैं तब भी जब खुश होती हैं तब भी आंसुओं से रोती  हैं ये माएं सच मुच  पागल होती हैं पालती  हैं कोख में अपने नौ माह जीवन एक नया देती हैं उसकी हर ख़ुशी के लिए अपना दिन रात एक कर देती हैं भले ही औलाद भूल जाये माँ को माँ हर साँस में याद उसको करती है ये माएं सचमुच पा

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बचपन

1 जून 2016
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बचपन वो मुझको वापस बुलाता मेरा गांव वो पीपल की  छइयां वो इमली की फलियां वो आमों से लदी पेड़ों की डालियां वो ताऊ की चौपाल वो गऊएं चराते गोपाल वो दिन ढलते सब का नहर पर मिलना वो गिल्ली और डंडा ,वो कंचे की गोटियां वो गुड़िया की शादी वो बजे की धुन पर नाचते बाराती वो अम्मा के हाथों की रसोई हर निवाले में जैस

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