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महान क्रांतिकारी मां नीरा आर्या

30 सितम्बर 2021

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पराधीन भारत पर जब ,गोरों का अत्याचार बढ़ा
हर सांस कैद में उनके थी,लाचार हुआ हर शख्स खड़ा
बहशी अंग्रेजों के आगे हर बहिन यहां बेबस में थी
शैतानी और हवस उन दुष्टों की रग रग में थी
बहिन बेटियों का सम्मान गोरों का खेल खिलौना था
भारतीय अहिंसावादी थे बस इसी बात का रोना था
सुभाष चन्द्र नेताजी ने आजाद हिन्द का गठन किया
फौज बनाकर ताकतवर हिंदोस्तान आगमन किया
उन्नीस सौ दो में, वसुधा पर एक देवी ने अवतार लिया
भारत मां की आज़ादी का, उसने सपना साकार किया
यूपी के जिले बागपत में जन्मी नीरा बलिदानी थी
गोरों की जासूसी करती एक गुमनाम कहानी थी
वो दुर्गा थी, वो लक्ष्मी थी,वो काली रूप में आई थी
रानी झांसी रेजिमेंट की सबसे खूंखार सिपाही थी
आज़ादी पाने को आतुर, थी मौत की कोई फ़िक्र नहीं
बलिदानी नीरा आर्या का इतिहास में कोई जिक्र नहीं
नीरा के भाई बसंत भी, गुमनाम कहानी किस्सा थे
निस्वार्थ प्रेम राष्ट्र से था, वो आजादी का हिस्सा थे
नीरा के समक्ष प्रगति के, उस वक्त बहुत से अवसर थे
प्राणधार श्रीकांत जयरंजन, अंग्रेजों के अफसर थे
पर राष्ट्रभक्ति नीरा मां की,हर भोग विलास पे भारी थी
नेताजी की जान की खातिर, अपनी मांग उजाड़ी थी
गोरी चमड़ी के दरिंदों ने,उस वीरांगना को पकड़ लिया
ले जाकर काल कोठरी में, फिर जंजीरों से जकड़ लिया
नेताजी का पता पूंछकर,जोर जोर से डांट रहे थे
घास काटने की कैंची से, मां का स्तन काट रहे थे
माता ने पीड़ा सहन करी, दुख रही थी जब बोटी-बोटी
अब कैसे ब्यथा ब्यान करू, प्रदीप नमन कोटि-कोटि
घास फूस की बनी झोपड़ी, ही उनका आशियाना था
झोपड़ी तोड़ दी वृद्धा की,अब कोई नहीं ठिकाना था
फूल बेचकर किया गुजारा,ये कैसी लाचारी थी
निस्वार्थ भाव से सेवा की,वो हम सबकी महतारी थी
छियानवे की उम्र में देवी ने, वसुधा से नाता तोड़ लिया
संघर्षमयी उस माता ने, था स्वर्ग से नाता जोड़ लिया।

जय हिन्द जय भारत।

स्वरचित एवं मौलिक रचना।

प्रदीप शर्मा ✍️✍️✍️

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Shivansh Shukla

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बेहद शानदार रचना इतिहास की इस कहानी को आपने बहुत ही शानदार तरीके से काव्य रुप में सजोया है सर मेरी व्यक्तिगत पंसदीदा पत्तियाँ -- बहिन बेटियों का सम्मान गोरो का खेल खिलौना था भारतीय अहिंसावादी थे बस इस बात का रोना था 👏👏👏👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏🙏

1 अक्टूबर 2021

प्रदीप शर्मा

प्रदीप शर्मा

1 अक्टूबर 2021

आपका आत्मिक आभार सर जी 🙏

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