महिला और बदलता समाज
(गगनदीप पारीक)
आज समाज व उसका दृष्टिकोण बहुत ही तीव्र गति से बदलता जा रहा है ये वो ही समाज है जो महिला को अबला कहता आया आज वो ही समाज है जो इसे समानता का दर्जा दे रहा है। त्याग की इस मूर्त कि ये प्रगति वास्तव में नकारात्मक दृष्टिकोण के व्यक्तियों को चुभती है लेकिन ये कदाचित अतिशयोक्ति नही होगा कि जो महिलाए कर सकती है वो पुरुष नही कर सकता हालांकि ये भी पूर्णत सत्य है कि महिलाओ का पुरुष वर्ग से ज्यादा महिला खुद ने ही शोषण किया है आज जरा से भी विस्तृत दृष्टिकोण से देखे तो हर गली चोरोहे से कोई न कोई कामकाजी महिला जो पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलती मिल जाएगी लेकिन जो ग्रहस्थ सम्भाल रही है वो पुरुष वर्ग से कही आगे ही प्रतीत होती है क्योंकि मसालों से लेकर फांसलो तक का भार ये दिन भर ढोती है लेकिन बढ़ा प्रश्न ये खड़ा होता है कि पुरुष और महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा एवं विरोधाभाष शुरू किसने किया जबकि दोनों स्तम्भ एक दूसरे के बिना अधूरे है। अगर हम अपनी माँ ,बहन ,पत्नी ,बेटी का समपर्ण ओर त्याग देखे तो ये प्रतिस्पर्धा स्वत: समाप्त हो जाती है लेकिन महिलाओ को बराबरी का दर्जा भले सरकारों के प्रयास से मिल रहा हो पर धरातल पर इसे लागू करने के लिए स्वयं महिला वर्ग को इसके साथ खड़ा होना होगा हमने प्रायः देखा है दहेज जैसे अत्याचारों में सास का नाम पति से पहले आता है अगर वास्तव में महिलाओं के इस समाज में पुरुष वर्ग के बराबर का दर्जा पाना है तो उसे समाज की बनाई बेडियां तोड़ कर स्वंय को असहाय समझना छोड़ना होगा बेड़ियों से ये तात्पर्य नही है कि वो समाज व परिवार के संस्कार को तोड़कर नग्नता परोसे लेकिन उसे मानसिक रूप से खुद को मजबूत बनाना होगा उसे शुरुआत खुद से करनी होगी भले छोटी सी शुरुआत से जब किसी बस में वो सफर कर रही है तो उसे पुरुष के भांति ही किसी असहाय या वृद्ध के लिए सीट छोड़नी भले भर्तियों में प्रथम काउंसलिग के आरक्षण को छोडकर ऐसे अनेक छोटे छोटे काम है जो महिला के मस्तिष्क में ये घर कर चुके है कि वो महिला है उसे ये छूट मिलनी चाहिए जिस दिन वो इस छूट शब्द को छोड़कर समान दर्जा प्राप्त करने के लिए समान शर्तो की पालना करना शुरू कर देंगी वे दिन महिला समाज के लिए ऐतिहासिक दिन होगा ये मेरे विचार है आपका सहमत होना ना होना आवश्यक नही है । मैं महिलाओं को किसी भी दृष्टिकोण से पुरुष वर्ग से कमजोर नही आंकता ओर मेरे आंकने या ना आंकने का सवाल ही खड़ा नही होता ये किसी भी दृष्टिकोण से कमजोर है भी नही लेकिन इसे खुद की मानसिकता में बदलाव लाना होगा आज हजारों उदाहरण हमारे सामने है जो महिलाओं ने किया वो पुरुष नही कर सके पर इस को चिरतार्थ करने हेतु हर उस ग्रहस्थ महिला को भी स्वयं में मस्तिष्क में पनप रहे विचारों को बदलना होगा और दृष्टिकोण को विस्तृत करना होगा दूरस्थ सोच को बढ़ावा देना होगा एवं छुटपुट घटनाओं से विचलित होना छोड़ना होगा।
गगनदीप पारीक
लेखक
श्री गंगानगर