सरकार के अनेक प्रयासों एवं शिक्षा के बलभुते पर आज हमारा समाज उस जगह खड़ा है जंहा बालक बालिका में कोई भेदभाव नही किया जा रहा है हालांकि वर्षों तक हमारा समाज बालिका को कमजोर समझता आया है और अभी ये कह पाना मुश्किल है कि अभी ये मानसिकता ने लोग नही है कि वो बालिका को कमजोर आंकते हो लेकिन त्याग की मूर्त रही नारी ने सदैव खुद को साबित किया है लेकिन उसे साबित करना पड़ रहा ये बेहद दुखद है जब प्रकृति ने एक जैसा मनाया फिर ये भेदभाव मस्तिष्क में उपजा ही कहा से ? ये कहना अतिस्योक्ति होगा कि बालक बालिका में भेदभाव या कमजोर आंकने का काम सिर्फ पुरुष वर्ग ने किया इसमें वास्तविक स्थिति में अगर जाए तो सबसे ज्यादा महिला वर्ग इस को चिरतार्थ कर रही है भले खुद को कमजोर संमझ कर या दिखा कर लेकिन वास्तव में ये स्थिति पैदा भी इसी कारण से हुई जंहा महिला वर्ग को छूट या किसी आरक्षण की बात आती है तो ये खुद को कमजोर की कड़ी में सदैव आगे ले आती है जो कि इस भेदभाव करने वाले समाज को ताने देने मे नींव की ईंट का काम करती है ये कदापि सम्भव नही है जो पुरुष को जन्म देती है वो इससे किसी भी मुकाबले में पीछे हो लेकिन इस हेतु सबसे पहले महिला वर्ग को कमजोर मानना बन्द करना होगा त्याग और करुणा की साक्षात मूर्त के प्रति अगर क्षणिक भी आपके मन मे ये सन्देह आता है कि ये बालिका है इससे ये सब नही हो पायेगा तो अभी समाज को इस भेदभाव की बेड़ियों को तोड़ने में ओर समय लगेगा और इसमें सबसे ज्यादा योगदान महिलाओं को करना पड़ेगा पुरुष और समाज की मानसिकता बदलते फिर बिल्कुल भी समय नही लगेगा। त्याग के जितने भी उदाहरण आज तक सुनने को मिले उसमें अधिकाशतः महिलाओं के रहे है और इसका जीता जागता उदाहरण हमारी मां हमारे सामने है आपके मन मे कभी ये भेदभाव क्षणिक ही पैदा हो तो अपनी माँ , पत्नी ,बहन ,बेटी के त्याग और कार्यकुशलता का मनन करना ये भेदभाव ज्यादा समय नही टिक पायेगा । सरकारें अपना काम कर रही है इससे दिनोदिन अनेक परिवर्तन भी देखने को मिल रहे है लेकिन जब तक बालिका को सुरक्षित वातावरण नही दिया जाएगा तब तक ये महज एक लेख बनकर ही रह जायेगा सुरक्षित वातावरण न दे पाना सरकारो की सबसे बड़ी नाकामी है सरकारें चाहे तो सब सम्भव है इन्हें भी अपनी वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर एक मंच से सकारात्मक काम करने होंगे तभी ये लेख बालिका के प्रति समाज का मनोभाव बदल सकेगा क्योकि उस समय सबसे अधिक पीड़ा होती है जब ये सुनने को मिलता है वो बालिका है उससे नही हो पायेगा हमे इसे सुधारना होगा समय अब उचित है महज सरकारें बालिका के लिए भयमुक्त वातावरण का निर्माण करें एव महिला समाज खुद को कमजोर समझना बन्द करे पुरुष वर्ग की मानसिकता में बदलाव खुद ब खुद आ जायेगा