वो सुबह कितनी हसीन होगी
वो शाम कितनी रंगीन होगी
जब मैं आँगन में तेरे
नन्हीं सी कली बन खिली होगी
कोई रानी तो कोई रौशनी कहकर
कोई बेटी तो कोई बाबु कहकर
और जाने क्या - क्या कहकर
सब प्यार से बुलाते होंगे,
पापा, पर अब क्या हो गया
आपका प्यार क्यों खो गया
आप ना जाने क्यों गुमशुम है
क्योंकि मैं अब बङी हो गई हूँ?
इस महँगे बेदर्द शहर में
कुण्ठित समाज के कहर से
आप खुद को तन्हा ना समझो
और हाँ, मुझको अबला ना समझो,
क्या मैं शादी के लिए बनी हूँ
क्या मैं सिर्फ एक कमी हूँ
पापा अब आँखें खोल दो
एकबार मुझे भी बेटा बोल दो,
मैं तो रोज जलाई जा रही हूँ
कभी-कभी खुद से जल जा रही हूँ
पर आप इसको समझते क्यों नहीं
मेरी भावना को पढते क्यों नहीं
आखिर कब तक मैं बिकती रहूँगी?
पापा अगर मैं चली जाऊँगी
तो फिर कभी नहीं आऊंगी
मैं ही पेङ और टहनी हूँ
आप ना भूलों की मैं जननी हूँ.