"मन की गहराई"
दुनिया के लिए मैं एक हंसता मुस्कुराता हुआ चेहरा हूं
किसी ने ना कोशिश की जाने की, कि मैं अंदर कितना गहरा हूं
समझ मेरी विकसित ना हुई ,या सामने वाला ही मुझे समझ न पाया
यह समझने समझाने के खेल में ,मैं कभी ना समझा पाया ना समझ पाया
अपने मुकद्दर की तलाश में ही तो ,दिन भर गोते लगाता रहता हूं
जहां से शुरू करता लगता मानो ,आकर वहीं ठहर जाता हूं
पक्षपात की खिंचाई में ,मैं यह कभी ना समझ पाया
मैंने अपनों को ठुकराया या,अपनों ने ही मुझे ठुकराया
कहने को तो सब मेरे अपने हैं ,वे परवाह भी करते हैं
पर जैसा मैं हूं वैसा मुझे, अपनाने से फिर क्यों कतरते हैं
निराशाओं के इस भयानक समुन्द्र से अब उबरना चाहता हूं
दूसरों के लिए तो हर वारी जीता आया,अब खुद के लिए जीना चाहता हूं
"छाया"