सर्व प्रथम महिला, जिसने कलम पुस्तक उठाई
उस दौर, हर ठोर अपमान वो पाई
यातना उनके संकल्प चीर ना पाई
आज नारी उनकी बदौलत शिक्षित हो पाई
क्रांति लाने वाली क्रांतिवीर थी सावित्रीबाई।।
खोखली परंपराएं तोड़कर आगे जो आई
कष्ट भुला अपना ,समाज में नई अलख जगाई
मार्ग अवरुद्ध करने हेतु, गई डराई धमकाई
धर्म के अंधविश्वासी ठेकेदारों ने, कर दी कीचड़ से पुताई
समाज की यातनाओं का जत्था,कदम उनके रोक ना पाई
साहस रग रग में भरकर ,बेखौफ चल रही थी सावित्रीबाई।।
अंधेरों को तोड़ती हुई ,चिरागों के लिए जगह बनाई
रूढ़िवादियों को अपनी, सत्ता डोलती नजर आईं
यूं तो धीमी सी लौ थी,जब धरती पर वह आई
ज्योतिबा सावित्रीबाई का मिलन, नई क्रांति लेकर आई
मिलन के परिणामत: ,धीमी लौ से धधकती ज्वाला बन गई सावित्रीबाई।।
छाया🙂