नींव को खोखला बना रहा, यह आधारशिला डिगा रहा
हुनर को यह दबा रहा ,हर एक भ्रष्टाचार को आगे बढ़ा रहा ।
काबिलियत को यह किनारे करके, तबके से चुन लेता है
कला दबी रह जाती है भ्रष्टाचार अपने धागे बुन लेता है।
पहचान तुम्हारी ऊंचे तक हो ,हस्ती तुम्हारी खूब बढ़ेगी अगर यही तुम सामान्य हो तो ,तुम्हारी काबिलियत दबी की दबी रहेगी।
यह गंदा भ्रष्टाचार का फैला जाल चारों तरफ है
ईमान बेच चंद पैसों की खातिर , खींच जाता इसकी तरफ है।
समझ में उनको ये नहीं आता कि खैरात में मिली नाम से, नाम कमाया नहीं जा सकता
आवाज दबी वो 1 दिन गूंज बनेगी ,उस हस्ती को कभी मिटाया नहीं जा सकता।
रुपयों की खातिर तू यूं ना डिगा ईमान अपना
भ्रष्टाचार ले डूबेगा, विकसित भारत का सपना।
"छाया"