!!मां!!
कभी पेट में मारी होगी लात तो कभी गोदी में भी
सताया होगा
मां तुमनें तो हर दर्द सहकर
अपनें हाथों से गोदी में खिलाया होगा..
जब भी लगती होगी भूख तो तुमने अपने खाने का हर कतरा अपने स्तन से
तो पिलाया होगा ,,
अपने खून के हर बूंद से सृजन तो किया था मां फिर
भी नौ माह के बाद जन्म
लेकर हमनें कितना तड़पाया होगा न मां ,,
देखकर सूखी होंठे तुम भी तड़पी होगी छोड़कर थाली अपनी दूध तो पिलाया होगा न" मां..
पल पल जागकर तुमने मां हमको थपकी देकर सुलाया होगा..
जब भी निकले होंगे आंसू
अपनें आंचल में सुकाया
होगा..
अपने हर दर्द छुपाकर हंसना तो सिखाया होगा
न" मां
तारों की गिनती भी पड़
जाए कम इतनी बार सीने
से लगाया होगा न मां..
लड़खाते होंगे जब कदम
उठना चलना भी सिखाया होगा मां ,,
काश! होती कोई ऐसी मशीन तो वो हर पल अब भी जी लेते हम कभी न हो ये सिलसिला खत्म ऐसा
कर लेते हम..
मां तुम्हारे इन एहसानों को
कभी कोई चुका न पाएगा
हज़ार जन्म ले करके भी
मां जैसा कोई बन न पायेगा..
स्वरचित स्वैच्छिक मौलिक
मुंबई (महाराष्ट्र)
सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा