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जहां चाह वहां राह ये एक
कहावत ही नही है ,,अपितु
ये मनुष्य की इच्छा शक्ति और मेहनत पर र्निभर करती है
वो अपनी विषम विपरीत
परिस्थियों में भी अपनी
मंजिल या अपनी राह खोज ले व संघर्षों कठिनाईयों
को पार करते हुए जो अपना रास्ता चुन लेता या बना लेता हो
किसी अन्य का दास न बनकर अपना मार्ग स्वंय बनाता हो जो दूसरों के लिए भी प्रेरणादायक हो
वहीं पर जहां चाह वहां राह
सही और सटीक प्रसंग बैठता है!!
*सरिता मिश्रा पाठक"काव्यांशा