!!जीवनसंगिनी!!
तुम साथ न होती तो मेरा
जीवन सफल न होता
तुम साथ न देती तो मेरा
जीवन सरल न होता
तुम्हारा साथ ऐसे है जैसे
नदी की धारा और किनारा तुमने साथ दिया
ऐसे जैसे गगन में चमके चंदा और सितारा
तुमने मेरे हर कठिन पल को सरल बना दिया
तुम मेरी सखा भी बन गयी
जब भी भटका मन मेरा तो तुम मेरी पथप्रदर्शक बन गयी
तुम मेरी जीवनसंगिनी ही नही मेरे हर राह की दिशा
बन गयी..
तुम मेरी धड़कन हो तुम हो मेरी हर स्वांस
जब भी हुआ उदास मैं तुम मेरा मनोबल बन गयी
तुम साथ न होती तो मेरा क्या होता
तुम मेरा साथ न देती तो मेरा क्या?होता
तुम साथ न होती तो मेरा क्या होता
तुम मेरा साथ न देती तो मेरा क्या?होता
सोचता हूं जब भी मन में ये
कि तुम न होती तो क्या? मेरे जीवन में कोई विकास होता..
तुम न होती तो मेरे जीवन की राहों में कोई
प्रकाश न होता धवल चांदनी बन
चमकती रहती हो मेरी जिंदगी में
क्या लिखूं अल्फ़ाज़ कम
हैं क्या कहूं सच में जज्बात
कम हैं बस इतना ही कहता हूं
सच में तुम सच्ची जीवन
संगिनी हो सच में तुम अच्छी जीवनसंगिनी हो
तुम ही तो मेरी जिंदगी हो..
स्वरचित स्वैच्छिक मौलिक
*सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा (मुंबई महाराष्ट्र)