करके भरोसा तुमपे बहुत
पछतायी हूं रोई हूं बहुत
पाकर धोखा तुमसे कई बार ,,
किये थे वादे तुमने नहीं तोड़ोगे भरोसा कभी ,,
मुकर गये हो तोड़ कर भरोसा कई बार ,,
नही फितरत है मेरी विश्वास
तोड़ने की तो क्यूं होता है मेरे संग ऐसा कई बार ,,
तोड़ कर भरोसा तुम अपना दामन बचाते हो खुद को सही साबित करने में अनगिनत तरीके
अपनाते हो !!✍️📓
मुंबई महाराष्ट्र
स्वरचित (स्वैच्छिक) मौलिक
सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा