दसकंध मुकुट से मरीचि बिखेरती, वो मार्तण्ड सम मंदोदरी
लंका को सदैव ही आँचल में रखती, वो मातृ स्वरुप मंदोदरी
अप्रतिम सुन्दर दसकंधर प्राणप्रिया, वो दुःख हरण मंदोदरी
समस्त अप्सराओं का सौंदर्य समेटे, वो देव सुकन्या मंदोदरी
मयदानव पुत्री, चिर कुमारी, दशानन प्रेम में लिप्त मंदोदरी
व्याकुल हो क्षण क्षण को कर जोड़ सुहाग मांगती मंदोदरी
श्रीराम की सेना विकराल देख पल पल चिंतित थी मंदोदरी
बाहर दम भरती पर अंतर से प्रतिपल भयभीत थी मंदोदरी