उजाले से युक्त दिन धीरे धीरे
सुरम्य संध्या का रूप ले रही है,
हर एक पग, हर एक कदम,
बढ़ रहा है आहिस्ता आहिस्ता
किसी अलक्षित शक्ति के आवेश में,
खींचा चला आ रहा है,
दशास्व्मेध की ओर......
हर एक नाविक,
अपनी अपनी नौका को लेकर,
घाट से कुछ दूरी पर,
एक निश्चित कतार में आकर,
स्तब्ध होता जा रहा है।
अगर कुछ हलचल मचा रही है,
तो वो है अविरल और सदैव प्रवाहमान,
सिर्फ माँ गंगा की लहरें,
जो कि शांत होते वातावरण में,
अपनी निश्चित कल कल की ध्वनि से
एक संगीत घोल रही है......
सब एक बिंदु की ओर,
धीरे धीरे रेंगता चला आ रहा है।
जैसे कि कोई चुम्बकीय शक्ति,
छोटे छोटे लौह के कणों को,
अपनी ओर आकर्षित कर रहा हो।
दिन भर की सारी चहलकदमी,
सूर्य के किरणों के साथ साथ
ढलती जा रही है.....
पर बनारस भी क्या कभी विश्राम करता है?
यहाँ हर घटना एक ही लय में,
अपने समस्त घटनाओं को,
सजीव कर घटित होता रहता है.....
मैं कुछ गलत कह गया,
यहाँ घटनाओं का सिर्फ होना होता है,
यहाँ कोई भी घटनाएं घटित नहीं होती।
यहाँ सब कुछ वर्तमान में है,
भूत में कुछ भी नहीं.....
विश्वनाथ आज भी हैं,
हर भक्त के आस्था में।
लहरतारा में कबीर आज भी जिवीत हैं,
हर फक्कड़ों के मुख से निकलते,
कबीर के दोहें, हर पल कराती है,
उनके होने का एहसास।
कोई भी सच्चा साधक,
बालाजी के मंदिर के ड्योढ़ी पर,
आज भी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान
के सूर को पल पल सुन सकता है,
उसे अपने ह्रदय में महसूस कर सकता है।
बाबा तुलसी की रामचरित मानस की पंक्तियाँ,
जो आज भी हर राम भक्त के मुख पर,
अविरल गति से फिर रही है,
क्या वे कभी उन्हें इतिहास बनने दे सकती है?
इसलिए यह कहना सर्वथा उचित है,
कि यहाँ कुछ कल नहीं हुआ था,
यहाँ सब आज की बात है........
सब किनारे आ पहुँचे हैं घाट के,
संखनाद होता है और फिर
पल भर की मौन और स्तब्धता टूटती है।
अनेकों स्वर निकलते हैं,
और सब के स्वर एक स्वर बनकर,
दिशाओं को गुंजायमान करने लगते हैं।
हर स्वर समर्पित होता हैं माँ गंगा को।
शायद माँ गंगा भी उस स्वर को सुनने,
नश्वर हो उठती है वहाँ,
क्योंकि शायद इन्द्रियों का सुख,
नश्वरता में ही सम्भव है......
मैं फिर गलत कह गया,
जब यहाँ न ही भूत है और न ही भविष्य,
तो यह नश्वरता कैसी?
यहाँ सब अविनाशी ही है,
अपने त्रिशूल पर विराजित किए,
बनारस के बाबा विश्वनाथ अविनाशी हैं,
दरवार में विराजमान बाबा संकट मोचन अविनाशी हैं,
माँ गंगा की बहती अविरल धारा अविनाशी है,
बिस्मिल्लाह खान के शहनाई के सुर अविनाशी हैं,
रामभक्ति को समर्पित तुलसी के छंद अविनाशी हैं,
पल पल परंपराओं और परिपाटियों से लड़ती,
कबीर के दोहे अविनाशी हैं,
बार बार माँ गंगा से उठते अविरल लहरों को,
विश्राम देने वाली वो घाट अविनाशी है,
और न जाने कितने और अविनाशी हैं यहाँ।
तो इतने अविनाशी तत्त्वों को अपने में
धारण करने वाली काशी में नश्वरता कैसी?......
मैं एक महत्वपूर्ण पक्ष भूल गया,
जो कि दशास्व्मेध की ओर नहीं जा रहा,
वो जैसा था वैसा ही है,
और शायद वैसा ही रहेगा।
वो है अनंत साधक अघोरियों की टोली,
अंतर से शक्ति के उपासक,
एकांत में शैव और सभा में वैष्णव,
समय उसपर प्रभाव डाले,
शायद वह शक्ति नहीं है समय के पास........
अद्धभुत है यह शहर बनारस,
क्या नहीं है यहाँ,
यही सोचते सोचते संध्या रात्री का रूप ले लेती है,
आरती खत्म होती है, और फिर से
सबके स्वर एक साथ काशी के हर तत्वों के
जयघोष को समर्पित होता है,
और वह भीड़ धीरे धीरे विस्थापित हो,
हर घाट को फिर से जागृत करने को चल देती है......
यहाँ सोता नहीं है कोई,
सिर्फ दो पल शरीर को वीराम देता है,
यहाँ की घाट सदैव जागृत ही रहती है,
मंदिर का पट कुछ पल को बंद होता है,
शायद निद्रा पर सदैव के लिए
विजय प्राप्त कर चुका है यह बनारस।
और क्यों न पाए, आखिर मोक्षदायिनी है यह,
और मोक्ष तो समस्त इन्द्रियों पर
विजय से ही मिलती है......
अगर यहाँ कबीर की निर्गुण भक्ति है,
तो तुलसी की सगुन भक्ति भी।
अगर यहाँ लोग बाबा विश्वनाथ के सानिध्य में,
भक्तिमय जीवन चाहते हैं,
तो वहीं वो मणिकर्णिका के घाट पर,
अपनी मोक्षदायिनी अंत्योष्टि भी।
हर एक विपरीतार्थक पहलुओं को अपने अंदर
धारण किए अनंतकाल से ही आनन्दकानन बने
साधना में लीन है यह बनारस.....
आदित्य कुमार ठाकुर वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में पीएचडी कर रहे हैं। उनका शोध क्षेत्र सिविल और माइनिंग इंजीनियरिंग से संबंधित है। उन्हें गणित में शोध कार्य के लिए GUJCOST विशेष मान्यता पुरस्कार और IRIS रजत पदक से भी सम्मानित किया गया है। नए प्रकार के जल मीटर का आविष्कार करने के लिए उन्होंने S.I.H ग्रैंड पुरस्कार जीता। मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मुजफ्फरपुर से बी.टेक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स) धनबाद से एम.टेक की अपनी मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि के साथ, उन्हें हिंदी साहित्य और अन्य सामाजिक विज्ञान विषयों में गहरी रुचि है। उनकी नवीनतम पुस्तक "गेटवे ऑफ सोशियोलॉजिकल थॉट" है। उन्होंने अपनी पहली किताब 'अस्मिता' लिखी है, जो उनकी कविताओं का संकलन है। उन्होंने कई प्रसिद्ध संस्थानों और कवि सम्मेलनों में अपनी कविता का पाठ किया है। उनका लेखन अक्सर मानव व्यवहार, भावनाओं और प्रकृति के साथ व्यक्तियों के संबंध की जटिलताओं पर प्रकाश डालता है।