जीवन के रास्ते से गुजरते हुए मैं कईयों को देख द्रवीभूत हो जाता हूँ जिसके सपने सजते-सजते नील गगन के तारों की तरह बिखर गए जिसे संजोया जाना या पुनः एकत्रित करना असंभव सा महसूस होने लगा। जिसने जीवन के तमाम सुखों को उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कलेजे पर पत्थर रख हँसते-हँसते बहिष्कार किया, जिसने बिना कमली के पूस की रात काटी, और बिना खड़ाऊ के जेठ की कड़ी धूप वाली दोपहर। इतनी कष्ट और पीड़ा बस उस लक्ष्य को पाने के लिए जो आज उसके हाथों में आते आते छूमंतर हो गयी। मैं पूछता हूँ ऐसे साध्य का क्या लाभ जो जीवन में दुःख के सिवा कुछ और दिया ही नहीं।
साधना या साध्य में शायद कोई कमी नहीं थी, और न ही कम था लगन और परिश्रम, पर जिस तत्व का अभाव था वह था साधन। मानव कभी-कभी ऐसे साध्य में जुट कर अपने समस्त सुखों का त्याग कर देता है, जिसका साधन ही उपलब्ध न हो। अगर साधन की कोई आवश्यकता न होती तो शायद तुलसीदास जी आज वैज्ञानिक होते, न्यूटन अर्थशास्त्री और चाणक्य लेखक। पर नहीं, क्योंकि साधना में साधन का महत्वपूर्ण स्थान है। दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। हम उन दोनों तत्वों को अलग कर कदापि नहीं देख सकते। जो व्यक्ति साधन के बिना साध्य करता है, वह सर्वदा व्यर्थ ही प्रतीत होता है। साधन का तात्पर्य सिर्फ भौतिकवादी वस्तुओं से ही नहीं है, परंतु मानव में पनपती तमाम गुणों से भी है जिसे तराशने से ही लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है और वह लक्ष्य मानव के लिए सुखी भी साबित होता है। अगर ऐसा न होता तो शायद आज जीवन के तमाम सुख और उल्लास देश के पूंजीपतियों के पास ही कैद रहता। पर ऐसा नहीं है। लोहे को घिसकर उसपर कुछ समय के लिए चमक तो लाया जा सकता है, पर उसे सोना नही कहा जा सकता। साधन के बिना साध्य करना उसी प्रकार है, जिस प्रकार कोयले को तराशना। कोयले को अगर जिंदगी भर भी तराशा जाए तो भी वह हिरे का स्वरूप नहीं ले सकता। इस प्रकार का साध्य व्यर्थ ही जाता है क्योंकि कोयले में वह आंतरिक गुण मौजूद ही नहीं जो उसे हीरे का स्वरूप प्रदान कर सके।
हमें अपने हर एक कदम उठाने से पहले अपने साधन पर विचार कर लेना चाहिए। अगर गंगू तेली राजा भोज को चुनौती दे तो वह व्यर्थ ही मारा जाएगा। मैं मान सकता हूँ कि उसका साध्य सही हो पर साधन नहीं है।
आज के बच्चों पर मानसिक दबाब बहुत है। उसे बाह्य साधन तो दिया जाता है और वह साध्य भी करता है पर वह प्रतिभा की बीज उसके अंदर रहती ही नहीं। बिना बीज के पानी बहाने से क्या फायदा? प्रतिभा व कला बच्चों का सबसे बड़ा साधन है जो उसके उद्देश्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। जिस प्रकार कोयले को तरशना व्यर्थ है उसी प्रकार ऐसे गुणों को भी तराशना व्यर्थ है जिसका बीज अंतर में पनपता ही नहीं हो। उस गुणों को निखारने के दौरान दी गई सकारात्मक दवाव भी यह उसके मानसिक तनाव का कारण बनता है और किसी भी लक्ष्य को सहृदय प्राप्त करने में मानसिक तनाव बहुत बड़ा बाधक है। अगर वह लक्ष्य को प्राप्त कर भी लेता है तो वह उस मुकाम का अपने जीवन में स्वागत नहीं कर सकता और न ही उसे स्वीकार कर सकता।
अगर जिंदगी में बड़े ओहदों को प्राप्त कर खुशी से जीना है तो अपने प्रतिभा को निखारिये। नई प्रतिभा को बनाने की कोशिश न कीजिए, उस शक्तियों को जागृत करने की कोशिश कीजिए जो आपके अंदर विद्यमान हो। प्रतिभाओं की खोज होती है, आविष्कार नहीं। और आपके अंतर में उन प्रतिभाओं को खोज कर उसे निखारने वाला ही आपका सच्चा मार्गदर्शक है, सच्चा गुरु है। नई प्रतिभा को बनाकर उसे निखारना जीवन के साथ दाव पेच खेलना है, जिसे हारने के बाद वह टूट जाता है और शायद उसे पुनः खड़े होने की शक्ति भी नहीं रहती।
मैं आशा करता हूँ कि आप अपने बच्चों के प्रतिभा को निखारने में अपना योगदान दीजिएगा। ताकि हिंदुस्तान का हर एक बच्चा अपना स्वर्णिम पंख फैलाकर नील गगन के अंतहीन सफर की ओर अग्रसर रहे और नए मंजिलों की प्राप्ति को आत्मसमर्पित रहे।
:- आदित्य कुमार ठाकुर
आदित्य कुमार ठाकुर वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में पीएचडी कर रहे हैं। उनका शोध क्षेत्र सिविल और माइनिंग इंजीनियरिंग से संबंधित है। उन्हें गणित में शोध कार्य के लिए GUJCOST विशेष मान्यता पुरस्कार और IRIS रजत पदक से भी सम्मानित किया गया है। नए प्रकार के जल मीटर का आविष्कार करने के लिए उन्होंने S.I.H ग्रैंड पुरस्कार जीता। मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मुजफ्फरपुर से बी.टेक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स) धनबाद से एम.टेक की अपनी मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि के साथ, उन्हें हिंदी साहित्य और अन्य सामाजिक विज्ञान विषयों में गहरी रुचि है। उनकी नवीनतम पुस्तक "गेटवे ऑफ सोशियोलॉजिकल थॉट" है। उन्होंने अपनी पहली किताब 'अस्मिता' लिखी है, जो उनकी कविताओं का संकलन है। उन्होंने कई प्रसिद्ध संस्थानों और कवि सम्मेलनों में अपनी कविता का पाठ किया है। उनका लेखन अक्सर मानव व्यवहार, भावनाओं और प्रकृति के साथ व्यक्तियों के संबंध की जटिलताओं पर प्रकाश डालता है।