जाते समय आज़ाद करने की बात कह गया था
पर एक अलक्षित डोर थी एहसासों की,
इतनी आसानी से कैसे टूटती...
बँधी थी मैं एक परोक्ष बंधन से जो उससे...
उसके पीछे पीछे मैं भी उसके घर पहुँची,
वहाँ पड़ी हुई थी वो जूठी प्याली,
जिसमे महीनों पहले मैंने उसके साथ चाय पी थी
और उसके बगल में ही मेरे रूमाल पड़े थे,
महीनों बाद भी लग रहा था
अभी ही छोड़कर कोई गया हो।
इतने करीने से संभाल कर रखा था,
सारी यादों को,
देखकर लग रहा था समय वही रुक गया हो,
आज भी हमारी मोहब्बत के दास्तान सुना रहा हो...
दोनों एक दूसरे को देखें,
नजरें मिलाने की ताकत किसी में न थी,
गुनाहों के हक़दार भी दोनों थें,
क्योंकि मिलकर दोनों ने की थी साजिश
अपराजिता प्रेम के कत्ल की...
आदित्य कुमार ठाकुर वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में पीएचडी कर रहे हैं। उनका शोध क्षेत्र सिविल और माइनिंग इंजीनियरिंग से संबंधित है। उन्हें गणित में शोध कार्य के लिए GUJCOST विशेष मान्यता पुरस्कार और IRIS रजत पदक से भी सम्मानित किया गया है। नए प्रकार के जल मीटर का आविष्कार करने के लिए उन्होंने S.I.H ग्रैंड पुरस्कार जीता। मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मुजफ्फरपुर से बी.टेक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स) धनबाद से एम.टेक की अपनी मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि के साथ, उन्हें हिंदी साहित्य और अन्य सामाजिक विज्ञान विषयों में गहरी रुचि है। उनकी नवीनतम पुस्तक "गेटवे ऑफ सोशियोलॉजिकल थॉट" है। उन्होंने अपनी पहली किताब 'अस्मिता' लिखी है, जो उनकी कविताओं का संकलन है। उन्होंने कई प्रसिद्ध संस्थानों और कवि सम्मेलनों में अपनी कविता का पाठ किया है। उनका लेखन अक्सर मानव व्यवहार, भावनाओं और प्रकृति के साथ व्यक्तियों के संबंध की जटिलताओं पर प्रकाश डालता है।