हर नकाब में खूबसूरत चेहरा नहीं होता,बदसूरती को भी उसमे छिपाया जाता है, हर हाथ दुआ देने के लिए नहीं उठता, जान लेने को भी हाथ उठाया जाता है. सच को जानना यूँ आसान नहीं आलिम,कुछ झूठों को भी सच बताया जाता है. कत्ल ना जाने कितने
मासूमों पर वहशियों की नजर क्या पडी. बचपन बर्बाद हो गया. इंसानियत शर्मसार हुई तो संस्कारों पर भी सवाल खड़े हो गए. बाल उत्पीड़न के बढ़ते आंकड़े यह सोचने पर बाध्य करते हैं कि विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति में कहां चूक हो गई कि भगवान स्वरूप बच्चे ही हैवानों का शिकार होने लगे. कभी अपनों की तो कभी गैरों क
....खिलने से पहले ही मुरझाता बचपन,येशोषित ये कुंठित ये अभिशप्त बचपन....आजके समाज मे बच्चों की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए उपरोक्त दो लाइनें ही काफी है। हो सकता है कि बड़े या मध्यम वर्गीय परिवार में रहने वाले बच्चों की स्थिति आपकोसही लग
शर्मा जी अभी-अभी रेलवे स्टेशन पर पहुँचे ही थे। शर्मा जी पेशे से मुंबई मे रेलवे मे ही स्टेशन मास्टर थे। गर्मी की छुट्टी चल रही थी इसलिए वह शिमला घूमने जा रहे थे, उनके साथ उनकी धर्मपत्नी मंजू और बेटी प्रतीक्षा भी थी। ट्रेन के आने मे अभी समय था।तभी सामने एक महिला अपने पाँच स