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मेरा घर कहीं गुम हो गया

20 नवम्बर 2021

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कल तक तो मेरे अपनों से रोशन था, 
मेरा अपना था, मेरा ग़ुरूर था,
मेरे सपनों का गुलदस्ता था,
दौलत ने दस्तक दी तभी मेरे दरवाजे पर,
पीछे घमंड खड़ा था कदमताल करते,
हाथों में बेरुखी, स्वार्थ और परायापन का उपहार लिये,
फिर कब न जाने ये घर मकान बन गया, 
जान ही नहीं पाया, 
कब घरवालों ने इसे धर्मशाला बना दिया,
जान ही नहीं पाया, 
कब अपनापन स्पर्धा बन गया, 
जान ही नहीं पाया, 
अब हम घर में नहीं मकान मे रहते हैं, 
जिसमें सारी सुुविधायें मौजूद हैं खुशियों की,
लेेकिन खुशियाँ नहीं हैं,
सारे अपने रहते हैं साथ में,
लेकिन अपनापन नहीं है,
मकान की इस होड़ में,
मेरा घर कहीं गुम हो गया है.

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Pragya pandey

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👌👌👌👌

20 नवम्बर 2021

शिव खरे "रवि"

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20 नवम्बर 2021

बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Shailesh singh

Shailesh singh

बहुत ही उम्दा रचना सर 👌👌

20 नवम्बर 2021

शिव खरे "रवि"

शिव खरे "रवि"

20 नवम्बर 2021

दिल की गहराईयों से आपका आभार सर

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रचनाएँ
मेरी डायरी
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मेरे आस-पास होने वाली घटनाओं और मेरे दिल की बातें ही मेरी डायरी है।
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