10 अक्टूबर 2018
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गजल गजल
मेरी शायरी मुख्तलिफ है मेरे शेर अलग है अभी हासिल -ए -शोहरत मे देर अलग है ।अभी महफूज़ हूँ मै नाकामियों के साये में और मेरे हिस्से कि भी अन्धेर अलग है ।कोशिशों ने कामयाबियों से रिश्ता तोड़ लिया खुदा के