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मेरे लिए. अग्निवेष त्रिपाठी ।

1 अक्टूबर 2015

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आदमी हर तरह ज़िंदगी चाहता चाहे जैसे रहे पर खुशी चाहता आबादियां तो हम से आबाद गईं हें मजबूरियाँ हमारी फरियाद हो गईं है आज दमन भिगो देगें तेरा भी हम भूल सकते नहीं इस जहाँ के सितम अहसास मेरे दिल का तुमसे जुदा नहीं है तो है करीब मेरे तुझको पता नहीं है
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

सुन्दर,उत्तम प्रस्तुति ,त्रिपाठी जी बधाई !

1 अक्टूबर 2015

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मिस्टर & मिसेस मैडम

29 सितम्बर 2015
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गजल ____ वी ॰के ॰सोंनकिया।

29 सितम्बर 2015
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भले ही छीन के मुझसे तू हर खुशी रख दे, मेरे खुदा तू मेरा नाम आदमी रख दे ।गुलों के कत्ल मे शामिल रहे जो अहले -चमन अब उनके रूबरू तितली की ज़िंदगी रख दे,मेरे बदन पे मेरी तल्खियाँ उभर आई ,मैं जल रहा हूँ मेरी आँख मे नमी रख दे । ये बेहिसाब उजाले रुला न दें मुझको तू एहतिआत से थोड़ी सी तिरगी रख दे । तमाम वेदों

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मेरे लिए. अग्निवेष त्रिपाठी ।

1 अक्टूबर 2015
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आदमी हर तरह ज़िंदगी चाहता चाहे जैसे रहे पर खुशी चाहताआबादियां तो हम से आबाद गईं हेंमजबूरियाँ हमारी फरियाद हो गईं हैआज दमन भिगो देगें तेरा भी हम भूल सकते नहीं इस जहाँ के सितम अहसास मेरे दिल का तुमसे जुदा नहीं है तो है करीब मेरे तुझको पता नहीं है

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आदमी

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