"उठ जा राज दुलारी, " - माँ ने रोते हुए अपनी आठ साल की बेटी इशू को गोद में उठाते हुए कहा - "अब ये नहीं उठेंगी"
"नहीं मम्मा," - नन्ही इशू ने अपनी माँ को समझाया - "अम्मा रोज मुझे कहानी सुनाती हैं। आज ये मुझे पन्ना धाय की कहानी सुनाने वाली हैं।"
"अम्मा, उठो ना। देखो, मैं स्कूल से आ गई अब तो कहानी सुनाओ ना पन्ना धाय की।" - इशू स्कूल से आते ही अम्मा से कहानी सुनने के लिए रुक जाती है। आज भी उसने यही किया। लेकिन अम्मा के घर में तो भीड लगी हुई है।
"बिट्टू, अब अम्मा नहीं हैं। " - माँ ने इशू को समझाने की कोशिश की।
"ये हैं तो सही, फिर आप क्यों कहती हो कि नहीं हैं। " - नन्ही इशू को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अम्मा सोई हुई क्यों है? वे जाग क्यों नहीं रहीं? वे बोलती क्यों नहीं? माँ भी रोये जा रहीं हैं।
"अरी बिटिया, ये अब मर चुकी हैं। ये नहीं उठेंगी। और अब कभी भी कहानी नहीं सुनायेंगी।" - पड़ोस की काकी ने इशू को बताया तो इशू रोती हुई घर के अन्दर भाग गई।
अम्मा के बेटा और बेटी सब हैं, लेकिन सब उन्हें सडक पर भटकता छोड़कर अपनी-अपनी दुनियाँ में व्यस्त हो गए। किसी ने भी कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि ये कैसी हैं।
एक दिन ये इशू की माँ को अपने घर के बाहर दिखी। जो गेट पर बैठी हुई शायद सुस्ता रहीं थीं। इशू की माँ ने तभी अपनी माँ को खोया था। जब उन्होंने अम्मा को देखा तो उनका चेहरा हूबहू उनकी माँ से मिलता था। उन्होंने जैसे ही अम्मा कहा तो वे भी चौंक कर इशू की माँ की ओर देखने लगीं। वो जैसे ही उठ कर जाने लगी, इशू की माँ ने उन्हें रोक लिया और अपने घर में ही रख लिया। उसके बाद ये सारे मोहल्ले की अम्मा हो गईं। उन्होंने भी सारे मोहल्ले को माँ जैसा प्यार दिया।
कुछ देर बाद इशू के हाथ से ही उनका अंतिम संस्कार करवाया गया।
इति... 🙏🏻🌷🙏🏻
✍️ रेखा शर्मा