नमस्कार 🙏🏻 🌷🙏🏻
हम ने इस लेख को शीर्षक दिया है जीवन शैली। जीवन शैली अर्थात हमारे जीने का अंदाज या जिस तरीके से हम जीते हैं। यूँ तो हम सब स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं और अपनी-अपनी तरह से ही जीना चाहते हैं। जो कि सही भी है। हर किसी को अपने ही ढंग से जीना भी चाहिये।
हम यहां बात कर रहे हैं उन नियमों और अनुशासन की, जिससे हमारा जीवन सुन्दर और सुखमय बनता है। जिसे हम लोग सुसंस्कृत जीवन शैली कहते हैं। जिसे मन ही मन मानते तो सभी हैं पर अपनाते केवल कुछ लोग ही हैं। हमारी संस्कृत भाषा हमें ना केवल शुद्ध लिखना, पढ़ना और बोलना सिखाती है अपितु जीवन जीने की कला भी सिखाती है जैसे एक श्लोक में कहा गया है कि
केयूराः न विभूषयन्ति पुरुषं, हारा न चंद्रोज्ज्वला।
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजा।
वाण्येका समलंग करोति पुरुषं या संस्कृता धारयते।
क्षीयन्ति खल भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणं।।
जिसका अर्थ है कि मनुष्य की शोभा ना तो बाजू बंद से होती है, ना ही चंद्रमा के समान उज्जवल हार से। ना स्नान से, ना चन्दन आदि के सुगंधित लेप से और ना पुष्पों से केशों को सजाने से ही मनुष्य शोभायमान होता है। जो पुरुष संस्कृत अर्थात सत्य बोलने वाली मधुर वाणी धारण करते हैं वास्तव में समाज में वे ही सुशोभित होते हैं। अन्य सभी आभूषण नष्ट हो जाते हैं किन्तु वाणी ही एक ऐसा आभूषण है जो कभी नष्ट नहीं होता। जो हमेशा ही मनुष्य को सुशोभित करता है।
जय श्री राम 🙏🏻
✍️ रेखा रानी