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अनहद ध्वनि सी गूंजी हैफिर आज खोह भंवर में,बज उठा है नाद फिर सेअपने ही स्तोत्र में,चित है जागा आज फिरगहन उस चिर निद्रा से,चेतना स्वचेतना का बोध है...खोजता फिरता रहा हैदेख मृग अपनी कस्तूरी को,दौड़ता ढूं
नववर्ष सा उल्लास हो उस आहट का अहसास हो, प्रकृति का आह्वान हो अस्तित्व का विकास हो, पृकंपन का प्रवात हो उर में तुम्हारा वास हो, सामर्थ्य प्रभाव उदित हो नव उमंग भर तरंगित हो, उषा लालिमा लोचन