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रुख़ से पर्दा जो उठा रक्खा है तौबा तौबा तू ने हंगामा मचा रक्खा है तौबा तौबा एक तो आँखें तिरी यार हैं ख़ंजर जैसी उस पे काजल भी लगा रक्खा है तौबा तौबा शैख़ जी आप को आख़िर ये हुआ क्या है कहो जाम हाथो
तेरा ग़म भी क्या क्या कर के बैठा है सारी खुशियां बेवा कर के बैठा है शह्र जलाने वाला तो इक मोहरा था कोई है जो पर्दा कर के बैठा है इक लड़की ने हंस के तुझ को क्या देखा तू तो उसका पीछा कर क
दिल पर तुम्हारे नाम का क़श्क़ा लगा के मैं मजमे से दूर बैठा हूँ सहारा में आ के मैं मुझ को ये डर कि मैं कहीं वादा न तोड़ दूँ निकला हूँ घर से साग़र -ओ- मीना उठा के मैं अब क्या बताऊँ आप से क्या चा