ओ री सखी तोहे कैसे बताऊँ, मोरे पिया बड़े हरजाई रे,
रात लगी मोहे सर्दी, बेदर्दी सो गए ओढ़ रजाई रे।
झटकी रजाई, चुटकी बजाई, सुध-बुध तक न आई रे!
पकड़ी कलाई, हृदय लगाई, पर खड़ी-खड़ी तरसाई रे!
अंगुली दबाई, अंगुली घुमाई, हलचल फिरहुँ न आई रे!
टस से मस न हुए बलम, इन्हें नींद साँझ से भायी रे!
आग लगे उस बैरन निंदिया, जो पिया लये छिनाई रे!
ओ री सखी तोहे कैसे बताऊँ, मोरे पिया बड़े हरजाई रे!
फूल भरे उस अंगना में, जब फूल सी देह सजाई रे!
फूल भरी सेजा पर फूली, फूल फूल मुरझाई रे!
फूल भूल मन भूली, काँटा, भूल-फूल भर लाई रे!
फूल की गूल में सूल चुभी, तब याद भूल की आई रे!
अब मैं बेचारी क्या करती, सब फूल धूल बिखराई रे!
ओ री सखी तोहे कैसे बताऊँ, मोरे पिया बड़े हरजाई रे
देख चंदनियाँ रोए सजनियाँ, फूटी किस्मत पायी रे!
हाथ मली, और विरह जली, मन की गांठ दबाई रे!
हृदय जले पीर के मारे, पीर सी भयी पराई रे,
पीर बिना मोहे पीर दे गए, पीर-पीर तड़पाई रे।
रात-कली शीत से झुलसी, तन से न खिल पायी रे,
ओ री सखी तोहे कैसे बताऊँ, मोरे पिया बड़े हरजाई रे!