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अम्मा! दादू बूढ़ा है - एस. कमलवंशी

11 सितम्बर 2016

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अम्मा! दादू बूढ़ा है,
कचरा, करकट कूड़ा है,
क्यों न इसे फेंक दें, तपती धूप में सेंक दें!

तुम ही तो कहती हो ये खाँसता है,
चलते चलते हाँफता है,
कितना भी खिलाओ अच्छा इसको,
फिर भी हमेशा माँगता है…
न कहीं जाता है, न कुछ करता है,
खटिया पर पड़े पड़े सड़ता है,
अंधा है, बहरा है, चाल तो देखो लंगड़ा है,
ज़ोर नहीं रत्ती भर फिर भी कितना लड़ता है।

इसे देख बापू झल्लाते हैं,
सामने ही दाँत किटकिटाते हैं,
कहते हैं मर क्यों नहीं जाता,
कब से ज़िंदा है, जग से तर क्यों नहीं जाता।
अब क्या बचा है जिसके लिए ज़िंदा है,
इसकी वजह से जीवन शर्मिंदा है,
कहते हैं, जायदाद में कुछ नहीं इसके पास,
जो है, उसपे इसका शिकंजा है।

अम्मा! दादू बूढ़ा है,
कचरा करकट कूड़ा है,
क्यों न इसे जला दें, या फिर ज़हर पिला दें!

अम्मा! एक बात कहूँ, मारोगी तो नहीं!
दादू जैसा बंद कमरे में डालोगी तो नहीं!

अम्मा! दादू अच्छा है,
मेरी तरह बच्चा है,
अम्मा! दादू रोता है,
हम सबके बावजूद अकेला होता है,
जानती हो, वह सुनता भी है,
मन ही मन कुछ बुनता भी है।
बापू के तानों पर सहम जाता है,
रूखा सूखा जो दिया सब खाता है,
वह चल नहीं पाता फिर भी गाँव जाता है,
सोना हो या सूखे बेर, हमारे लिए ही लाता है।

दादू अब भी बापू को चाहता है,
तुम्हें बेटी उन्हें बेटा मानता है,
भले तुम उसे बुरा कहो, गाली दो,
दादू परिवार जानता है, दुआ जानता है।

अम्मा! कुछ दिन बाद दादू मर जाएगा,
तो मुझे कहानी कौन सुनाएगा?
चोट लगेगी तो कौन चुप कराएगा?
तम्बाखू के चार पैसे मेरे लिए धोती में कौन छुपाएगा,
मेरी शरारत पर कौन हँसेगा?
तू मेरे जैसा है, मुझे कौन बताएगा?
मुझे खिलौना नहीं चाहिए, मिठाई नहीं चाहिए,
मुझे दादू चाहिए, मैं दादू कहाँ से लाऊँगा?

अम्मा! दादू बूढ़ा है,
कचरा करकट कूड़ा है,
बेकार सही लाचार सही,
हम बिन वह अधूरा है,
क्यों न उसे प्यार दें! अपने पाप उतार दें!

एस. कमलवंशी की अन्य किताबें

मंजरी सिन्हा

मंजरी सिन्हा

सच मच बहुत ही मन को छूने वाली कृति है | अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत शुभ कामनाएं

26 अप्रैल 2019

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत सशक्त रचना है | हर दृष्टि कौण से | पूरी तरह निखरी , मजी हुई | मन के बहुत भीतर तक उत र जाने वाली | सहेज कर रखिये |

25 अप्रैल 2019

विश्वमोहन

विश्वमोहन

अद्भुत रचना, आज की हकीक़त को उजागर कराती और मानवीय संवेदना को उकेरती!!! बधाई और आभार!!!

25 अप्रैल 2019

Sudha Singh

Sudha Singh

बहुत बहुत सुंदर बहुत

25 अप्रैल 2019

रेणु

रेणु

जी नमस्ते, आपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है <a href="http://halchalwith5links.blogspot.in/">पांच लिंकों का आनंद</a> पर... आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

24 अप्रैल 2019

AJIT  SINGH

AJIT SINGH

बहुत सुंदर रचना है बहुत कुछ कह दिया।

20 सितम्बर 2017

ऋषभ खंडेलवाल

ऋषभ खंडेलवाल

दिलों को बेध देने वाली रचना। कमलवंशी जी आपकी विचारों को नमन।

14 मई 2017

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

सबको बूढा होना है ये सबका ही रोना है। आधुनिकता के इस प्रसार में आगे बस ये ही होना है। हमें चेतना होगा आज , बदलना होगा ये समाज। संस्कारों के मोतियों को फिर से बाल मनों में पिरोना है। सबको बूढ़ा होना है।

11 मई 2017

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रचनाएँ
मेरी कलम - मेरा कलाम
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"मेरी कलम - मेरा कलाम" एस. कमलवंशी द्वारा रचित कविताओं का संग्रह है।
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अम्मा! दादू बूढ़ा है - एस. कमलवंशी

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मैं मटमैला माटी सा , माटी की मेरी काया,माटी से माटी बना, माटी में ही समाया।समय आया, आकाश समेटे घाटी-माटी पिघलाया,अगन, पवन, पानी में घोलकर, तन यह मेरा बनाया।।जनम हुआ माटी से मेरा, माटी पर ही लिटाया,माटी चखी, माटी ही सखी, माटी में ही नहा

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बोले टूटकर बिखरा दर्पण, कितना किया कितनों को अर्पण, बेरंगों में रंग बिखेरा, जीवन अपना किया समर्पण। देखा जैसा, उसको वैसा, उसका रूप दिखाया, रूप-कुरूप हैं छैल-छवीले, सबको मैंने सिखाया, घर आया, दीवा

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हट री सखी, न कुछ बोल अभी, सुन तो सही वह टेर भली, कर जोड़ तोसे विनती करूँ, तोहे तनिक देर की मनाही है, तू ठहर यहीं, कहीं जा नहीं, झटपट मैं फिर आ रही यहीं, न चली जाए वह डाक कहीं, मोरे पिया की चिट्ठी आ

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पथिक - एस. कमलवंशी

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पथिक तेरा रास्ता कहाँ, मंजिल कहाँ तेरी बावरे,टेढ़े-मेढ़े जग-जाल में, फिरता कहाँ है सांवरे,कहाँ रही सुबहा तेरी, कहाँ है तेरी साँझ रे!पथिक तेरा रास्ता कहाँ, मंजिल कहाँ तेरी बावरे।टिमटिम चादर ओढ़कर, सोया तू पैर पसार रे,जिस स्वप्न में रैना तेरी, क्या होगा वह साकार रे,साकार का आकार भर, तू उठ गया पौ फटने पर,

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सखी री मोरे पिया कौन विरमाये?- एस. कमलवंशी

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सखी री मोरे पिया कौन विरमाये? कर कर सबहिं जतन मैं हारी, अँखियन दीप जलाये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... अब की कह कें बीतीं अरसें, केहिं कों जे लागी बरसें, मो सों कहते संग न छुरियो, आप ही भये पराये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... गाँव की

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यादों का पागलखाना

19 जनवरी 2019
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जब भी तेरी वफाओं का वह ज़माना याद आता है,सच कहूं तो तेरी यादों का पागलखाना याद आता है।कसमों की जंजीर जहां पर, वादों से बनी दीवारें हैंझूठ किया है खंज़र से तेरे नाम की उन पर दरारें है।टूट चुका सपनों का बिस्तर, अफ़सोसों की चादर हैतकियों को गीला करती अश्क़ों की जहां फुहारें हैं।जलती शमा में कैद वहां, परवान

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आज बहुत रोई पिया जी! - एस. कमलवंशी

13 सितम्बर 2016
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आज बहुत ही रोई पिया जी, आज बहुत ही रोई,जिस्म-फ़रोसी की दुनियाँ में, दूर तलक मैं खोयी।कोई भी हाल न मेरा पूँछे, कोई न पूँछे ठिकाना,जिधर भी जावे मोरी नजरिया, चाहवे सब अज़माना।घूँट घूँट कर ज़हर मैं निगली, देह पथरीली होई,आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।लाख मुसाफ़िर, लाख प्यासे, लाख ठिखाने लाये,लाख त

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भिखारी - एस. कमलवंशी

17 सितम्बर 2016
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मेरी गली में इक भिखारी भीख मांगता है,नंगे पाँव, तपती धूप में,सर्दी-गर्मी, हर रूप में,चंद मुट्ठी पैसों से, घर का पेट पालता है,मेरी गली में इक भिखारी, रोज भीख मांगता है।।टूटे घर में बिखरा जीवन,खाली पेट, और गीला दामन,नींद खुले जब, देखें आखें,मरती त्रिया, भूखा बचपन।बेबसी में, बेकसी में हर बाधा वह लांघता

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दास्तान-ए-कलम (मेरी कलम आज रोई थी)

28 अप्रैल 2017
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मेरी कलम आज फिर रोई थी,तकदीर को कोसती हुई, मंजर-ए-मज़ार सोचती हुई,दफ़न किये दिल में राज़, ख़यालों को नोंचती हुई।जगा दिया उस रूह को जो एक अरसे से सोई थी,मेरे अल्फाज़ मेरी जुबां हैं, मेरी कलम आज रोई थी।।पलकों की इस दवात में अश्कों की स्याही लेकर,वीरान दिल में कैद मेरी यादों

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मित्र का चित्र

20 मई 2017
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सुरमई आँखों को सजाएँ, काज़ल की दो लकीरें,मैंने इनमें बनती देखी कितनी ही तसवीरें,तसवीरों के रंग अनेकों, भांति-भांति मुस्काएं,कुछ सजने लगी दीवारों पर, कुछ बनने लगी तक़दीरें।कुछ में फैला रंग केसरिया, कुछ में उढ़ती चटक चुनरिया,कुछ के रंग सफ़ेद सुहाने, कुछ में नागिन लचक कमरिया

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बचपन - बुढ़ापा (एस. कमलवंशी)

2 अक्टूबर 2016
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बचपन-कचपन, बुढ़ा-पकपन,सरल-सहज, व्यथाएं पचपन,नागर निडर, हियाय खनखनचापर चपल, पिराय तनमन।डग-भर डगर, थकाये आँगन,नटवर नज़र, दुखाए दामन,अल्लड़ मस्त, संभाले जरा-धन,काफिर-कहर, सहारे अनबन।रंग बिरंग, मन फीके सावन,अंग मलंग, लाठी के आवन,ढंग-बेढंग, विराने दरपन,संग-तरंग, विचारे पलछिन।कल-कल किलक, कराहे कण-कण,मादक मदन

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ऐ मेरे दिल की दीवारों

1 मई 2017
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ऐ मेरे दिल की दीवारों, रूप अनूप तुम्हारा करूँ!सजनी के हैं रूप अनेकों, कौन सा रूप तुम्हारा करूँ?क्या श्वेत करूँ, करे शीतल मनवा, उथल पुथल चितचोर बड़ा है,करूँ चाँदनी रजत लेपकर, पूनम का जैसे चाँद खड़ा है।करूँ

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