हट री सखी, न कुछ बोल अभी, सुन तो सही वह टेर भली,
कर जोड़ तोसे विनती करूँ, तोहे तनिक देर की मनाही है,
तू ठहर यहीं, कहीं जा नहीं, झटपट मैं फिर आ रही यहीं,
न चली जाए वह डाक कहीं, मोरे पिया की चिट्ठी आई है।
चिठिया पाते ही अपने सजन की, उसे हृदय से लगाऊँगी
धक धक करेगो जियरा ऐसे, कुछ बोल तलक न पाऊँगी
चुमूंगी फिर झूमूँगी, कुछ खड़ी खड़ी सकुचाऊँगी
थर थर काँपेंगे हाथ मोरे, कैसे चिठिया खोल पाऊँगी।
पियरे पियरे उस पतवा पे, न जाने कहा लिखे होंगे,
"तुम कैसी हो मोरी सजनी", यही पहली बात किए होंगे,
"नहीं लागत है अब मन तुम बिन", शायद, ऐसा भी कहे होंगे,
कुछ यादें पुरानी कर करके, वे विरह अगन में जरे होंगे।
मोरी पायल की न छनक सुने, न जाने कैसे रहे होंगे?
खनखन करती चूड़ी के बिन, भोजन कैसे ही किए होंगे?
मोरे आँचल की चादर के बिन, न जाने कैसे सोए होंगे?
हम रोए हैं सजना के बिन, फिर सजन न कैसे रोए होंगे!
अरसे बीते हैं इस अभागन के, बस आज ही किस्मत पाई है,
सुन, हाथ छोड़, न ठिठौना कर, तोरी इसी बात में भलाई है
तू सखी है या फिर सौतन है, या तोरे पिया की तोसे लड़ाई है!
अब हट भी जा, मोहे अबेर भई, मोरे पिया की चिट्ठी आई है।