shabd-logo

ऐ मेरे दिल की दीवारों

1 मई 2017

547 बार देखा गया 547
featured image

ऐ मेरे दिल की दीवारों, रूप अनूप तुम्हारा करूँ!

सजनी के हैं रूप अनेकों, कौन सा रूप तुम्हारा करूँ?


क्या श्वेत करूँ, करे शीतल मनवा, उथल पुथल चितचोर बड़ा है,

करूँ चाँदनी रजत लेपकर, पूनम का जैसे चाँद खड़ा है।

करूँ पीताम्बर नील नगर में, जैसे चढ़ता सूर्य गगन पर,

या फेरूं मैं कालिख़ तुझ पर, तू बेपीर सा पीर बड़ा है।


श्याम करूँ कोई शाम सोचकर, या सिंदूरी सुबह ओढ़कर?

धरा धरातल पर करूँ धानी, या रानी कोई सुमन तोड़कर?

करूँ मैं नीला कोई नीलमणि, सागर के गहरे तलहट में।

या दे दूँ सतरंगा चोला, इंद्रधनुष के रंग पोतकर।।


करूँ गुलाबी जैसे नैन शराबी, होंठों के दो जाम पिलाकर,

रूप बादामी तुम पर फेरूं, सजनी को मैं पास बुलाकर,

करूँ सुनहरा केश छटा से, गजरे के कुछ रंग सजाकर,

या बचा लूँ तुझे नज़र से, कजरे की एक धार लगाकर।


करूँ हिना सा कुछ चटकीला, मेंहदी हाथों पर बिखराकर,

या करूँ तुझे ढलता सूरज, लाली होंठों से मैं चुराकर।

क्या करूँ तेरा रंग बता दे, उलझन मेरी तू सुलझाकर,

क्या भर दूँ हर रंग उसी का, बाहों में उसे अपनी सुलाकर।


ऐ मेरे दिल की दीवारों, कौन सा रूप तुम्हारा करूँ?

सजनी के हैं रूप अनेकों, रूप अनूप तुम्हारा करूँ!

एस. कमलवंशी की अन्य किताबें

ध्रुव सिंह  -एकलव्य-

ध्रुव सिंह -एकलव्य-

करूँ हिना सा कुछ चटकीला, मेंहदी हाथों पर बिखराकर, या करूँ तुझे ढलता सूरज, लाली होंठों से मैं चुराकर। क्या करूँ तेरा रंग बता दे, उलझन मेरी तू सुलझाकर, क्या भर दूँ हर रंग उसी का, बाहों में उसे अपनी सुलाकर। सुन्दर भावना ! उत्तम लेखनी, आदरणीय ,आभार "एकलव्य"

13 मई 2017

एस. कमलवंशी

एस. कमलवंशी

धन्यवाद नृपेंद्र कुमार जी।

11 मई 2017

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

शब्दों का चयन बहुत सुन्दरता से किया आपने।

11 मई 2017

रेणु

रेणु

अनिर्वचनीय कल्पना --- निशब्द हूँ -- शाबाश -- वेरी गुड

2 मई 2017

सपना अवस्थी

सपना अवस्थी

बहुत ही सुंदर रचना। आप एक अच्छे रचनाकार हैं।

2 मई 2017

प्रवेश मौर्य

प्रवेश मौर्य

प्राकृतिक सौंदर्य से नायिका नखशिख सौंदर्य की तरफ कविता का मुड़ जाना प्रशंशनीय है। आपने दोनों ही विषय का सुंदर वर्णन किया है।

2 मई 2017

17
रचनाएँ
मेरी कलम - मेरा कलाम
0.0
"मेरी कलम - मेरा कलाम" एस. कमलवंशी द्वारा रचित कविताओं का संग्रह है।
1

अम्मा! दादू बूढ़ा है - एस. कमलवंशी

11 सितम्बर 2016
2
17
14

अम्मा! दादू बूढ़ा है,कचरा, करकट कूड़ा है,क्यों न इसे फेंक दें, तपती धूप में सेंक दें!तुम ही तो कहती हो ये खाँसता है,चलते चलते हाँफता है,कितना भी खिलाओ अच्छा इसको,फिर भी हमेशा माँगता है…न कहीं जाता है, न कुछ करता है,खटिया पर पड़े पड़े सड़ता है,अंधा है, बहरा है, चाल तो देखो लंगड़ा है,ज़ोर नहीं रत्ती भर फिर भ

2

ऐ बसंती हवा - एस. कमलवंशी

8 अक्टूबर 2016
0
11
3

ऐ बसंती हवा, मैं तुझे क्या नाम दूँ?पागल कहूँ या वन-ए-बावरी, तुझे क्या पयाम दूँ?ऐ बसंती हवा, मैं तुझे…बड़ी ही चंचल, बड़ी ही संदल, ऋतुराज सुकुमारी तू,शीतलहर जब थम के बैठी, चढ़ती रसिक खुमारी तू,जब देखे तू सूरज लाली, चले चाल मतवाली तू,पूरब के तू द्वार से होकर, शीतल लहर बहाती तू,कुसुमाकर के कुसुम सुहाने, भर

3

काश, मेरी भी माँ होती!

14 मई 2017
0
16
8

काश, मेरी भी माँ होती! मैं उसे अपनी माँ बुलाता।प्रेम जताता, प्यार लुटाता,चरण दबाता, हृदय लगाता,जब कहती मुझे बेटा अपना, जीवन शायद सफल हो जाता, काश, मेरी भी माँ होती! मैं उसे अपनी माँ बुलाता।मैं अनाथ बिन माँ के भटका, किसको अपनी मात् बताता,जब डर लगता इस दुनियाँ का, किस

4

मैं मटमैला माटी सा

4 जून 2017
1
13
12

मैं मटमैला माटी सा , माटी की मेरी काया,माटी से माटी बना, माटी में ही समाया।समय आया, आकाश समेटे घाटी-माटी पिघलाया,अगन, पवन, पानी में घोलकर, तन यह मेरा बनाया।।जनम हुआ माटी से मेरा, माटी पर ही लिटाया,माटी चखी, माटी ही सखी, माटी में ही नहा

5

मोरे पिया बड़े हरजाई रे!

8 जुलाई 2017
0
14
6

ओ री सखी तोहे कैसे बताऊँ, मोरे पिया बड़े हरजाई रे,रात लगी मोहे सर्दी, बेदर्दी सो गए ओढ़ रजाई रे।झटकी रजाई, चुटकी बजाई, सुध-बुध तक न आई रे!पकड़ी कलाई, हृदय लगाई, पर खड़ी-खड़ी तरसाई रे!अंगुली दबाई, अंगुली घुमाई, हलचल फिरहुँ न आई रे!टस से मस

6

अब इतना दम कहाँ!

2 मई 2017
0
12
7

दुख गए हैं कंधे मेरे, अपनों का बोझ उठाते, फिर सपनों का बोझ उठाऊं, अब इतना दम कहाँ ! कण कण जोड़कर घरोंदा ये बनाया मैंने, तन-मन मरोड़कर इसको सजाया मैंने। रुक गया, मैं झुक गया, बहनों का बोझ उठाते,

7

दर्पण

26 मई 2017
0
10
7

बोले टूटकर बिखरा दर्पण, कितना किया कितनों को अर्पण, बेरंगों में रंग बिखेरा, जीवन अपना किया समर्पण। देखा जैसा, उसको वैसा, उसका रूप दिखाया, रूप-कुरूप हैं छैल-छवीले, सबको मैंने सिखाया, घर आया, दीवा

8

मोरे पिया की चिट्ठी आई है

11 अगस्त 2022
1
1
1

हट री सखी, न कुछ बोल अभी, सुन तो सही वह टेर भली, कर जोड़ तोसे विनती करूँ, तोहे तनिक देर की मनाही है, तू ठहर यहीं, कहीं जा नहीं, झटपट मैं फिर आ रही यहीं, न चली जाए वह डाक कहीं, मोरे पिया की चिट्ठी आ

9

पथिक - एस. कमलवंशी

18 दिसम्बर 2016
0
10
2

पथिक तेरा रास्ता कहाँ, मंजिल कहाँ तेरी बावरे,टेढ़े-मेढ़े जग-जाल में, फिरता कहाँ है सांवरे,कहाँ रही सुबहा तेरी, कहाँ है तेरी साँझ रे!पथिक तेरा रास्ता कहाँ, मंजिल कहाँ तेरी बावरे।टिमटिम चादर ओढ़कर, सोया तू पैर पसार रे,जिस स्वप्न में रैना तेरी, क्या होगा वह साकार रे,साकार का आकार भर, तू उठ गया पौ फटने पर,

10

सखी री मोरे पिया कौन विरमाये?- एस. कमलवंशी

20 अगस्त 2016
0
11
3

सखी री मोरे पिया कौन विरमाये? कर कर सबहिं जतन मैं हारी, अँखियन दीप जलाये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... अब की कह कें बीतीं अरसें, केहिं कों जे लागी बरसें, मो सों कहते संग न छुरियो, आप ही भये पराये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... गाँव की

11

यादों का पागलखाना

19 जनवरी 2019
1
8
1

जब भी तेरी वफाओं का वह ज़माना याद आता है,सच कहूं तो तेरी यादों का पागलखाना याद आता है।कसमों की जंजीर जहां पर, वादों से बनी दीवारें हैंझूठ किया है खंज़र से तेरे नाम की उन पर दरारें है।टूट चुका सपनों का बिस्तर, अफ़सोसों की चादर हैतकियों को गीला करती अश्क़ों की जहां फुहारें हैं।जलती शमा में कैद वहां, परवान

12

आज बहुत रोई पिया जी! - एस. कमलवंशी

13 सितम्बर 2016
1
12
3

आज बहुत ही रोई पिया जी, आज बहुत ही रोई,जिस्म-फ़रोसी की दुनियाँ में, दूर तलक मैं खोयी।कोई भी हाल न मेरा पूँछे, कोई न पूँछे ठिकाना,जिधर भी जावे मोरी नजरिया, चाहवे सब अज़माना।घूँट घूँट कर ज़हर मैं निगली, देह पथरीली होई,आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।लाख मुसाफ़िर, लाख प्यासे, लाख ठिखाने लाये,लाख त

13

भिखारी - एस. कमलवंशी

17 सितम्बर 2016
0
10
1

मेरी गली में इक भिखारी भीख मांगता है,नंगे पाँव, तपती धूप में,सर्दी-गर्मी, हर रूप में,चंद मुट्ठी पैसों से, घर का पेट पालता है,मेरी गली में इक भिखारी, रोज भीख मांगता है।।टूटे घर में बिखरा जीवन,खाली पेट, और गीला दामन,नींद खुले जब, देखें आखें,मरती त्रिया, भूखा बचपन।बेबसी में, बेकसी में हर बाधा वह लांघता

14

दास्तान-ए-कलम (मेरी कलम आज रोई थी)

28 अप्रैल 2017
1
15
9

मेरी कलम आज फिर रोई थी,तकदीर को कोसती हुई, मंजर-ए-मज़ार सोचती हुई,दफ़न किये दिल में राज़, ख़यालों को नोंचती हुई।जगा दिया उस रूह को जो एक अरसे से सोई थी,मेरे अल्फाज़ मेरी जुबां हैं, मेरी कलम आज रोई थी।।पलकों की इस दवात में अश्कों की स्याही लेकर,वीरान दिल में कैद मेरी यादों

15

मित्र का चित्र

20 मई 2017
0
11
4

सुरमई आँखों को सजाएँ, काज़ल की दो लकीरें,मैंने इनमें बनती देखी कितनी ही तसवीरें,तसवीरों के रंग अनेकों, भांति-भांति मुस्काएं,कुछ सजने लगी दीवारों पर, कुछ बनने लगी तक़दीरें।कुछ में फैला रंग केसरिया, कुछ में उढ़ती चटक चुनरिया,कुछ के रंग सफ़ेद सुहाने, कुछ में नागिन लचक कमरिया

16

बचपन - बुढ़ापा (एस. कमलवंशी)

2 अक्टूबर 2016
1
12
4

बचपन-कचपन, बुढ़ा-पकपन,सरल-सहज, व्यथाएं पचपन,नागर निडर, हियाय खनखनचापर चपल, पिराय तनमन।डग-भर डगर, थकाये आँगन,नटवर नज़र, दुखाए दामन,अल्लड़ मस्त, संभाले जरा-धन,काफिर-कहर, सहारे अनबन।रंग बिरंग, मन फीके सावन,अंग मलंग, लाठी के आवन,ढंग-बेढंग, विराने दरपन,संग-तरंग, विचारे पलछिन।कल-कल किलक, कराहे कण-कण,मादक मदन

17

ऐ मेरे दिल की दीवारों

1 मई 2017
0
11
6

ऐ मेरे दिल की दीवारों, रूप अनूप तुम्हारा करूँ!सजनी के हैं रूप अनेकों, कौन सा रूप तुम्हारा करूँ?क्या श्वेत करूँ, करे शीतल मनवा, उथल पुथल चितचोर बड़ा है,करूँ चाँदनी रजत लेपकर, पूनम का जैसे चाँद खड़ा है।करूँ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए