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मृगमरीचिका - एक भंवरजाल

Manohar Singh Munda

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21वी सदी, हम लोग विज्ञान के युग में जी रहे हैं हम लोगों ने भौतिकी विषय में जरूर मिलेगी "मृग मरीचिका " के बारे में पढ़ा होगा जिसमें पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण रेगिस्तान में किसी पेड़ का प्रतिबिंब किसी जलाशय पर बन रहा है जैसा दिखता है। इस घटना में अक्सर रेगिस्तान में पानी की खोज में भटके हुए मृग  जलाशय  समझ कर पानी पीने के लिए जाते हैं पर वहां पानी नहीं मिलता है सिर्फ आंखो का भ्रम होता है। इसी तरह कभी-कभी हमारी जिंदगी भी रेगिस्तान की तरह बन जाती है, मधुबन की छाती भी रेगिस्तान की तरह सुखा लगने लगती है। हम लोग किसी के प्रेम रूपी पानी से खुद को सींचते हैं परंतु उस प्रेम का काला सच जानते हैं तो हमें एक बड़ा धोखा मिलता है हम लोग इतना आगे बढ़ चुके होते हैं कि उस रास्ते से लौटना मुश्किल होता है,अंततः उस "मृग मरीचिका" से कभी वापस नहीं लौट पाते। 

mrugmarichika ek bhanvarjal

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