सीमा सुरक्षा में लगे सिपाही को कभी-कभी अपनी हृदय की भी सुननी पड़ती है। कभी-कभी मानवता भी दिखानी पड़ती है । मानता वाली भावना की वजह से सीमा सुरक्षा में तैनात सिपाही धर्म संकट में पड़ जाता है।
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जगह बॉर्डर !बांग्लादेश और हिंदुस्तान का बॉर्डर। करीब रात का तीसरा पहर गुजर रहा था ।एक सिपाही करण सिंह, ठिठुरती रातों में अपने पेट के बल लेटा हुआ बॉर्डर को निगरानी कर राहा है।उसके पानी नजर बॉर्डर
अरविंद की आवाज लगाते ही, अरविंद नाम का लौंडा कमरे के अंदर इंट्री करता है ।पीछे से वही आवाज लगाने वाला फौजी कमेंट करता है। अरे साले- अदब से चल! आदमियों की तरह चल ,लौंडिया की तरह कुल्हे मटका -मटका
रात के यहां बॉर्डर का मौसम यूं ही डरावना सा होता है। कई चीखे सुनाई देती है।उन मां बहनों की चीखे सुनाई देती है जिन्होंने गदर मैं अपना जान खोया ।उन बच्चों की आवाज सुनाई देती है- जिन्हें पाकिस्तानि
तीन चेहरे । तीन औरतें ।और खौफ से बिस्फारित नेत्र। वह मौत भी थम जाए पल भर को। जिंदगी क्या चीज है !बुझी बुझी आंखों में तैरते आंसू ।नमी स्पष्ट दिखती । और आंखों में खौफ के अलावा याचन
स्तब्धता के बाद बहुत क्षीण सी कप कपा की आवाज में ।बंगालन बंगाली में बोलती हैं -दादा आमाके जाईते दो !दादा!! जैसे डर क्रंदन और मजबूरी से मिली जुली आवाज!तीन औरतें जिनमें से एक की उ