जगह बॉर्डर !
बांग्लादेश और हिंदुस्तान का बॉर्डर। करीब रात का तीसरा पहर गुजर रहा था ।
एक सिपाही करण सिंह, ठिठुरती रातों में अपने पेट के बल लेटा हुआ बॉर्डर को निगरानी कर राहा है।
उसके पानी नजर बॉर्डर पर लगी हुई बाढ़ की ओर है । निगरानी करता हुआ सोचता है। उसके दिमाग में कई प्रकार के खयालात आते हैं ,जाते हैं।
अकेला उसके आसपास में कुछ और लोग हैं। मगर कोई नजर नहीं आ रहा।
एक सिपाही होने के नाते, वह जिंदगी को कई दूसरी तरीके से सोचता है।
उसकी जिंदगी एक साधारण जिंदगी नहीं है। उसकी जिंदगी खास है ।उसकी जिंदगी मातृभूमि के लिए खास है। उसकी जिंदगी हिंदुस्तान के लिए खास है।
रात का तीसरा पहर। ठंड की वह रात थी ।रात में कोहरा सा लगा हुआ।
रात चांदनी रात है ।मगर चांदनी रात में भी कुछ दूरी पर ही आंखें देख सकती है ।उसके अलावा आंखें के आगे कुछ नजर नहीं आता।
दूर-दूर तक कुछ नजर नहीं आता। चांदनी रात में हल्की सी परछाई कहीं हिलती नजर आती है ।फिर गुम हो जाती है ।ऐसा लगता है जैसे कि कई प्रेत आत्माएं चल रही हो।
प्रेत महात्माओं का ऐसे भी इन बोर्डरों में कई लोगों की जान गई है। इन बॉर्डरो में पाकिस्तानियों ने कत्लेआम किए हैं।
हिंदुस्तानियों को इन्होंने मार भगाया है। हिंदुस्तानियों का इन्होंने खून बहाया है ।यहां अभी भी वह आत्माएं चिखती रहती है।
अभी भी वह आत्माएं गुहार मांगती रहती है।
अभी भी वह आत्माएं अपने ऊपर किए गए जिल्लत के लिए इंसाफ मांगती रहती है
जैसे हवाओं का कोई सीमा नहीं होता।
जैसे पक्षियों का कोई देश नहीं होता ।जैसे सूरज की रोशनी किसी देश को बंटवारा नहीं करती ।
जैसे कभी चांद की चांदनी किसी को छोटा बड़ा नहीं कहती ।
उसी तरह इन आत्माओं का भी कोई देश नहीं होता ।इनका कोई बॉर्डर नहीं होता।
रात खामोश थी। मगर कभी-कभी झाड़ियों में कुछ सरसराहट की आवाज आ जाती।
कभी कभी दूर किसी गांव में कुत्ते की रोने की आवाज आ जाती। किसी दूर झाड़ियों में लोमडियों का चिखना एक साथ सुनाई दे जाता।
लोमड़ी ओके चिखने से रात और भयानक हो जाती। काली रात न थी। मगर फिर भी चांदनी रात एक खौफनाक सी रात लगती। एक डरावनी सी रात लगती।
मगर सिपाई तो फौलाद का बना होता है। उसे किसी चीज का कोई खौफ नहीं होता ।रात के अंधेरे में रहते रहते ।उन्हें इन सब चीजों की आदत सी पड़ जाती है।
अकेला पड़ा पड़ा उसके दिमाग में भर्ती के समय जो जिल्लाते हुई थी ।वह बातें उसके आंखों के आगे रेंगने लगती है।
जगह आर्मी की भर्ती के लिए आर्मी हेड क्वार्टर। समय सुबह का था।
लाइन में नंगे नंगे मात्र चड्डी पहने
लाइन में लगे फौज में भर्ती होने आए जवान। एक वर्दीधारी फौजी बहार कर चिखता है -अरे सालों लाइन में भी ढंग से खड़ा हुआ नहीं जा रहा ।
जंग में क्या करोगे तुम !चिल्लाता हुआ फौजी अंदर में सीधे खड़े रहो ।
अभी शाम तक खड़े रहना है ।समझे! फिर आवाज लगाता है-- अरविंद कौशिक? अंदर जा !तेरे को साबने अंदर तलब किया है।
अरविंद नाम का लौंडा जो चड्डी में खड़ा था। वह अंदर की ओर लपकता है।