स्तब्धता के बाद बहुत क्षीण सी कप कपा की आवाज में ।बंगालन बंगाली में बोलती हैं -दादा आमाके जाईते दो !दादा!! जैसे डर क्रंदन और मजबूरी से मिली जुली आवाज!
तीन औरतें जिनमें से एक की उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी 20 से 22 बरस की रही होगी ।और दो लोगों की उम्र 30 से ऊपर के रही होगी।
कुपोषण की वजह से या किसी मजबूरी के वजह से उनकी उम्र ज्यादा सी लगती थी। उनके चेहरे को देखकर लगता था ।जैसे बचपन में ही बुढ़ापा आ गया हो।
फिर वहीं आवाज में बोली दादा आमाके छाड्या दो । आमा के जाईते दो।(भैया हमें जाने दो !भैया हमें छोड़ दो!)
करण चीखा नहीं मैं तुम लोगों को जाने नहीं दे सकता। तुम बांग्लादेशी हो ।विदेशि हो। इस तरीके से घुसपैठ रोकना ही हमारा काम है। तुम यहीं से वापस चली जाओ-- वरना मैं गोली मार दूंगा। तुम ही खुद अपनी मौत की जिम्मेदार होगी।
ज्यादा देर यहां ठहर मत तुम यहां से वापस चली जाओगी तो जिंदी चली जाओगी। बॉर्डर क्रॉस करने की कोशिश करोगी तो गोली
खाओगी ।मारी जाओगी।
आमाके मेरे फेलो ;किंतु आमी फिरे जाबो ना।
(हमें मार कर फेंक दो ;परंतु हम वापस नहीं जाएंगे)
व खाने आमी आर आमार बाच्चा ना खिए मारे जाबो। (वहां पर मैं और मेरा बच्चा बिना खाए मर जाएंगे)
नहीं तुम नहीं जा सकती। जो भी बोलो तुम लोग बांग्लादेशी हो ।घुसपैठिए हो। यहां से घुसपैठियों के रोकने के लिए ही मेरी ड्यूटी लगी हुई है ।मेरा कर्तव्य है अपने देश के प्रति। मैं किसी को यह बॉर्डर से क्रॉस करने नहीं दूंगा चाहे जो भी हो।
मैं सच बोल रही हूं। हम आतंकवादी नहीं है। हम आपके देश में दो वक्त की रोटी खाने के लिए मेहनत मजदूरी करने जा रहे हैं। कोई आतंकवादी हम नहीं है। हम तुम्हारे देश में भी मेहनत करके मजदूरी करके खाएंगे।(बंगाली से अनुवादित)
हम तुम्हारे देश में कोई गलत काम के लिए नहीं जा रहे हैं। देखें देखो इस नवजात को- इसको भी जीने का अधिकार है ।क्या मैं इसे अपनी तरह भूखे मार डालूं।हम और तुम्हारे देश के किसी को खराब करने के लिए नहीं जा रही ।देखो यह जो दुध मुहा शीशु को। क्या इसे मैं अपनी तरह भूखे मार डालूं।(बंगाली में बोली) ।
करण स्तंभ था। उस औरत की हिम्मत को देखकर ।जो वह जबरजस्ती किसी दूसरे देश के सीमा में प्रवेश करना चाहती थी। वह भी अपने नवजात बच्चों को दिखाकर अपने नवजात बच्चों के भूखे मरने की कसम दिलाकर।
सीमा रक्षक सिपाही को ,
धर्म संकट में डालना चाहती थी।
अगर तुम हमें जाने देना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं ।यहीं पर गोली से हमें भुन डालो।
बोलो बोलो दादा बोलो आमी फिरे जाबो ना।
वातावरण में जैसे खामोशी छा गई थी। वक्त जैसे कहीं ठहर सा गया था।
वह फिर बोली --नहीं! नहीं !मैं यहां से वापस जा ही नहीं सकती !आमी फिरे जाईते पारबो ना। तुमरा आमा के यही खाने गुली मेरे दाव। आमार शिशु के मेरे दाव।
वापस जाऊंगी तो मैं ही मेरे बच्चे सईद मुझे भी लोग नोच नोच कर खा लेंगे। मेरी इज्जत की बोटी बोटी कर देंगे ।मैं उससे अच्छा तुम्हारी गोली से ही मरना चाहती हूं। भैया! मुझे गोली कर दो !हम लोगों को यही मार दो!
मेरे बच्चे को कहीं ईसी जंगल में फेंक दो कोई भूखे वीडियो इसे खा लेगा।
मगर मैं वापस नहीं जा सकती ।मैं नहीं जाऊंगी। मुझपे भगवान के लिए एहसान करो। तुम मुझे जाने देना नहीं चाहते, कोई बात नहीं। मगर हमें यही पर मार डालो। गोली कर दो।
मैं वापस जाऊंगी अपने देश तो मुझे पागल कुत्तों की तरह लोग नोच नोच के खा जाएंगे। मेरी इज्जत की बोटी बोटी कर देंगे। मेरे बच्चे को भी जीने नहीं देंगे। इस से अच्छा है कि तुम्हारे गोली से मर जाऊं।
आमाके मेरे दाव...!आमाके मेंरे दाव!
भगवान के लिए हमें मार डालो। हमें वापस नर्क में भेजने से अच्छा तो तुम्हारे हाथ से मर जाना अच्छा !हमें भगवान के लिए हमारे रक्षा के लिए! हमारी इज्जत की रक्षा के लिए! हमारे बच्चे को मार डालो! हमें मार डालो!
वह जार जार हो रोने लगी। उसी के साथ उसका शिशु भी क्रंदन करने लगा। वातावरण में न जाने कैसी हल्की सी लाली चटकने लगी थी। या यूं कहें तीसरा पर खत्म होकर चौथा पर लगने वाला था।
उस नवजात शिशु का क्षीण क्रंदन। उन अब लाओ का क्रंदन। न जाने क्यों उसको ऐसा लगने लगा कि वह धर्म संकट में पडता जा रहा है।
करण को लगने लगा उसकी अंतरात्मा क्षीण होती जा रही है। उसकी अंतरात्मा उस बच्चे के लिए सोचने के लिए मजबूर होती जा रही है। उसकी अंतरात्मा उन अबलाओ के क्रंदन पर विचार करने को दिल कर रहा था।
वह समझ नहीं पा रहा था। कि क्या करें क्या न करें ।उन्हें जाने दे वापस जाने के लिए। मान नहीं रही थी वापस जाना ।नहीं चाहती थी। वह कह रहे थे- कि हमें गोली मार दो- हमें जान से मार दो।
उस अबला ने अपने बच्चे को उसके संगीन के आगे कर दिया था। बोली-- इसे मार दो! और हमें भी मार दो !भूखे मरने से अच्छा, तो एक झटके में मर जाना अच्छा!
जिल्लत भूखमरी की जिंदगी जीने से अच्छा- तो मर जाना अच्छा।
नवजात शिशु छोड़कर अनधन करता रहा और अभिनदन करती रही उसका दिन न जाने क्यों पिघलने लगा था
वह सोच नहीं पा रहा था ।क्या करें क्या न करें! धर्म संकट जैसे सामने खड़ी थी !
जैसे अर्जुन के सामने धर्मसंकट था ।और श्रीकृष्ण ने उसे धर्म युद्ध के लिए उकसाया था। मगर यहां कोई श्रीकृष्ण नहीं था ।कि उसे धर्म युद्ध के लिए तैयार करें ।अर्जुन ..क्षिण पडता जा रहा था ।अर्जुन क्षीण पड़ता जा रहा था।
एक दूध मोहे बच्चे को और दूध मोह बच्चे की मां को मैं मार नहीं सकता
यह मेरा धर्म मुझे इस बात की इजाजत नहीं देती ।कि किसी नवजात बच्चे की जिंदगी को मौत के हवाले कर दूं ।किसी नवजात बच्चे की मां को मौत के हवाले कर दूं।
प्रार्थना करने लगा। हे !भगवान हे !परमपिता परमेश्वर मैं क्या करूं? देश की रक्षा, सीमा रक्षा भी मेरा धर्म है! और यह अबला नारियो का
जान लेने का की इजाजत हमारा धर्म नहीं देता।
फिर...!?
मैं...क्या करूं?
हे! भगवान। हे !परमपिता परमेश्वर! मुझे सही रास्ता बता दो! किस रास्ते पर मुझे जाना है?
शिशु क्रंदन करता जा रहा था ।और अबलाएं भी क्रंदन करती जा रही थी। याचना करती जा रही थी। बार-बार यही याचना कर रही थी ।या तो हमे जाने दो ।या फिर मार डालो।
करण धर्म धर्म संकट में था।
...........!.........?.........!?
करण ने अपने बंदूक को सीधा किया और उसके नाल अपने कनपटी पर लगाया। वह घोड़ा दबाना ही चाहता था ।कि उसे एक झटका सा लगा। बंदूक दूर जाकर गिरा।
व क्रंदन करती हुई नारी बोली-- दादा! ईरकम कर वेन ...ना। दादा ईरकम कर बेन ....ना आमी फिरे जाबो !...दादा आमी... फिरे जाबो! ... आमी फिर जाबो।
ना जाने वो कैसा प्यार था!? न जाने वह कैसा मातृत्व था। न जाने वह कैसा भातृ्त्व था।न जाने कैसा वह मानवता थी-- जो
किसी एक को-- अपनी आंखों के सामने मरता हुआ देख नहीं सकती थी !एक दूसरे की जिंदगी को अनजान होते हुए भी मारना नहीं चाहती थी।
हां यही यही मातृत्व ;हां!यही मानवता- इंसान को इंसान बनाए रखती है! विश्वयुद्ध होने से रोक सकती है!!
सुबह का उजाला चारों ओर फैल गई थी। लालिमा बिखरी- बिखरी सी थी !ऐसा लगता था -कि रात और दिन एक साथ मिलकर; किसी नदी किनारे बैठकर;एक दूसरे में समा गया हों।
-- समाप्त ---