हर आवाज के पीछे एक आवाज होती है,
सुन सके जो वो ही सच्चा इंसान होता है.
झूठ दुनियां में है इतने हर कोई सच समझ बैठा है,
ख़ुद को ख़ुदा और सब को गुलाम समझ बैठा है.
तोड़ जिसने दी है ज़ंज़ीर गुलामी की,
उसको ही मुल्क का गद्दार कहता है.
बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात ना कहोगे,
ऐसा कहने वाले मुंशी प्रेमचंद को भी अंग्रेज़ो ने गद्दार बताया था. ( समर्पित है कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद को जो अंग्रेजो से ही नहीं बल्कि लड़ते रहे सामाजिक अन्याय से. ठाकुर का कुंआ, कफ़न, गौ दान, दो बीघा ज़मीन जैसी रचनाएं लिख कर जिसने मनुवाद की ख़िलाफ़त की आज कितने कायस्थ उन प्रेम चंद के मुरीद है? अपने को क्षत्रिय बता खुद को उस अन्याय से जोड़ कर खुश है. )