नेकी कर और दरिया में डाल ( कहानी अंतिम क़िश्त)
उमरे इंसपेक्टर के पास सिर्फ़ कृष्णा सिपाही के बयान के अलावा ऐसा कोई और सबूत नहीं था। जिससे सिद्ध किया जा सके कि सारा पैसा कोतवाली थाने में जमा किया गया था । फिर उस पैसे को थाना के इंचार्ज ने दबा दिया ।
उमरे इंस्पेक्टर ने सारी बात ज़िले के एसपी साहब को बता दी , तो एस पी साहब ने इंस्पेक्टर गौतम को बुलाकर डांटते हुए कहा कि तुम लोगों ने एक रिक्शे वाले के द्वारा दिये गए पैसों को दबा दिया और उसे ही डकैती के केस में फ़ंसा दिया । जवाब में गौतम ने कहा कि यह बात बिल्कुल झूठ है । न ही रिक्शावाला हमारे थाने में आया न ही हमारे पास कोई पैकेट जमा किया । तब एस पी साहब ने कहा पर सिपाही कृष्णा तो इस बात की पुष्टि कर रहा है । जवाब में गौतम ने कहा कि उस कृष्णा सिपाही को मैंने कुछ दिनों पहले एक फ़रियादी से पैसे मांगने के बाबत बहुत डांटा था । शायद इसी खुन्दक में वह मुझे बदनाम करने और फ़ंसाने की सोच रहा है । आप चाहें तो दो और सिपाही उस दिन थाने में थे । उनसे मेरी बात की तस्दीक कर सकते हैं । इसके बाद एसपी साहब ने इंस्पेक्टर गौतम को कहा कि मुझे अगर पता चला कि तुम जो कह रहे हो वह ग़लत था तो तुम्हारी खैर नहीं ।
पंद्रह दिन ऐसे ही गुज़र गए। रोमनाथ ज़ेल में आंसू बहाते हुए समय काट रहा था । उधर उसकी पत्नी की हालत हास्पिटल में दिन-ब- दिन बिगड़ती ही जा रही थी । कृष्णा ठाकुर छुट्टी लेकर अपने गांव चला गया था । वह इस घटना से बहुत दुखी तो था ही साथ ही वह मानसिक रुप से परेशान और विचलित भी था । समय के साथ उसकी मानसिक हालात और बिगड़ने लगी थी । कुछ दिनों बार कृष्ना को कहीं से पता चला कि रोमनाथ की पत्नी भगवान को प्यारी हो गई तो उसका मानसिक संतुलन और बिगड़ गया ।
6 महीने और गुज़र गये । अविवाहित कृष्णा ठाकुर की मानसिक हालात के बिगड़ने के कारण उसे मेडिकल ग्राऊंड पर लंबी छुट्टी दे दी गई । मोहननगर थाने के इंचार्ज इंस्पेक्टर उमरे कृष्णा के बारे में ज्यादा चिन्तित रहते थे । क्यूंकि उन्हें यह आभास था कि कृष्णा की यह हालात किस वजह से हुई है ।
इस तरह 6 महीने और गुज़र गए अब कृष्णा की मानसिक हालात सुधरने लगी थी । अत: उसने अपनी ड्यूटि ज्वाइन कर लिया व अपने काम को अच्छे से निभाने लगा । एक दिन उसने अखबार में पढा कि रोमनाथ पर लगे आरोप न्यायालय में सिद्ध हो गया है और उसे 2 साल की कड़ी सज़ा सुना दी गई है । यह पढकर वह फिर बुरी तरह परेशान व चिन्तित हो गया ।
अगले कुछ दिनों में उसने अग्रवाल वक़ील के माद्ध्यम से एक शपथ पत्र देकर न्यायालय से अपनी बात कही कि रोमनाथ पूरी तरह से निरपराध है । उसने रुपियों से भरा पैकेट कोतवाली थाने में मेरे ही सामने ज़मा कराया था । जिसमें 6 लाख रुपिए थे । उन पैसों को देखकर वहां के एस एच ओ गौतम को ललाच आ गया । और उसमें से 3 लाख खुद रख लिया और हम तीन सिपाहियों को एक एक लाख रुपिए देकर यह कहने लगा कि उसके थाने में रोमनाथ रुपियों भरा पैकेट न जमा कराया न ही यहां आया था । मैंने अपने लोगों को सामने शुरुवात में इस बात का विरोध किया पर मेरे विरोध को अनसुना कर दिया गया और मुझसे कहा गया कि अब कुछ और विरोध में कहोगे तो तुम्हारा अन्जाम बहुत बुरा होगा । बस इसी दबाव व डर में मैं इस बात को आगे किसी को बताना उचित नहीं समझा । मुझे दिया गया एक लाख रुपिया भी मैनें थाने के अपने लाकर में ही सुरक्षित रखा है । ताकि जब समय आए तो उन पैसों को उसके मालिक के पास लौटा सकूं । कृष्णा के शपथ दाखिल होने के कारण कोर्ट ने उस केस को दुबारा सुनना प्रारंभ किया और इंस्पेक्टर गौतम व दो अन्य सिपाहियों को बुलाकर उनका पक्ष सुना । उन तीनों ने कृष्णा की बात को सिरे से खारिज़ कर दिया और कोर्ट से कहा कि कृष्णा झूठ बोल रहा है व कोर्ट को बेवज़ह गुमराह कर रहा है । अंत में कोर्ट ने कृष्णा को कोर्ट को गुमराह करने का दोषी पाकर उस पर 10 हज़ार रुपिये की फाइन थोक दी और फाइन न पटाने पर तीन महीने की सज़ा सुना दी ।
अपने लिए सज़ा सुनते ही कृष्णा गुस्से से पागल हो गया और उसने अपनी पेंट की ज़ेब से पिस्टल निकालकर पास ही खड़े इंस्पेक्टर गौतम , सिपाही उदयभान , सिपाही गणेश की छातियों पर गोली दाग दिया और फिर पलटकर जज साहब को भी गोलियों से भून दिया । वे चारों वहीं के वहीं ढेर हो गए। इस कृत्य हेतु क्रिष्णा को पकड़ लिया गया और उसे अदालत से 20 वर्ष की सज़ा सुनाई गई । सज़ा के दौरान उसकी मानसिक हालात बिगड़ने के कारण उसे आगरा के पागलखाने में भेज दिया गया है ।
समय के साथ कृष्णा के व्यौहार व चाल चलन के कारण आगरा पागलखाने के चिकित्सक ,कंपाऊंडर व,कर्मचारी गण उसके प्रति बहुत सहानुभूति रखते हैं वे चाहते हैं कि वह जल्दी ठीक हो जाए और पागल खाने से उसे छुट्टी मिले पर कृष्णा बिल्कुल नहीं चाह्ता कि उसे पागलखाने की दुनिया को छोड़कर बुद्धिमानों की दुनिया में फिर से वापस जाना पड़े।
उधर रोमनाथ की सज़ा भी पूरी हो गई है । वह ज़ेल से रिहा हो गया है । पर अब वह दुर्ग शहर को त्यागकर के अपने गांव गंडई में जाकर रहने लगा है । वहां वह अब चरवाहे का काम करता है । गांव के बहुत सारे जानवरों को वह सुबह से शाम तक गांव के ही बाहर जंगल में घुमाता है ।अब रोमनाथ को जानवरों के बीच जीने में ज्यादा सुकून मिलता है । उधर उसका रिक्शा अब भी मोहन नगर थाने में खड़ा है । उसके रंग रूप में ज्यादा बदलाव नहीं आया है ,फिर भी उसके रिक्शे को पहचानना मुश्क़िल है, क्यूंकि उसके जैसे दर्जनों रिक्शे थाना परिसर में लावारिश खड़े है।
( समाप्त)