नेकी कर और दरिया में डाल ( कहानी प्रथम क़िश्त )
रात के दस बज चुके थे । रोमनाथ एक सवारी को पुलगांव में उनके घर छोड़कर बैगा पारा स्थितअपने घर लौट रहा था । जैसे ही वह गंजपारा चौक पहुंचा सड़क किनारे खड़े एक श्ख़्स ने आवाज़ दिया , क्या जल्द से जल्द मुझे रेल्वे स्टेशन ले जा सकते हो ? वैसे तो रोमनाथ का घर जाने का समय हो चुका था। वास्तव में वह दोपहर 4 बजे से रात 10 बजे तक ही रिक्शा चलाता था । साथ ही पिछले तीन दिनों से उसकी पत्नी बीमार थी। लेकिन उस सवारी की याचना भरी आवाज़ सुनकर वह मजबूर हो गया रिक्शा रोकने के लिए । उसने सवारी के बैठते ही बिना मोल भाव किए हुए अपना रिक्शा तेज़ी से रेल्वे स्टेशन की ओर दौड़ा दिया । ठीक 15 मिनट के बाद रोमनाथ का रिक्शा रेल्वे स्टेशन के मुख़्य द्वार पर आकर खड़ा हो गया । उस सवारी ने उसे सौ रुपिए का नोट देकर तेज़ी से प्लेटफ़ार्म की ओर दौड़ पड़ा , और रोमनात अपना रिक्शा लेकर अपने घर की ओर चल पड़ा । तरूण टाकिज पहुंचने के बाद रोमनाथ को लघु शंका के लिए उतरना पड़ा । थोड़े अंतराल के बाद वह जैसे ही आगे बढने के लिए दुबारा रिक्शा में चढना चाहा, उसे पीछे की सीट पर एक पैकेट दिखाई दिया । उसने पैकेट को हाथों में लेकर उसके अंदर के सामान को देखा तो उसके माथे पर बल पड़ गया । पैकेट के अंदर नोटों का बंडल था । उसे एक पल में ही समझ में आ गया कि यह अंतिम पैसेन्जर , जिसे वह रेल्वे स्टेशन छोड़कर आ रहा है । उसी का पैकेट है । रोमनाथ को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूं ? नोटों का बंडल उसे परेशान कर रहा था कि इसका क्या किया जाए? एक पल उसके दिमाग ने कहा कि इसे तुम ही रख लो, पर उसने निर्णय लिया कि इस पैकेट को पुराबे बस स्टैंड स्थित कोतवाली में ज़मा करा दिया जाए । तरूण टाकिज से जब वह कोतवाली की ओर रिक्शा दौड़ाया तो उसके रिक्शे के पीछे दो कुत्ते भी दौड़ने लगे । वे दोनों कुत्ते रोमनाथ के बड़े ही चहेते थे । कोतवाली पहुंचने के बाद रोमनाथ ने देखा कि वहां एक सब इंस्पेक्टर और तीन सिपाही गण टेबल के चारों ओर आपस में बातें करते हुए बैठे हैं । रोमनाथ वहां बैठे एक सिपाही जिसका नाम कृष्णा ठाकुर को अच्छे से जानता था । उसे मालूम था कि कृष्णा ठाकुर एक अच्छा व्यक्ति है ।
रोमनाथ ने कृष्णा ठाकुर को बाहर बुलाकर अपने रिक्शे में यात्री द्वारा छोड़े गए पैकेट के बारे में बताया तो कृष्णा ठाकुर थोड़ी देर सोच में पड़ गया फिर उसने रोमनाथ से कहा कि पैकेट को पकड़ो और चलो अंदर एस आई के पास्। वहां हम तीनों सिपाही के सामने उन्हें यह पैकेट सौंप देना और पूरी घटना बता देना । उसके बाद तुम अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाओगे।
रोमनाथ ने वैसे ही किया । अंदर जाकर एस आइ को वह पैकेट सौंप दिया और सारी बातें बता दिया । इन्सपेक्टर गौतम ने सिपाही उदयभान को पैकेट देते हुए कहा कि इसे आल्मारी में रख दो और इस रिक्शे वाले का बयान एक कोरे कागज पर लिखवा लो । भविष्य में काम आ सकता है ।
उसके बाद रोमनाथ को घर जाने कह कर इंस्पेक्तर गौतम दूसरे कामों में उलझ गया । रोमनाथ के पीछे पीछे वे दोनों कुत्ते भी उसके घर तक गए। वहां रोमनाथ ने उन्हें कुछ डबलरोटी खाने के लिए दिए। वे दोनों कुत्ते रोटी खाकर वहीं रोमनाथ की झोपड़ी के बाहर सो गए। घर में रोमनाथ की पत्नी लेटे लेटे उसकी राह देख रही थी । रोमनाथ ने उसका हाथ पकड़कर देखा तो अभी भी उसकी पत्नी को तेज़ बुखार था । रोमनाथ खाना खाकर पलंग पर लेटे लेटे सोचने लगा कि अगर एक दो दिनों में देवकी का बुखार नहीं उतरा तो उसे किसी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा ।
उधर पोलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर गौतम ने उदयभान से पैकेट मंगा कर कहा कि इसमें 6 लाख रुपिए हैं । जो क़िस्मत से हमारे थाने में आ गए हैं और अब वापस अपने मालिक के पास जाना नहीं चाहते । अत: मैं इसकी भागीदारी तय करता हूं । इसमें से तीन लाख रुपिए मेरे होंगे और बाक़ी तीन लाख रुपियों में से एक एक लाख रुपिए तुम तीनों के । यह सुनकर किसी ने कुछ नहीं कहा पर कृष्णा के माथे पर चिन्ताओं की लकीरें उभरने लगीं । पैसा तो उसने रख लिया लेकिन उसका दिल कह रहा था कि यह उचित नहीं है ।
अगले दिन रोमनाथ को ढूंढते मोहन नगर थाना से एक सिपाही उसके घर पहुंचा और उसे अपने साथ मोहन नगर थाने ले गया। थाने में थाना इंचार्ज के कमरे में एक व्यक्ति बैठा था । जिसे देखते ही रोमनाथ पहचान गया कि यह वही व्यक्ति है , जो कल मेरे रिक्शे का अंतिम सवारी था । उसने रोमनाथ को देखते ही कहा यही है इंस्पेक्तर साहब मैं कल रात इसी के रिक्शे में रेल्वे स्टेशन गया था । तब इंस्पेक्टर ने रोमनाथ से पूछा कि क्या तुम्हें कल अपने रिक्शे में इनके उतरने के बाद मिला था ? जवाब में रोमनाथ ने कहा हां साहब इनके उतरने के बाद मुझे एक पैकेट मिला था ,उस पैकेट मेँ नोटों का बंडल था । मैंने बस स्टैन्ड स्थित कोतवाली जाकर उस पैकेट को वहां के इंस्पेक्टर के पास जमा करा दिया था । उस समय वहां तीन सिपाही गण भी मौजूद थे । उसके बाद मैं अपने घर गया था ।
यह सब सुनकर थाना इंचार्ज और उस शख़्स के चेहरे पर राहत के भाव उभरे। इंस्पेक्तर ने तुरंत ही कोतवाली फोन लगा कर इस बात की तस्दीक करनी चाही । तो उधर से फोन इंसपेक्टर गौतम ने उठाया और जवाब दिया , ऐसी तो कल कोई बात नहीं हुई । कल रात मैं ही ड्यूटी पर था । कल किसी रिक्शे वाले ने यहां आकर कोई पैसों से भरा पैकेट हमें नहीं सौंपा है । आप कल रात यहां उपस्थित दो और सिपाही उदयभान और गणेश से यह पूछ सकते हैं । कल रात एक और सिपाही ड्यूटी पर था । जिसका नाम है कृष्णा ठाकुर वह आज सुबह ही अंतागढ चला गया है । संपर्क हो सके तो उससे भी पूछ लीजिए।
( क्रमशः)