रचना आज जैसे ही घर से निकली एक अजीब वाक्या हुआ,
वो यह कि, जैसे ही उसने, घर की चौखट से पाॅव बाहर रखा उसको लगा कि किसी ने उसे धकेला है ,उसने आगे पीछे देखा वहा कोई न था।
यह कही वहम तो नही ।
नही यह वहम कैसे हो सकता था।
वो गिरी थी,
औंधे मुँह, वो भी ठीक सडक के बीचो बीच।
यह वहम कैसे हो सकता है।
यानि अब वो यहा तक भी पहुंच गया।
आगे वो क्या क्या करेगा ,,इसी भय से रचना मरे जा रही थी।
किसे कहे किसे बताए ,कोई यकीन भी तो नही करेगा।
फिर आजकल सब पढे लिखे है,,
ऐसी बातो से कौन न उसकी हॅसी उडाएगा।
यह सब सोचते सोचते वो झट से उठी व वापस घर लौट आई।उसने बाजार जाने का इरादा ही छोड दिया।
ऐसा पहली बार न हुआ था।
बस फर्क यह था इससे पूर्व उसे आभास ही होता था की कोई उसका पीछा कर रहा है ,कोई साया सा अचानक उससे पास से होकर चला जाता।कई बार उसे लगा ये वहम था।पर कुछ न कुछ सोचने को मजबूर करने वाली बात भी हो जाती थी ।जिसके सवाल का हल उसके पास अक्सर न होता।
यह पहले तो इतना कभी न हुआ पर अब दो तीन वर्षो से कुछ ज्यादा ही महसूस होने लगा था।
रचना ने यह बात अपनी सहेली तृप्ति से भी कही थी।पर तृप्ति ने भी वही सब कहा जो अन्य कहते और उस पर यकीन न कर ,उल्टा उसे पागल तक कहेगे , कह कर उसका मजाक ही उडाया ।तृप्ति रचना के स्कूल के समय की सहेली थी।व उनके बीच सब बाते होती थी ।यहा तक की वो अपनी निजि बाते भी अक्सर आपस मे बांट लेती।
आज की घटना ने उसे डराने के साथ साथ बहुत झकझोर दिया।
क्या अब वह घर के बाहर अकेली जा ही नही सकती।ये क्या हो रहा है ।वो क्या करे उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था।एकमात्र सहेली जिससे वो अपनी बाते दिलखोल कर लेती थी उसके सामने भी उसका उपहास ही उडा।उपहास तो उडा ही उडा, उसने पागल तक कहने को न छोडा।
अब वो समीर से बात करे क्या ।समीर उसका पति,पहले ही शकी से मिजाज, व गुस्सैल, गुस्सा व चिढ़चिढ़ापन उस पर कुछ यू सवार रहता जैसे वो उसकी जीवन संगिनी न होकर कोई शरीक हो कोई पराई अथवा जन्म जन्म की शत्रुता लिए हो।पर ऐसे कैसे चलेगा।क्या वो यू ही घुट घुट कर सहन करेगी।अथवा वो उसे यू ही तंग करता रहेगा।
कुछ भी तय न कर पा रही थी ।समीर से बात करना उसे यू भी नागवार था कि उसे लगता जैसे वो तो पहले ही उससे पीछा छुडाने की सोचता रहता है। रचना की अपनी आदत खुद भी तो शक करने की थी।ऐसा नही कि समीर सदा से ही ऐसा था ।शादी के कुछ दो एक वर्ष तक तो उनमे खूब स्नेह व प्रेम था।
पर इधर जब समीर का स्थानांतरण दो वर्ष के लिए बैंगलोर हो गया तो इस कारण वो दिल्ली अकेली रहने लगी,उसे अकेले रहते किताबे ,उपन्यास पढने का शौक लगा व उन्ही के चरित्र उसके जीवन को प्रभावित करने लगे।और उसी से वो शक सी करती।अक्सर किस्से कहानियो के किरदार से अपने जीवन की तुलना करती व उनमे ही खोई रहती ,,कभी कोई पुस्तक पढती जिसमे नायक किसी अन्य लडकी के साथ कोई संबंध रखता होता ,, तो उसे समीर पर शक हो जाता ।और फिर कभी वो किसी समय,, कभी किसी समय,, फोन कर कर समीर को परेशान सा करती।एक बार तो एक जासूसी उपन्यास क्या पढा कि उसने खुद को जासूस बनना ही स्वीकार कर लिया और पहुंच गई बैंगलोर। समीर का पीछा किया किधर जाता है कब घर लौटता है ।कही किसी मित्र से तो नही ज्यादा मिलता वो भी कही लडकी हुई तो। यह सब बाते उसे स्वयं तो परेशान करती ही पर समीर को भी irritated, लगती।
ऐसे ही एक बार समीर ने अपने दोस्तो को जिस फ्लैट मे वो रहता था वहा बुला रखा था समीर तो था शादीशुदा पर अन्य दो आफिस के सहकर्मी bachelor थे।और यह महोदया ऐसे मे वहा अचानक प्रकट हो गई। इसके वहा एकदम अचानक प्रकट हो जाने से समीर की स्थिति बडी लज्जित सी हुई। जब उसे अचानक वहा आई देख उसे अपने मित्रो को वापस खाना खिलाए बगैर भेजना पडा।
यही कारण था ,कि समीर उससे दूर सा ही रहता व चिढ़चिढ़ापन रखता ।उसे वो उतना understanding नही समझता था। जितना वो पहले थी।
वो समझ तो गया था कि इसका यहा आना वो भी अचानक बिन बताए उस पर शक सा करने के कारण था पर उसने यह बात अपने दिल मे ही रखी ।क्योकि वो झगडे या उसके शक को और हवा देना नही चाहता था।
खैर वो खुद भी अटपटा सा महसूस कर रही थी।
दोनो मे क्या बात हुई, देखो ,उसका छोटा सा अंश।।
Surprise ,
अरे तुम,
यू अचानक ,
किसके साथ आई,?
अरे बताती हू ,
पहले अंदर तो आने दो ,
बैठने वैठने दो,,
तो अच्छा ,,
जनाब यहा पार्टी के mood मे है,,
अरे आप तो disturb हो गए होगे,,
कि आप की पार्टी मे भाभी ने आकर खलल डाल दिया ।
है न,,
दोस्तो की तरफ मुखातिब होती हुई वह बोली।
जो खुद को भी उसे बाद मे बडा अटपटा लगा कि यह क्या कह दिया ।
इतना awkward समीर को पहले कभी न लगा पर जब उसके दोस्त स्थिति भांप गए तो उन्होंने वहा से खिसकने मे ही भलाई समझी।जाते हुए भी उसने उन्हे formality sake भी रूकने को न कहा।
खैर उस रात बस उन्होने कैसे तैसे खाना खाया जो कि समीर ने ही बनाया पर दोनो अजनबी से बन कर रहे।
रचना पूरी रात करवटे बदलती रही ,
व बार बार समीर की और खिसकती,शायद समीर का गुस्सा शांत हो व वो उससे लिपट जाए व उनकी मिलन की प्यास बुझे।पर समीर उससे बेहद खफा था।इसीलिए उसने सारी रात उसपर कोई वक्त न देकर उसे भी तडपाए ही रखा ।वर्ना इतनी देर बाद पत्नि से रूबरू होना व कोई गर्मजोशी का न होना यह सब बताने को काफी था।बस वो दो दिन ही वहा रूकी और वापस दिल्ली लौट आई। ऐसे मे क्या वो समीर को बता पाएगी कि उसके साथ क्या हो रहा है वो इतना खफा रहता है कब उस पर यकीन करेगा।
यह सब जो उसके साथ हो रहा था वो उसकी बिमारी का कारण होने लगा।वो अवसाद मे रहने लगी जब समीर को पता चला कि वो अवसाद की और जाने लगी है तो उसने अपने तबादले के लिए जोर लगाया व genuine reason के चलते उसके बाॅस ने उसका तबादला दोबारा दिल्ली करने की मंजूरी दे दी ।।अब वह चिंतित भी हो चला व खुद को ही कसूरवार समझने लगा। कि आखिर उनकी शादी को ज्यादा समय भी तो न हुआ था।मात्र चार वर्ष ही तो हुए थे।खैर अब समीर उससे बात चीत करने लगा व सामंजस्यपूर्ण व्यवहार उससे रखने लगा उसे समय देने लगा जब बात होती तो वो कही समीर पुनः उससे नाराज न हो जाए तो उस डर से वो घटना वाली बात उससे छिपाती रही पर तृप्ति से वो सब कह देती थी।उससे वह कुछ न छिपाती।अचानक उसे पता चला कि तृप्ति किसी शादी के सिलसिले से उसके पास आ रही है व वह दो दिन उसके पास रूकेगी।तो वह बडी खुश हुई ,ये बात उसने समीर को भी बताई। समीर ने देखा कि वो इस खबर से चहक रही है तो उसने मुस्कान के साथ चुटकी लेते हुए कहा ,आपकी यह दोस्त शादीशुदा है या कुंवारी।
मार खाओगे,
यह सब के बाद इधर फिर समीर के आफिस जाते ही उसने वो अधूरे उपन्यास को उठाया तो वही वाक्या उसके समक्ष पुनः हुआ।उसे लगा कोई है ,जो उसके साथ बैड पर बैठा है। उसने पूरा जोर लगाया कि वो चिल्लाए पर उसके हलक से आवाज तक न निकल रही थी।
वो उठ कर चलने को तैयार हुई पर यह क्या उससे उठा ही न जा रहा था।उसका पूरा बदन पसीने से लथपथ था।
और जैसे ही चिल्लाने लगी तभी दरवाजे की घंटी बज उठी,
उसने कैमरे से देखा तो तृप्ति सूटकेस लिए खडी थी।उसे थोडी तसल्ली हुई। वो संयत होती हुई अब उठी दरवाजा खोला व तृप्ति को सारी घटना बताई।तृप्ति ने आसपास देखा कि कोई अजीब या कोई भी कैसा भी चिन्ह मिले जिससे उसकी कही बात पुख्ता हो सके पर न कोई चिन्ह न मिला।
अब वो तृप्ति की मेहमानवाजी मे लग गई व सामान्य हो गई। दोनो ने खूब बाते की व शाम को समीर के आफिस से लौटने पर तृप्ति ने ही बात छेडी व समीर को सब बताया। कि रचना के साथ क्या क्या हो रहा है।
पहले तो समीर को भी समझ न आया कि क्या करे।फिर उसने एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक से बात करना मुनासिब समझा व उधर वो एक पंडित के पास भी गया व उसको सारी बात बताई। पंडित ने तो पूजा करवा कर बांग्लामुखी हवन की सलाह दी जबकि डॉक्टर से वो आज मिलने के लिए आफिस से छुट्टी भी ले चुका था।
वहा डाक्टर ने उससे कई प्रश्न किए। ।व वो उनकी जवाब भी देती गई। ऐसे ही उसने कुछ दवा देकर समीर से अलग से बुला कर कुछ सवाल जवाब किए व वो उस दिन वो घर आ गए व दो दिन की अगली appointment ले वो जब फिर गए तो चिकित्सक ने examine कर बताया कि यह उसके अकेलेपन के कारण यह सब स्थिति हो रही है।कोई साया या ऐसी कोई paranormal बात होने की कोई पुष्टि नही है।वो तो उपन्यास आदि के चरित्र इसके दिमाग मे हावी ,हुए ही वही इसे प्रभावित करते है।
अब दोनो को सारी बात समझ आ गई। समीर ने घर आते ही जो पहला काम किया वो थी उसके उपन्यास आदि किताबो का उठा कर किसी को दे देना।और फिर उसके साथ समय बिताना अभी दो सप्ताह भी न हुए थे कि यह सब घटनाक्रम एक दम बदला व सब सामान्य होने लगा।
अब दोनो ने मन बनाया कि वो व्यस्त रखने के लिए घर मे खुशी लाएगे। और एक वर्ष बाद उनके यहा एक बेटी पैदा हुई जिसका नाम उन्होंने खुशी रखा।
और इस तरह वो अनजाने भय का अंत ऐसे हुआ।
समाप्त।
रचनाकार।
संदीप शर्मा।देहरादून उत्तराखंड से।
नोट:-
दोस्तो यह कहानी तो काल्पनिक है पर इसका मजमून वास्तविक है।होता क्या है जो साहित्य या विचार हम पढते सुनने व देखते है वे हमारे मन को भीतर तक प्रभावित करते है, व हम सारी दुनिया को वैसे ही समझने लगते है।तो यह स्वाभाविक भी है व इसे आप रोक भी नही सकते तो ऐसे मे एक काम जो आप कर सकते है वो यह कि कभी हल्का साहित्य न पढे।न ही उलूल जलूल के निम्न स्तरीय विचारो मे उलझे व ऐसी घटनाओ आदि को कोई तवज्जो ही दे।फिर देखे आपके चरित्र मे ही निखार नही आएगा ।आप एक उदाहरण की तरह नजर आएगे।यह मेरा मत है।।
बाकि आपकी मर्जी। ।
जय श्रीकृष्ण साथीगण
जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण।