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लेखन को कोई बहुत पुरातन अनुभव नही है ।पर लिखना भाता है।मन के विचारो का बादल शब्दोके बादल बन फुहार करते है तो रचना बनती है।इसमे भावो की सौधी सी महक नूतन प्राण फूंकती है तो पाठक के ह्रदय मे अपने नेह व स्नेह की पौध अंकुरित करती है। तब उनकी वाह या समीक्षा, मुझमे उर्वरक सा बन कर मुझे पुष्टिप्रद करती है तो ऐसे ही प्रेम की बयार रिश्ते बनाती अपनी धारा प्रवाह स्नेह की अविस्मरणीय यादे अपने साथ लेती चलती है। आप का स्नेह व प्रेम यह बीज के रोपण को है।जडे आपकी प्यास बन दूर दूर जैसे जैसे फैलाएगी। मुझमे समृद्धता आती जाएगी। जय श्रीकृष्ण।

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-06-20
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-05-26

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आज के संदर्भ मे श्रीमदभागवत गीता, संदीप कृत।

आज के संदर्भ मे श्रीमदभागवत गीता, संदीप कृत।

जयश्रीकृष्ण पाठकगण सुधिजन व मित्रगण। यह किताब मैने आपके निमित्त "श्रीमद्भागवत गीता जी" के कुछ शब्दो को सही सही विवेचन अपनी बौद्धिक कौशल के आधार पर आपकी भेंट करने की कोशिश की है। आशा है इन्हे समझकर गीता जी पढनी आसान लगेगी।एक प्रयास है आशा ह

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ईबुक:

₹ 33/-

आज के संदर्भ मे श्रीमदभागवत गीता, संदीप कृत।

आज के संदर्भ मे श्रीमदभागवत गीता, संदीप कृत।

जयश्रीकृष्ण पाठकगण सुधिजन व मित्रगण। यह किताब मैने आपके निमित्त "श्रीमद्भागवत गीता जी" के कुछ शब्दो को सही सही विवेचन अपनी बौद्धिक कौशल के आधार पर आपकी भेंट करने की कोशिश की है। आशा है इन्हे समझकर गीता जी पढनी आसान लगेगी।एक प्रयास है आशा ह

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कविताए मेरी हर रोज की।

कविताए मेरी हर रोज की।

रोजमर्रा की शब्दांजली। आपके रूबरू। मौलिक रचनाकार, संदीपशर्मा।।

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कविताए मेरी हर रोज की।

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रोजमर्रा की शब्दांजली। आपके रूबरू। मौलिक रचनाकार, संदीपशर्मा।।

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कैसी है री तू।मेरी कविता।

कैसी है री तू।मेरी कविता।

यहा रोज इक नई कविता डालूगा। यही प्रयास है। दस होने पर यह पूर्ण होगी। जय श्रीकृष्ण।

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कैसी है री तू।मेरी कविता।

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यहा रोज इक नई कविता डालूगा। यही प्रयास है। दस होने पर यह पूर्ण होगी। जय श्रीकृष्ण।

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संदीप  की कलम से।

संदीप की कलम से।

जयश्रीकृष्ण पाठकगण सुधिजन व मित्रगण। आज मै अपनी पुस्तक "संदीप की कलम से" लेकर आपके बीच उपस्थित हुआ हू। यह मेरी पहली किताब की शक्ल अख्तियार कर रही प्रस्तुति है जो मै अपनी परम आदरणीय माता जी "श्री श्रीमति सुषमा शर्मा जी" को सादर स्नेह के साथ अ

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संदीप  की कलम से।

संदीप की कलम से।

जयश्रीकृष्ण पाठकगण सुधिजन व मित्रगण। आज मै अपनी पुस्तक "संदीप की कलम से" लेकर आपके बीच उपस्थित हुआ हू। यह मेरी पहली किताब की शक्ल अख्तियार कर रही प्रस्तुति है जो मै अपनी परम आदरणीय माता जी "श्री श्रीमति सुषमा शर्मा जी" को सादर स्नेह के साथ अ

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 चल आ कविता कहे ।

चल आ कविता कहे ।

जयश्रीकृष्ण मित्रगण सुधिजन व पाठकगण यह पुस्तक एक काव्य प्रस्तुति है,,जो जीवन के रंग के कई दस्तावेज। आपको दिखाएगी, आप रंगरेज के रंगो का आनंद लीजिएगा। आप को समर्पित। है आपके प्यार को। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण

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 चल आ कविता कहे ।

चल आ कविता कहे ।

जयश्रीकृष्ण मित्रगण सुधिजन व पाठकगण यह पुस्तक एक काव्य प्रस्तुति है,,जो जीवन के रंग के कई दस्तावेज। आपको दिखाएगी, आप रंगरेज के रंगो का आनंद लीजिएगा। आप को समर्पित। है आपके प्यार को। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण

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संदीप की डायरी।

संदीप की डायरी।

मन की बाते करती प्यारी, लो जी आई संदीप की डायरी। जयश्रीकृष्ण

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मन की बाते करती प्यारी, लो जी आई संदीप की डायरी। जयश्रीकृष्ण

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कहानियां कैसी कैसी।

कहानियां कैसी कैसी।

यहा बस कहानीकार ने आपको विभिन्न रंग की कहानी रच आपके मनोरंजन का सोचा।है। ठीक किया न। तो जय श्रीकृष्ण कह आनंद ले। जयश्रीकृष्ण संदीप शर्मा (कहानीकार)

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यहा बस कहानीकार ने आपको विभिन्न रंग की कहानी रच आपके मनोरंजन का सोचा।है। ठीक किया न। तो जय श्रीकृष्ण कह आनंद ले। जयश्रीकृष्ण संदीप शर्मा (कहानीकार)

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खिलते एहसास।

खिलते एहसास।

प्रिय पाठकगण सुधिजन व मित्रगण, जयश्रीकृष्ण,, आप सब को मेरा सादर नमस्कार। प्रियवर " खिलते एहसास " का एहसास सहसा ही मस्तिष्क मे उभरा।कई बार हम कई विशेष परिस्थितयों के अधीन बंधे महसूस करते है।वो भी तब जब कोई आस या कामना सामने खडी होती है ।और ऐसे

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खिलते एहसास।

खिलते एहसास।

प्रिय पाठकगण सुधिजन व मित्रगण, जयश्रीकृष्ण,, आप सब को मेरा सादर नमस्कार। प्रियवर " खिलते एहसास " का एहसास सहसा ही मस्तिष्क मे उभरा।कई बार हम कई विशेष परिस्थितयों के अधीन बंधे महसूस करते है।वो भी तब जब कोई आस या कामना सामने खडी होती है ।और ऐसे

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मेरी अपने जीवन की कविता।।

मेरी अपने जीवन की कविता।।

यह कविता संग्रह मैंअपने जीवन के कुछ पलो को जो खट्टे अनुभव लिए हैं,को काव्यात्मक अंदाज मे लिखूगा।जो निजता को सार्वजनिकव सामाजिकतो करेगा पर एक चरित्र को उजागर भी करेगा जिससे मैं खिन्न हूं। ईश्वर मुझे माफ करे व मेरा साथ दे व मुझे हर गलती से रोके। लेखक

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ईबुक:

₹ 66/-

मेरी अपने जीवन की कविता।।

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यह कविता संग्रह मैंअपने जीवन के कुछ पलो को जो खट्टे अनुभव लिए हैं,को काव्यात्मक अंदाज मे लिखूगा।जो निजता को सार्वजनिकव सामाजिकतो करेगा पर एक चरित्र को उजागर भी करेगा जिससे मैं खिन्न हूं। ईश्वर मुझे माफ करे व मेरा साथ दे व मुझे हर गलती से रोके। लेखक

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स्पर्श

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अनूदित।अनुभूतियां। संदीप शर्मा कृत।।

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अनूदित।अनुभूतियां। संदीप शर्मा कृत।।

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दर्द मुझे भी होता है।

12 अगस्त 2024
1
1

दर्द मुझे भी होता है, हर कही,सुन गर सको आवाज तो सुनो। चालाकियाँ समझ जाता हूँ सब, की सब,और तुम समझती नादान, मुझको ,जो न चुन सको यह राह तो न ही चुनो।।कांटो पे माना गुलाब उगते है,बन सको जो पंखुरी को

तिरंगा

12 अगस्त 2024
2
1

आज वतन के नाम की शाम हैं,,मुझे रंग केसरिया पे गुमान हैं,,परचम फैला हैं,इसका हर और साथी,,चौड़ी होती हैं,, देख,, "तिरंगे" को,, लहर ,लहर, लहराते ,अपनी छाती।।बहादुर है मेरी सेना का

मलाल।

12 अगस्त 2024
0
0

एहसास प्रेम का,भी कभी करोगें, या बिन पानी के मछली सा तड़पाओगे। यह तुम्हारे इंकार की बाते अच्छी नही,(2)अच्छा बताओ, इंतजार ही करवाओगें, या कभी गले भी लगाओगे।।सफ़र को पाने को बस चलता ही रहा,(2)

ये भी दिल की ही है।।सच मे।।

17 मार्च 2024
0
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पत्थर मूर्त ही नही ,दिल भी होता है, पिघल जाए शायद यह भ्रम क्यूं होता है।। =/= समझाया था उसे नफ़रत करे और करे जम कर,मगर ध्यान रहे, कि कतार मे खड़ा दुश्मन भी कोई होता है।। =/= मुसाफ़िर था,वह राह का,उसे,

नही करते तो नही करते।।

13 मार्च 2024
1
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मसला अलहदा था कि मैं हँस रहा था, वो क्या है न,कि हम यूँ ऑसू बहाया नही करते,।। क्या हुआ कि जख्म अब.रिसने लगे है, दिल रो लेता है,ऑखों से अब हम रोया नही करते।। तन्हाई से दोस्ती पक्की कर ली है हमने, तन्हा

छटपटाहट। स्पर्श का एहसास।

3 मार्च 2024
1
0

उसके दुख का कारण मैं नही उसकी ख़्वाहिशें थी, जो उसने मेरे कद से ज्यादा बना ली थी।। मैं पहुँचने वाला, बमुश्किल से शाक तक,उसने चाहत,दरख्त की अंतिम छोर बता दी थी।। बहुत मुश्किल से मैं चादर

छटपटाहट।

3 मार्च 2024
0
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उसके दुख का कारण मैं नही उसकी ख़्वाहिशें थी, जो उसने मेरे कद से ज्यादा बना ली थी।।मैं पहुँचने वाला, बमुश्किल से शाक तक,उसने चाहत,दरख्त की अंतिम छोर बता दी थी।।बहुत मुश्किल से मैं चादर मे आता था,

स्पर्श करते किन्नर।

2 मार्च 2024
1
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है समाज का इक तबका, बिखरा है जो कतरा कतरा, जीवित है जीवंत वजूद, पर प्रकृति ऐसी कि हुआ मजबूर।। जी कहती कहता का प्रश्न है, हो जन्म तो मनाते न जश्न है, विडम्बना क्रूर ने किया मजाक, न स्

स्पर्श करते किन्नर।

2 मार्च 2024
0
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है समाज का इक दबका, बिखरा है जो कतरा कतरा, जीवित है जीवंत वजूद, पर प्रकृति ऐसी कि हुआ मजबूर।। जी कहती कहता का प्रश्न है, हो जन्म तो मनाते न जश्न है, विडम्बना क्रूर ने किया मजाक, न स्

खोज

1 मार्च 2024
1
0

खोज करता ही रहा हर कोई, तलाश महज सुकून की थी,,दौड़ भी विचारों की रहीवो भी तो बेसुकून सी ही थी।।=/=संदीप शर्मा। Insta id, Sandeepddn71.

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