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अन्तर्मन की आवाज़ ✍️👑

20 अगस्त 2022

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***********यूँ तो कहूं कुछ धुंधली सी हवा चलती है।
*************जब जब होती हूँ परेशान आत्मा माँ बन 
*****************के बात करती है।।********

मन....... बिखरी बिखरी धूल है अहम की पुड़िया जो बनाता हूँ राजा हूँ कलयुग का नाम से "मन" में कहलाता हूँ।

आत्मा...... कि उड़ जाती है धूल भी जब हवा बन लहराती हूँ,,,,कभी बारिश बनकर गिरती कभी सबक बनकर जीना सिखाती हूँ।।

मन....... सुनता कौन है तेरी जो अकड़ इतनी दिखाती है कोड़ीयो के भाव में तेरी अनदेखी की जाती है।

आत्मा....... कि तू भटकाता है मार्ग तो क्या मैं परछाई बन साथ निभाती हूँ गिराता है जब जब तू नादाँ,,, मैं माँ बनकर पीठ सहलाती हूँ।।

मन......... फिर भी बता तेरी,,,, कौन कदर करता है आँखों से निकलकर नीर सी बहती बता कौन तेरा दामन भरता है।

आत्मा....... तू ताण्डव करके सबको मोह जो लेता है लालच बनकर दिमाग में घुसता मंद पवन सा बहता है,,,,,फिर भी मैं तेरी बात को काट जाती हूँ,,,,,एक बार जवाब देती सोचने पर मजबूर जो कर जाती हूँ।।

मन......... सोच से तेरा क्या बर्चस्व आ जाता है,,,,,, मैं देता गलत राह फिर भी तेरा बच्चा मुझे ही पूजता जाता है,,,,आखिर मैं ही राजा हूँ जो सब पर हुक्म जताता है।।

आत्मा...... भूल है तेरी नश्वर है तू राख बन खाक हो जाता है नाम आत्मा है मेरा शरीर छूटने पर भी जिक्र मेरा किया जाता है।।

मन........ दूँ लाख जवाब मैं,,,,, फिर भी तू आत्मा  कैसे जीत जाती है भ्रम में रखता सबको मार्ग से भटकाता हूँ आखिर गुहार तेरी क्यूँ लगाई जाती है।

आत्मा....... समझ जो तुझको आया चल आज बताती हूँ जब जब चोट लगती है सबको तू देख कर हँसता मैं माँ हूँ अपने बच्चों की चिंख से रो जाती हूँ........ मैं हर एक के सीने में रहती एक किरदार में माँ का भी निभाती हूँ....... तब जाकर में आत्मा कहलाती हूँ।।

मन....... मैं हारा तू जीती यही बात दोहराऊंगा,,,,,,, निर्मल जल सी धारा है तू गुणगान तेरा मैं गाऊंगा।।

आत्मा....... कैसे मैं जीत गई चाहकर भी कुछ कर नहीं पाती हूँ ,,,,,  जाता है गलत मार्ग में व्यक्ति मैं उसे समझा नहीं पाती हूँ...... ठुकराकर बात मेरी नादाँ मौत नींद सौ जाता है.......जो सुन लेता है पुकार मेरी सौ दारुण कष्ट से पार हो जाता है।।

मन........ कैसा ये नादाँ इंसान है जालिम बन खुदका ही सर्वनाश कराता है ठोकर खाता जब जब माँ को आवाज़ लगाता है।

आत्मा........ हाँ इसलिए तो कुंठित नज़र आती हूँ जलने के बाद भी शरीर के मैं अपनों के लिए व्याकुल हो जाती हूँ क्या करुँ मैं चाहकर भी कुछ न कर पाती हूँ,,,,,, आखिर एक किरदार मैं माँ का भी निभाती हूँ।।

....... जो समझे भाव को वो रचना समझ जाएगा वरना हम तो है ही ऐसे जो आसानी से किसी को समझ न आये 😜😜😜

धन्यवाद.......✍️✍️👑👑

स्वरचित ~~~~~~
माधुरी रघुवंशी ❤️
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