इजाज़त
26 मार्च 2023
मन के अन्दर तरह तरह के उद्गार उठते रहते हैं जो कि मनुष्य के मन की स्वभाविक प्रक्रिया है।इन्हीं उद्गारों के शब्दों को संवेदनाओं के साथ सजाकर उन्हें काव्य के रुप में सहेज का प्रयास है'मन की कोठर से....'।इसके पहले इसी तरह की कोशिश 'शब्द कलश'(योर कोट्स स
मन के अन्दर तरह तरह के उद्गार उठते रहते हैं जो कि मनुष्य के मन की स्वभाविक प्रक्रिया है।इन्हीं उद्गारों के शब्दों को संवेदनाओं के साथ सजाकर उन्हें काव्य के रुप में सहेज का प्रयास है'मन की कोठर से....'।इसके पहले इसी तरह की कोशिश 'शब्द कलश'(योर कोट्स स
'आधा तुम मुझमें हो',यह मेरी छठवीं कविता संग्रह है।यह शब्द इन प्लेटफार्म पर प्रकाशित हो रही है।इसके पहले काव्य वाटिका,मन की कोठरी से,मन की गठरी तथा तुम्हीं से शुरु,शब्द इन पर तथा शब्द कलश योर कोट्स से प्रकाशित हो चुकी है।इस नवीन काव्यसंग्रह में 50कव
'आधा तुम मुझमें हो',यह मेरी छठवीं कविता संग्रह है।यह शब्द इन प्लेटफार्म पर प्रकाशित हो रही है।इसके पहले काव्य वाटिका,मन की कोठरी से,मन की गठरी तथा तुम्हीं से शुरु,शब्द इन पर तथा शब्द कलश योर कोट्स से प्रकाशित हो चुकी है।इस नवीन काव्यसंग्रह में 50कव
मन की गठरी- ---------------- 'मन की गठरी'मेरी काव्य संग्रह की तीसरी कड़ी है।इस संग्रह में मन के कोने में पड़े विचारों को शब्दबद्ध कर उन्हें तर्कपूर्ण तथा संवेदनशील करके परोसने का प्रयास किया गया है।मन में विचार पैदा होते रहते हैं उनविचारों को लोगों क
मन की गठरी- ---------------- 'मन की गठरी'मेरी काव्य संग्रह की तीसरी कड़ी है।इस संग्रह में मन के कोने में पड़े विचारों को शब्दबद्ध कर उन्हें तर्कपूर्ण तथा संवेदनशील करके परोसने का प्रयास किया गया है।मन में विचार पैदा होते रहते हैं उनविचारों को लोगों क
--"तुम भी..." "तुम भी..."मेरी छठवीं कविता संग्रह है जो 'शब्द इन'पर आन लाइन लिखी जा रही है और वहीं से इन लाइन प्रकाशित भी होगी।यह संग्रह पूर्ण होने से पहले तक नि:शुल्क रहेगी जो पूर्ण होते ही सशुल्क कर दी जायेगी। संग्रह में संकलित मेरी
--"तुम भी..." "तुम भी..."मेरी छठवीं कविता संग्रह है जो 'शब्द इन'पर आन लाइन लिखी जा रही है और वहीं से इन लाइन प्रकाशित भी होगी।यह संग्रह पूर्ण होने से पहले तक नि:शुल्क रहेगी जो पूर्ण होते ही सशुल्क कर दी जायेगी। संग्रह में संकलित मेरी
अक्सर ऐसा होता है कि जो हम चाहते हैं वह नहीं होता फिर भी हमें स्वीकार करते हुए संतुष्ट होना रहता है, हालांकि यह मन की चाहत नहीं होती है फिर भी अनेक बंदिशों के कारण स्वीकारना होता है।कभी समाज के लिये तो कभी अपनों के लिये।मन में लिये अपनी खुशी के लिये
अक्सर ऐसा होता है कि जो हम चाहते हैं वह नहीं होता फिर भी हमें स्वीकार करते हुए संतुष्ट होना रहता है, हालांकि यह मन की चाहत नहीं होती है फिर भी अनेक बंदिशों के कारण स्वीकारना होता है।कभी समाज के लिये तो कभी अपनों के लिये।मन में लिये अपनी खुशी के लिये
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