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ओंकार नाथ त्रिपाठी के बारे में

शब्दों को अर्थपूर्ण ढंग से सहेजने की आदत।

पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-01-11

ओंकार नाथ त्रिपाठी की पुस्तकें

बस, इतना सा..

बस, इतना सा..

बस, इतना सा ******** ओंकार नाथ त्रिपाठी -------------------------- "बस,इतना सा"यह मेरी "शब्द इन" पर प्रकाशित होने वाली आठवीं नई कविता संग्रह है।आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई मेरी रचनाएं मानवीय सोच व

निःशुल्क

बस, इतना सा..

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बस, इतना सा ******** ओंकार नाथ त्रिपाठी -------------------------- "बस,इतना सा"यह मेरी "शब्द इन" पर प्रकाशित होने वाली आठवीं नई कविता संग्रह है।आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई मेरी रचनाएं मानवीय सोच व

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शब्द वाटिका

शब्द वाटिका

शब्दों को अर्थपूर्ण ढंग से सहेजना।उनकी बोल को लोगों तक पहुचाना।

37 पाठक
50 रचनाएँ
1 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 23/-

शब्द वाटिका

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शब्दों को अर्थपूर्ण ढंग से सहेजना।उनकी बोल को लोगों तक पहुचाना।

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कुंवारी रात

कुंवारी रात

"कुंवारी रात"शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली यह मेरी नौंवी कविता संग्रह है,जिसकी पृष्ठभूमि 10जनवरी 2024को एक अस्पताल में तैयार हुई और 21फरवरी 2024को पूर्ण हुई।आज ही मेरी कविता संग्रह "बस! इतना सा" पूरी हुई है। कुंवारी रात की पहली कविता ही सार है इस कव

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कुंवारी रात

कुंवारी रात

"कुंवारी रात"शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली यह मेरी नौंवी कविता संग्रह है,जिसकी पृष्ठभूमि 10जनवरी 2024को एक अस्पताल में तैयार हुई और 21फरवरी 2024को पूर्ण हुई।आज ही मेरी कविता संग्रह "बस! इतना सा" पूरी हुई है। कुंवारी रात की पहली कविता ही सार है इस कव

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धड़कन

धड़कन

"धड़कन"यह मेरी बारहवीं आनलाइन प्रकाशित पुस्तक है।इसके पहले योर कोट्स पर शब्द कलश,तथा 'शब्दइन' पर नौ आनलाइन कविता संग्रह प्रकाशित है।'शब्दइन' पर ही एक लघु कथा संग्रह भी प्रकाशित हो रहा है। आज 21फरवरी2024के दिन इस संग्रह की शुरुआत हो रही है।यह दिन भी म

18 पाठक
50 रचनाएँ

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धड़कन

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"धड़कन"यह मेरी बारहवीं आनलाइन प्रकाशित पुस्तक है।इसके पहले योर कोट्स पर शब्द कलश,तथा 'शब्दइन' पर नौ आनलाइन कविता संग्रह प्रकाशित है।'शब्दइन' पर ही एक लघु कथा संग्रह भी प्रकाशित हो रहा है। आज 21फरवरी2024के दिन इस संग्रह की शुरुआत हो रही है।यह दिन भी म

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मन की कोठर से...

मन की कोठर से...

मन के अन्दर तरह तरह के उद्गार उठते रहते हैं जो कि मनुष्य के मन की स्वभाविक प्रक्रिया है।इन्हीं उद्गारों के शब्दों को संवेदनाओं के साथ सजाकर उन्हें काव्य के रुप में सहेज का प्रयास है'मन की कोठर से....'।इसके पहले इसी तरह की कोशिश 'शब्द कलश'(योर कोट्स स

16 पाठक
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2 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 66/-

मन की कोठर से...

मन की कोठर से...

मन के अन्दर तरह तरह के उद्गार उठते रहते हैं जो कि मनुष्य के मन की स्वभाविक प्रक्रिया है।इन्हीं उद्गारों के शब्दों को संवेदनाओं के साथ सजाकर उन्हें काव्य के रुप में सहेज का प्रयास है'मन की कोठर से....'।इसके पहले इसी तरह की कोशिश 'शब्द कलश'(योर कोट्स स

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तुम भी

तुम भी

--"तुम भी..." "तुम भी..."मेरी छठवीं कविता संग्रह है जो 'शब्द इन'पर आन लाइन लिखी जा रही है और वहीं से इन लाइन प्रकाशित भी होगी।यह संग्रह पूर्ण होने से पहले तक नि:शुल्क रहेगी जो पूर्ण होते ही सशुल्क कर दी जायेगी। संग्रह में संकलित मेरी

14 पाठक
50 रचनाएँ
1 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 237/-

तुम भी

तुम भी

--"तुम भी..." "तुम भी..."मेरी छठवीं कविता संग्रह है जो 'शब्द इन'पर आन लाइन लिखी जा रही है और वहीं से इन लाइन प्रकाशित भी होगी।यह संग्रह पूर्ण होने से पहले तक नि:शुल्क रहेगी जो पूर्ण होते ही सशुल्क कर दी जायेगी। संग्रह में संकलित मेरी

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तूं चाही,मैं रीता

तूं चाही,मैं रीता

"तूं चाही,मैं रीता"यह मेरी सातवीं तथा शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली। छठवीं काव्य संग्रह है।जब तक यह लिखी जा रही है तब तक के लिये पाठकों के लिए नि:शुल्क शब्द इन पर उपलब्ध रहेगी लेकिन पूर्ण हो जाने के बाद यह सशुल्क उपलब्ध हो सकेगी। आनलाइन लेखन मैंने सब

13 पाठक
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₹ 230/-

तूं चाही,मैं रीता

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"तूं चाही,मैं रीता"यह मेरी सातवीं तथा शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली। छठवीं काव्य संग्रह है।जब तक यह लिखी जा रही है तब तक के लिये पाठकों के लिए नि:शुल्क शब्द इन पर उपलब्ध रहेगी लेकिन पूर्ण हो जाने के बाद यह सशुल्क उपलब्ध हो सकेगी। आनलाइन लेखन मैंने सब

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समय की खिड़की

समय की खिड़की

समय की खिड़की ----------------------- © ओंकार नाथ त्रिपाठी "समय की खिड़की" मेरी प्रथम लघुकथा संग्रह है जो कि 'शब्द इन' पर आनलाइन प्रकाशित हो रही है।इस संग्रह में मेरी कई छोटी छोटी कहानियां संकलित हैं जो कि मैंने

10 पाठक
15 रचनाएँ

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समय की खिड़की

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समय की खिड़की ----------------------- © ओंकार नाथ त्रिपाठी "समय की खिड़की" मेरी प्रथम लघुकथा संग्रह है जो कि 'शब्द इन' पर आनलाइन प्रकाशित हो रही है।इस संग्रह में मेरी कई छोटी छोटी कहानियां संकलित हैं जो कि मैंने

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सपना में तुम

सपना में तुम

सपना में तुम! ‌ ************ © ओंकार नाथ त्रिपाठी "सपना में तुम" 'शब्द इन'पर आन लाइन प्रकाशित होने वाली मेरी बारहवीं पुस्तक कविता संग्रह के रुप में है।अब तक आनलाइन प्रकाशित होने

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सपना में तुम

सपना में तुम

सपना में तुम! ‌ ************ © ओंकार नाथ त्रिपाठी "सपना में तुम" 'शब्द इन'पर आन लाइन प्रकाशित होने वाली मेरी बारहवीं पुस्तक कविता संग्रह के रुप में है।अब तक आनलाइन प्रकाशित होने

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आधा तुम मुझमें हो

आधा तुम मुझमें हो

'आधा तुम मुझमें हो',यह मेरी छठवीं कविता संग्रह है।यह शब्द इन प्लेटफार्म पर प्रकाशित हो रही है।इसके पहले काव्य‌ वाटिका,मन की कोठरी से,मन की गठरी तथा तुम्हीं से शुरु,शब्द इन पर तथा शब्द कलश योर कोट्स से प्रकाशित हो चुकी है।इस नवीन काव्यसंग्रह में 50कव

4 पाठक
50 रचनाएँ
1 लोगों ने खरीदा

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₹ 197/-

आधा तुम मुझमें हो

आधा तुम मुझमें हो

'आधा तुम मुझमें हो',यह मेरी छठवीं कविता संग्रह है।यह शब्द इन प्लेटफार्म पर प्रकाशित हो रही है।इसके पहले काव्य‌ वाटिका,मन की कोठरी से,मन की गठरी तथा तुम्हीं से शुरु,शब्द इन पर तथा शब्द कलश योर कोट्स से प्रकाशित हो चुकी है।इस नवीन काव्यसंग्रह में 50कव

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ओंकार नाथ त्रिपाठी के लेख

तुम!

25 जुलाई 2024
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तुम,चंचल!लहरों के,जैसी।मैं!ठहरा,नदी काकिनारा हूं।तुम!कल-कल, धुन की,मदमस्त परी।मैं!ठहरा एक, जुआरी!हारा।सोचा!गर्दिश में,आयाम बदल दें, तेरे साथ।चांद!सितारों से,चमका दूं तेरी-सुबहो शा

याद का टुकड़ा

24 जुलाई 2024
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कैसा?समय आ गया,कल तक,साया था मैं!आज-याद का,टुकड़ा!!बनकर रह गया।वह भी,हरपल नहीं, सिर्फ-फुर्सत के पल।तब तो,महकाया था,घर का-कोना-कोना तुमने!मैंने भी-तेरे फ़न की,दौलत को,संभाले रखा।दिल!आंखों से,कर रह

शहर!

22 जुलाई 2024
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आज!शहर में,जो हवाएं,मेरे पास से गुजरीं,उसमें-भीनी-भीनी सी,तेरी खुशबू!महकी।कहीं तुम! इसी शहर में तो,नहीं आ गयी?या ये हवाएं!तेरे शहर से,आयी हैं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।&

वो आदमी!

22 जुलाई 2024
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फिर-वही सुबह!शाम भी,वही है।दिन वही,और-रात भी,वही है।जगह,शहर,मुहल्ले,मकान!उसपर लगे,नेम प्लेट तमाम,नाम और पद!सब तो,वही हैं।सिर्फ!नहीं है जो,वह-वो आदमी है।जो-रहता था, कभी यहां,हमारे बीच में।© ओंकार

स्त्री पुरुष

21 जुलाई 2024
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पुरुष! जब-जब, लिखा-स्त्री पर,खूबसूरती को,सराहा।कभी चांद!गुलाब!!काली घटाएं!!!बिजली सी चमक,झील सी आंखें, बलखाती कटि,आदि-उपमाओं से,सुसज्जित किया।लेकिन- जब-जब, स्त्री ने,कलम उठायी

सिकंदर!

20 जुलाई 2024
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तुमने!भले ही,फतह!हासिल कर ली,जिसे चाहा,उसपर।बेशक!सिकंदर!! समझ सकते हो,खुद को।ऐसे में,तेरा!अहंकार का,पहाड़!हो जाना,लाजमी भी है।लेकिन-ध्यान रहे,वक्त भी-कुछ होता है,जिसके-समुंदर में,न जाने कितने-&nb

एक दिन!

20 जुलाई 2024
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एक दिन, मुफलिसी में,मन में आया,कि! क्यों न?आंसुओ को,बेचकर ही-अपना!काम चला लूं।फिर सोचा!यही तो,यादें हैं!अपनों की।इन्हें-खुद से जुदा!कैसे-कर सकता हूं?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर

प्रेम!

16 जुलाई 2024
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प्रेम तो-बंधन चाहता,जबकि-विवाह! स्वतंत्रता का,पक्षधर है।तभी तो-डूबती रहती है,झील सी-आंखों के दायरे में,आत्मा।अन्त में,होता यही है,कि कोई-भूल जाता है,और-कोई भूलने के,प्रयास के बाद भी,नहीं भूल पाता

पायल!

16 जुलाई 2024
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आखिर -पायल ने,पाज़ेब से-बतियाते हुई,बोली-"क्या हुआ? मालकिन हमें,सोने के,जेवरों जैसा,तवोज्जो! नहीं देती हैं।लेकिन- साथ तो,हमीं देते हैं,हरपल।वो सोने वाले,जेवर!धरे के धरे,रह जाते हैं,या ग

शिकायत,न धन्यवाद!

16 जुलाई 2024
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न शिकायत!न धन्यवाद!!आये-और चल दिए।मैं तो!समझा था,वो,मेरे- करीब होंगे।क्योंकि- शिकवा और गिला!अपने ही तो,करते हैं।लेकिन- यूं जाना उनका,पता नहीं क्यों?खटकता रहा।सुनो!जब कभी लगे,मैंने कुछ-ग

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