shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

मन की कोठर से...

ओंकार नाथ त्रिपाठी

50 अध्याय
2 लोगों ने खरीदा
16 पाठक
13 जुलाई 2022 को पूर्ण की गई

मन के अन्दर तरह तरह के उद्गार उठते रहते हैं जो कि मनुष्य के मन की स्वभाविक प्रक्रिया है।इन्हीं उद्गारों के शब्दों को संवेदनाओं के साथ सजाकर उन्हें काव्य के रुप में सहेज का प्रयास है'मन की कोठर से....'।इसके पहले इसी तरह की कोशिश 'शब्द कलश'(योर कोट्स से)तथा 'शब्द वाटिका'(शब्द इन पर) की गयी है।मेरी रचनाओं का भाव अगर किसी चरित्र जैसा लगता है तब यह एक संयोग मात्र है। 

man ki kothar se

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

सिसक रही मानवत

10 जनवरी 2022
6
1
1

फूल हुए हैं मौन,शूल के अट्टहास से।कलियाँहुईं उदास,दमन के गलियोंमें।।पाषाणों में आज जगी,जो कोमलता है।देख इन्हें किलकारी भी,अब सहम रही।।ठंड हुए माहौल ,हवाएं फिर भी गरम।धधक रही है आग,अभी तक दिल में।।दर्प

2

पाठशाला से गायब

10 जनवरी 2022
1
0
0

मुखर हुआ है मौन,सुनकर हाहाकार।कान हुए बेहाल,सुनकर मन की बात।।दो राहे पर खड़ा है,बेचारा जज्बात।अट्टहास कर घूम रहा ,कातिल सरेआम।।पीड़ा रोये दुबक कर,घर में सारी रात।चौराहे चौराहे पर,वो बाँट रहे खैरात।।हाड़

3

आगत का स्वागत

10 जनवरी 2022
0
0
0

आगत के स्वागत में आओ,करें याद पुरातन का।मन की बातें सुन सुन करके,पके कान जनार्दन के।डूबीं चर्चित हस्ती के किस्से,मीटू के महाभारत में।सूरज की आखों में झांकते,सुनायें पार्कर की बात।सिसक रहा न्याय का मंद

4

खुशीयाँ

10 जनवरी 2022
0
0
0

अपनी,सारी खुशीयाँ,एक-एक ,करके-उन्हें ,देनेके बाद भी-वो,नहीं हो सके खुश।क्योंकि,मेरी खुशीशायद,उनके दुख काकारण,बनती रहीमेरी ,कोशिशों के बाद भी।यह ,तब समझ पाया-जब ,उनका मायाबी रुप,मेरा,कवच और कुण्डल बनीम

5

ऐ जिंदगी!

26 जनवरी 2022
0
0
0

बहुत-वक्त दिया,तुमको-मैंने अपना;अब-कुछ वक्त,तेरा भी-चाहता हू् मैं।कितनी-सिद्दत से,जिया है तुमकोऐ जिंदगी!;यह-तुम्हें भी,मैं याद!! दिलाना चाहता हूँ।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

6

मुस्कुराहट

27 जनवरी 2022
0
0
0

ये जो- मुस्कुराहट का,जो वर्तमान!दिखाई दे रहा है,इसकी नींव! मेरे अतीत के,अरमानों की ईंट,त्याग, और तपस्या के,गारों से!!जोड़ी गयी है।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

7

अहंकार

27 जनवरी 2022
0
0
0

अहंकार!गुस्सा और- नासमझी,यह-संबंधों की,जड़ों में,मट्ठा का- कार्य करते हैं।जब ये-कब्जा कर लेते हैं,दिल पर,तब रिश्तें,बेमौत!!मर जाते हैं।मैं करता रहा,अगाह तुम्हें!!!लेकिन-तुम सुनती कहाँ हो।-ओंक

8

पूनम की चंदा

27 जनवरी 2022
2
1
0

सारी रात,तारे! करते रहे,तेरी-निगरानी,फिर भी,मैं- ताकता रहा,टुकुर टुकुर,तुम्हें!!हे !!!पूनम की चंदा।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

9

जब तुम रहती हो...

29 जनवरी 2022
0
0
0

तुम-वही हो,मैं भी,वही हूँ,लेकिन-अब,नहीं होती,रौनक!घर में,क्योंकि-तुम,कहीं और होती हो।घर तो-तब खिलता है,जब रहती हो,भले ही-अब घर में,मेहमान होती हो।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

10

कहाँ है वो?

30 जनवरी 2022
0
0
0

जैसे जैसे,सूरज!बुढ़ाते हुए,अस्त होने को है;वैसे वैसे-मेरी उदासीयाँ,जवान हो रहीं,फिर शाम हो रही।लग रहा है,कोई!!धीरे धीरे-भूला रहा है मुझे;घनीभूत हो रही,तनहाई!!!किसी की-यादों की चादर ओढ़;जम्हाई!!!!ले रही

11

एक दूजे को..

31 जनवरी 2022
0
0
0

न मैं! बुलाया,न तुम!! पुकारी,हमारे- आवाजों में,पड़ गयीं,दरारें।नाम-अब भी,हम दोनों के,हैं लबों पर;साँसें-तड़पती रहीं,रिश्तों के-दरकने को लेकर।हम करते रहे, इंतजार,पुकारने का,अब तक।न हम

12

पुष्प प्रिया

6 फरवरी 2022
1
1
0

पंखुड़ियों परमधूप खड़ागीत कामनुहार लेकर।छलका रहानेह अपनातत्पर- स्पर्श को, कोमल कपोल।गुननुना रहा मनगीत-अपनी ही धून में,सुन रहीपुष्प प्रिया!हो मगन मनमीत।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर उप्र।

13

जिंदगी

7 फरवरी 2022
0
0
0

जैसी लगती है वैसी ,होती नही जिंदगा।पैसों के बाजार में,बिकती है जिंदगी।।इंसानियत के रंग को,बदरंग कर रही।ख्वाहिशों के संग, बदलती है जिंदगी।।धूप छाँव जीवन में, ऐसेही आतेजाते हैं।पाँव के छाले देख,तं

14

शून्य

9 फरवरी 2022
1
1
0

तेरी-नजरों में,मैं भले ही,शून्य लगता हूँ,लेकिन-ध्यान रखना,तेरे आगे हो गया,तब-तेरी कीमत,कम हो जायेगी।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

15

समझौता

11 फरवरी 2022
0
0
0

थक गया हूँ,ऐ जिंदगी!जीवन में-समझौतों से।अब और नहीं मैं!!कर सकता यह,जीवन की खातिर,मर-मर कर।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

16

प्रकृति

11 फरवरी 2022
4
1
0

💐प्रकृति💐💐ओंकार नाथ त्रिपाठीपवन देव डाकिया बने,लाये एक संदेश।मदमाती प्रकृति हुई,पहन वसंती वेष।जवां पुरबीनी हो गयी,कामीनीयों के संग।कामदेव की रति देखो,पहने कंचुकी तंग।उन्मांदी सब गंध हुई,धरती पर चहू

17

सोहबत

14 फरवरी 2022
0
0
0

न जाने-कब से,इंतजार था,तेरी सोहबत का।अब-आ गयी हो,तो ठहर जा,कुछ पल के लिये,समय को-जाने दे।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

18

शोहरत

14 फरवरी 2022
0
0
0

माना-तेरी शोहरत!आकाश की,ऊँचाई सी है।लेकिन-यह मत भूलो!!इसे देखा भी-जमीन से ही जा रहा।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

19

साथ-साथ

18 फरवरी 2022
0
0
0

चलो-कुछ तो साथ,रह लें,हम दोनों।मरना तो- है ही एक दिन,दोनों को,अकेले ही।-ओंकार नाथ त्रिपाठी गोरखपुर, उप्र।

20

खंडहर

18 फरवरी 2022
0
0
0

यादों के-खंडहर में,बीते पलों के-भग्नावशेष!आज भी-खड़े हैं,पड़े हैं बेसुध!!इंतजार में शायद।न मैं हूँ-न तुम हो,न वो हैंहैं सिर्फ अहसास।दिवार पर,आज भी-मौजुद है,तेरी पंक्तियां।खिड़कियों सेझाँक झाँक करलौट जा र

21

नन्हीं कली...

25 फरवरी 2022
0
0
0

कदम!इतना बड़ा?सिर्फ!!एक चूक की?दरकिनार!!!हो गयी,मेरी सभी,ममता और-दूध की, तपस्या?क्षण भर में,भरभरा गये,सारे सपने,तेरे- शून्य में,विलीन होते ही।घुटघुट कर,घुटन भरी,अहसासों की,गठरी!!ढ़ोने को-अभिशप

22

क्यों न?

4 मार्च 2022
1
1
0

क्यों न?समुद्र की तरह,धैर्यवान होकर!चलो-मिला जाये,किसी रेगिस्तान से।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र। (नामीब रेगिस्तान, चित्र:साभार)

23

सोना नहीं...

7 मार्च 2022
0
0
0

मैं-सोना नहीं,लोहा हूँ,तेरी तरह ही।इसीलिए,जब-वार करते हो,मुझपर!तब- चिल्लाती हूँ।क्योंकि-अपनों की चोट से,दर्द!! ज्यादा होता है।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

24

समुद्र

9 मार्च 2022
0
0
0

मुझे-अपनी हद में,रहना!आता है।मैं-समुद्र हूँ,कोई!!इंसान नहीं।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

25

मन की गठरी

12 मार्च 2022
0
0
0

मैं-उलझा रहा,तेरी-देहयष्टि के भूगोल में।तुम-व्यस्त रही,सुलझाने में;संबंधों का गणित।हम-पढ़ न सके खोलकर, एक दुसरे के, मन की गठरी।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

26

होली बनकर...

19 मार्च 2022
0
0
0

आज-मेरी एक बात सुनो तुम,दीवाली!बनकर आयी जीवन में,होली!!बनकर फिर आ जाओ।तमस-मिटायी मन की जैसे,दिलों में!!!खुशियों के रंग भर जाओ।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

27

प्रश्न करो...

20 मार्च 2022
0
0
0

हम-क्यों नहीं,महसुस कर रहे,चुप्पियों को?जो-उग गयी हैं,हमारे आस पास,झाड़ झंखाड़ की तरह।ये चुप्पियाँ भी,कह रही हैं,बहुत कुछ,डरी,सहमी आवाज में।क्योंकि-ये पनाहगार,बन गयी हैं,अनेक-विषधर सर्पों और बिच्छु

28

प्रश्न करो..

22 मार्च 2022
0
0
0

अब-आप खुद ही,तय करो,आपको-कैसा!भविष्य चाहिए?प्रश्न करो,तर्कों के साथ,कुतर्कों से,बिना डरे!!बजाय- हाथ बाँधे,पीछे पीछे-चलने को।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

29

जिंदा कौमें..

23 मार्च 2022
0
0
0

धारा के साथ,बहना!गलत नहीं, बल्कि-गलत!!धारा के साथ,बहना!!! गलत होता है,क्योंकि-इसतरह से,केवल-मुर्दे बहते हैं,जिंदा कोमें तो,धारा के- विपरीत ही,बहा करती हैं।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर,

30

एक और...

24 मार्च 2022
0
0
0

आज-भोर होते ही,गाँव!पुन: सहम गया।कहीं-एक और परिंदा-फिर!! न चला जाय,लौटकर,न आने के लिये।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

31

ठूँठ..

28 मार्च 2022
0
0
0

रोते तो-ठूँठ भी हैं,लेकिन-इनकी रुलाई,सुनने वाले-इनके अपने,पत्ते,फूल,फल आदि-नहीं होते।यह-महसूस करता है,इनके-शिर्ष पर बैठा गिद्ध।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

32

नदी बनी...

4 अप्रैल 2022
0
0
0

तुम्हें-पता है?मेरे-पहाड़ की तरह,अडिग!रहने के कारण ही,तुम-कल कल करती,बहती रही,नदी बनी।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

33

सपने

2 मई 2022
1
0
2

वो-दिखा कर,सपने!करते रहे,मोल भाव!! जिंदगी के।हम-एक टक,ललचायी नजरों से,देख-मुस्कुराकर,हामी भरते रहे।वो-ठगते रहे हमें,हम-ठगा ते रहे,उनसे-सपनों के,आगोश मे-समाने के लिये।अब रात!!पूरी होने को है,सपने!

34

छाँव

6 मई 2022
2
0
2

खड़ी-दुपहरी की तपिश में,जो पाते थे मुझसे,छाँव!वही कुल्हाड़ी ले आये हैंकाटने को मेरे पाँव।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र। (चित्र:साभार)

35

इंकलाब

7 मई 2022
0
0
0

चलो-मतपेटी में बंद,एक साथ-होते हुए भी,आपस में-तमतमाये हुए,वोट-बनने के बजाय,पाँचों-उँगलियों को,जोड़कर-मुट्ठी बनायें,एकजुट हो-इंकलाब बन जाय।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

36

हालात

15 मई 2022
2
0
2

हालात-कुछ ऐसे बदले,कि-बदल गये प्रतिमान।दूरियाँ ने-ले ली है अब,प्रेम में-नजदीकियों का स्थान।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

37

साँझ

20 मई 2022
0
0
0

जब,साँझ-उम्र की, दहलीज पर,ढ़लने को है।तब,ऐसे में-ख्वाहिसों नहीं,सुकून की-तलब बढ़ जाती है।हमने-अब तक,सँभाल रखे हैं,अपनी खुशियों को,जो-जमाने को, काँच की तरह,चूभती रहीं आज तक।©-ओंकार नाथ त्रिपाठी

38

ऐ जिंदगी!

25 मई 2022
2
1
2

ऐ जिंदगी!तेरी-शर्तों का,क्या हुआ?जो शुरु तो हुई थीं,तेरे साथ?और अब-जब- साँझ होने को है,जीवन कातब-दे रहीं तजुर्बे हजार।©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

39

तेरे लिये..

27 मई 2022
2
0
0

तुमने-अपने लिये,तो-कह ली।फिर भी-,तेरे लियेमैंनेसह ली।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

40

नव विहान

28 मई 2022
0
0
0

तिमिर अँधेरा,घना बिछा है,निरवता!छायी है नभ में,कहीं नहीं-पदचाप कोई है,साँय साँय कर,निशा हाँफती।दिन भर-चलता रहा पथिक,जिस अच्छे की,चाहत में,ढ़ला दिवस फिर-बिखरी शाम,अब स्याह-अमावस की रात हुई।थके पाँव!!मन

41

नाम ही भूल गये

2 जून 2022
1
1
1

जैसे ही,मैंने-अपने मन की, बात कही।उन्होंने-दूरी!इतनी बढ़ा ली,मेरा नाम ही भूल गये।©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

42

चिराग

2 जून 2022
0
0
0

चिराग!जलता रहा,जिनके-उजाले के लिये,यह-उसी की,परछाईं को,खटकने लगा आखिर।©-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

43

तुम..तो..

10 जून 2022
0
0
0

तुम तो-गणित बनी रही,हरदम!मेरे लिये;जबकि-मैं बना रहा,शब्द!!अनेक अर्थ लिये हुए।तेरा- हल, एक रहा,मेरा तो-निकला ही नहीं।शायद-इसीलिए,भटकता रहा,अकेला आज तक।©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

44

ताकत

13 जून 2022
0
0
0

क्यों न-शब्दों में,ताकत डाली जाय,आवाज में डालने के बजाय।क्योंकि-शब्दों का असर,आवाज की तुलना में,दीर्घकालिक होता है।©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

45

आवाज

4 जुलाई 2022
0
0
0

तेरा कहना,सच है!कि,मैं-आवाज बहुत करता हूँ।जल्दी ही,गरम और-ठंडा भी हो जाता हूँ,मौसम के साथ ही,टिन के-छाजन की तरह।लेकिन-मैं रोकता हूँ,गरमी,बरसात और-ठंड को,तुम तक जाने से,क्या तुम्हें- इसका भान है?-

46

प्रेम

6 जुलाई 2022
0
0
0

मैने-कभी भी,तुम्हें -छोटा नहीं समझा,और न ही-स्वयं को-बड़ा होने का,बोध होने दिया।खुद को,झुकाते हुए,बिना-किसी उच्चता की,लालसा और-प्रवृत्ति के, तेरा साथ दिया।आपस में-झुकना,झुकाना,सम्मान!!!या-अपमान नहींवरन

47

चुप्पी

8 जुलाई 2022
0
0
0

मेरी- चुप्पी पर,प्रश्न?न करें।क्योंकि-जब तक,चुप रही-रिश्ते!बँचे रहे।जैसे ही-चुप्पी टूटी,संबंध!!सभी-भरभराकरढ़ह गये बेचारे।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र। (चित्र:साभा

48

याद

12 जुलाई 2022
0
0
0

तुम्हें याद-इसलिए करता हूँ,सुनो-ऐ जिंदगी!क्योंकि-भूलने के लिये,बहुत कुछ-याद रखना होता है।©ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।

49

आहट

13 जुलाई 2022
0
0
0

तेरे-आने की,आहट से ही,मैं घबरा जाता हूँ।तंपता है-क्यों?क्योंकि-मैं तुमसे,बिछड़ना- नहीं चाहता,और,तुम-........….।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, अशोकनगर, बशारतपुर, गोरखपुर, उप्र

50

भावना

13 जुलाई 2022
0
0
0

सुनो-जिंदगी!तूँ मेरी-गजल हो।तभी तो-शब्दों की,भीड़ में,भावनाओं संग,कभी खुशी,तो कभी- गम लिये,बह निकलती हो।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी, अशोकनगर, बशारतपुर, गोरखपुर, उप्र।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए