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और वो तुम हो

ओंकार नाथ त्रिपाठी

10 अध्याय
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और वो हो तुम ************* ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर "और वो हो तुम" 'शब्द इन' पर प्रकाशित होने वाली मेरी चौदहवीं पुस्तक है।यह मेरी तेरहवीं कविता संग्रह है।"और वो हो तुम" में मैंने मानवीय संवेदनाओं को उद्धृत करने की कोशिश की है। संवेदनाएं ही मानवीयता का गुण हैं अगर ये लहूलुहान हुईं तब मानवता भी क्रंदन करती है और जब मानवता ही रोने लगे तब ऐसे में संवेदनशीलता का लोप हो गया रहता है। साहित्य संवेदनशीलता को संरक्षित करने और रखने का प्रयास करता है।"और वो हो तुम" के माध्यम से इसी के लिए एक प्रयास करती रचनाओं का संग्रह है"और वो हो तुम"। आशा है आप पाठक गण को रुचिकर लगे।आपके सुझाव तथा आलोचनाएं मेरा मार्गदर्शन करेंगी। शब्द चित्र अगर किसी व्यक्ति, स्थान अथवा चरित्र से मेल खाते हुए लगें तब वह मात्र एक संयोग होगा। © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। 

aur wo tum ho

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पुस्तक के भाग

1

वो तुम हो

8 मई 2024
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और वो तुम हो------------------कल तक,जिन्हें! मेरी, धड़कनों का,अंदाजा था ;आज-उन्हें!कोई फर्क!नहीं पड़ता, मेरे- करुण क्रंदन का।हालांकि- अब भी मैं!रोज,निकल पड़ता हूं,उनके!दीदार क

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जुस्तजू!

8 मई 2024
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शहर!उदास सा है,सन्नाटे में पसरा,झींगुरों का,कोलाहल! खलल डाल रही।तब भला,नींद! कहां से आयेआंखों में।सुन!मेरी जुस्तजू ,गुफ्तगू! मत किया कर।ऐसे में,अब!तुम्हीं बता,किससे बतियायें?सुन तूं!जिद

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तानाशाह!

8 मई 2024
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शहर!उदास सा है,सन्नाटे में पसरा,झींगुरों का,कोलाहल! खलल डाल रही।तब भला,नींद! कहां से आयेआंखों में।सुन!मेरी जुस्तजू ,गुफ्तगू! मत किया कर।ऐसे में,अब!तुम्हीं बता,किससे बतियायें?सुन तूं!जिद

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दिल की बात !

8 मई 2024
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न तुम!कुछ कहो,न मैं-कुछ कहूं!यह-तुम जानो,और-मैं जानूं।दिल की बात! दिल में रहने दें,आखिर !कह देने से,या न कहने से,क्या फर्क पड़ेगा?जब मन!भरे बादल सा,उमड़ घुमड़ कर,बरसेगा।तब! नदी के बौराने से,

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बेचैनी!

10 मई 2024
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मुझे!तेरा साथ,पाने की,बेचैनी ने,एक एक करके,छीन ली,मेरे सभीसुकून।यह डर!कि-तुम्हें कहीं, मैं खो न दूं,गंवाता रहा,वह सब-जिसकी खातिर, पाना चाहा तुम्हें।मैं सुनता रहा,दिल की आवाज! कदमों की आ

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किरदार!

10 मई 2024
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और-एक दिन, खत्म हो जायेगी,यह जिंदगी,तुम्हें! कविताओं,कहानियों में,लिख-लिख कर।तब- शायद हम! फिर मिलें,दुसरी जिंदगी में, शक्ल ले,किसी किताब की।जिसमें-मैं रहूं,तुम रहो,रचनाओं में,

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तेरा दंभ!

10 मई 2024
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न फोन करना,न ही,फोन का,जवाब देना।इधर-मैं मैसेज पर,मैसेज! करता रहा।एक-उम्मीद बांधे,कि तेरा-फोन जरुर आयेगा।लेकिन- तेरा दंभ!मेरी आशाओं का,दम तोड़ दिया।तेरे अहम!और-मेरे विश्वास!दोनों के बीच,&nbs

8

टींस!

11 मई 2024
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हम!दोनों का,वर्षों तक,साथ-साथ रहना।हंसना, गाना, रूठना ,मनाना,कभी-कभी तो, कई-कई दिनों तक,न बोलना, न बतियाना, सब कुछ- आज भी याद है मुझे।आंखों के, सामने से गुजरता है,आज भी!च

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इग्नोर

15 मई 2024
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बिना!कारण के ही, इग्नोर!करो तुम,यह तेरा-अधिकार है।लेकिन- इतना जरुर,ध्यान रखना,उस दिन का,जब मैं!खोजने पर भी,नहीं मिलूंगा,तुमको;तब कैसा?लगेगा तुम्हें।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोर

10

नदी

15 मई 2024
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हमारे!यहां भी,एकबार! नदी रोई थी।और-रोते-रोते, बड़ी! मशक्कत से,शहर में,आ घुसी थी।यहां तक,पहुंचने में,उसने!उखाड़ फेंके थे,बड़े-बड़े,पेड़!बांध-बंधे,सड़कें और-मकान।वह!हाहाकार करती,बढ़ती,आ र

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