शब्दों को अर्थपूर्ण ढंग से सहेजना।उनकी बोल को लोगों तक पहुचाना।
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सरल व छोटे वाक्यो में जीवन के प्रेम व पीड़ा का समुंदर समाया हुआ। अच्छी रचना।✍✍
बहुत सुंदर लिखा है आपने
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<p>आज-</p> <p>अचानक!</p> <p>हिसाब किया,</p> <p>रिश्तों का।</p> <p>अधिकांश!!</p> <p>शून्य हो गये,</p>
<p>वो-</p> <p>उपकृत करते रहे,</p> <p>मुझे-</p> <p>मेरे एहसानों पर,</p> <p>लेकिन-</p> <p>जब अपनापन मा
<p>बुरा वक्त-</p> <p>बदल जायेगा,</p> <p>एक दिन,</p> <p>लेकिन-</p> <p>जो बदल गये,</p> <p>बुरे वक्त मे
<p>आज, फिर-</p> <p>रात भर,</p> <p>देखता रहा,</p> <p>चाँद को-</p> <p>मैं तुम्हें समझकर।</p> <p>सुनता
<p>जब से-</p> <p>हमने,</p> <p>सीख ली,</p> <p>तेरे!</p> <p>मुह पर तेरा,</p> <p>और-</p> <p>उनके मुह पर
<p>मैंने तो,</p> <p>तुम्हें!</p> <p>सीने में,</p> <p>छुपा रखा था।</p> <p>तुम तो-</p> <p>मोमबत्ती का<
<p>जब-</p> <p>भीड़ में,</p> <p>होकर भी,</p> <p>लगे अकेलापन!</p> <p>तब-</p> <p>कुरेद रहा होता है,</p>
<p>मुट्ठी की रेत बनी,</p> <p>पल-पल-</p> <p>फिसलती रही,</p> <p>हे जिदगी!</p> <p>लाख सिकवे रहे,</p> <p
<p>अंतर्मन में, पसरा अँधियारा।</p> <p>भले लाख तुम, दीप जलाओ।।</p> <p>चले कहाँ थे,गये कहाँ तुम?</p> <
<p>तेरी-</p> <p>बेरुखी के बाद,</p> <p>यही सोचता रहा,</p> <p>कि-</p> <p>अब सोचना,</p> <p>बंद कर दूँ,<
<p>परिंदे-</p> <p>लौट चले हैं,</p> <p>आसमान से!</p> <p>घोंसलों की तरफ।</p> <p>शाम होते ही,</p> <p>घर
<p>हिफाजत में,</p> <p>हथेलियां,</p> <p>तपन सहकर भी,</p> <p>लगी हैं-</p> <p>जिन आशाओं की,</p> <p>जलती
<p>यूँ तो-</p> <p>बदलते रहे,</p> <p>घर,और-</p> <p>समय भी।</p> <p>लेकिन-</p> <p>इतने पीड़ान्तक,</p> <p
<p>जब से-</p> <p>उनकी रुची,</p> <p>संबंधों के-</p> <p>गणित में हुई।</p> <p>तब से-</p> <p>न वो इंतजार
<p>न जरुरत रही,</p> <p>न जरुरी रहा,</p> <p>वो बचपन हमारा,</p> <p>कहाँ खो गया?</p> <p>अब- </p> <
<p>तेरी-</p> <p>वयस्क सुन्दरता,</p> <p>अब उस-</p> <p>मासूम खुबसूरती,</p> <p>जैसी-</p> <p>भला कहाँ लग
<p>मैं सोचता रहा,</p> <p>कि मैं!</p> <p>जरुरी हूँ,</p> <p>तुम्हारे लिये।</p> <p>लेकिन-</p> <p>यह ग
<p>हम-</p> <p>सुनते रहे,</p> <p>धर्म प्रचारकों की,</p> <p>बातेंआज तक।</p> <p>अपने जमीर की,</p> <p>आव
<p>मैं खड़ा रहा,</p> <p>पहाड़ की तरह,</p> <p>तेरे साथ!</p> <p>और-</p> <p>तुम! नदी बनी,</p> <p>कल-कल कर
<p>सब कुछ</p> <p>सूना सूना सा,</p> <p>दरवाजा-</p> <p>खुला हुआ,</p> <p>मेरे बिस्तर का</p> <p>जगह खाली
<p>तेरे-</p> <p>महकते शब्द!</p> <p>जो मुझे-</p> <p>पास ले आये थे।</p> <p>अब-</p> <p>वही, बहँक कर,</p
<p>मैं-</p> <p>तेरी अच्छाइयों को,</p> <p>पत्थरों पर,</p> <p>और-</p> <p>बुराईयों को,</p> <p>रेत पर,</
<div>अजीब है न?</div><div>मैं करता रहा,</div><div>खरीददारी,</div><div>तेरे लिये।</div><div>और-</div>
<div>चलो ना-</div><div>खत्म करके,</div><div>डर!</div><div>शुरु करें जीवन।</div><div>तुम उड़ो,</div><d
<div>एक बात-</div><div>मेरी सुन लो,</div><div>कभी कभी</div><div>इसे धुन लो।</div><div>ये सही-</div><
<div>तुम दोनों-</div><div>मिलने का,</div><div>कोई भी अवसर,</div><div>नहीं छोड़े।</div><div>हद तो-</di
<div>एक ही,</div><div>जगह पर,</div><div>एक जैसे-</div><div>संबंध के बाद भी;</div><div>अगर-</div><div
<div>तुमसे-</div><div>उदासी! और-</div><div>एक झुँझलाहट!!</div><div>क्यों होती है?</div><div>जब कि-</
<div>कैसे हो?</div><div>ठीक हैं!</div><div>और-</div><div>आप कैसे हो?</div><div>मैं भी,</div><div>ठीक
<div>ब्लैक लिस्ट,</div><div>करने के बाद,</div><div>जब-</div><div>कभी भी,</div><div>डायल होगा,</div><
<div>मत-</div><div>खटखटाओ! </div><div>अब यह,</div><div>नहीं खुलने वाला है।</div><div>वर्षों तक-
<div>जानती हो-</div><div>तेरी जिद के आगे,</div><div>हरदम ही-</div><div>मैं हारता क्यों रहा?</div><di
<div>जिन्दगी की,</div><div>शाम!</div><div>होते होते,</div><div>तेरी-</div><div>परछाईं भी,</div><div>छोड़ देगी तेरा साथ।</div><div>यही-</div><div>जो लोग,</div><div>खड़े हैं-</div><div>अभिनन्दन में,</div>
<div>वही तेवर-</div><div>मनमानापन,</div><div>नाज,नक्शे!</div><div>और-</div><div>मनबढ़ई!</div><div>कुछ भी नहीं बदला,</div><div>आज भी,</div><div>फिर-</div><div>तब यह,</div><div>कैसा नव वर्ष?</div><div>धर
<div>मुझे-</div><div>मालूम है, </div><div>कि-</div><div>मैं गुजरा हुआ,</div><div>खयाल हूँ,</div><div>तेरे लिये।</div><div>फिर भी,</div><div>मैंने!</div><div>संजोये हैं,</div><div>आज भी,</div><div
आज-बेलगाम तुम!संबंधों के,जिस-ईमारत के नीचे,इधर उधर,दौड़रही हो,जानती हो-इसके निर्माण में,न जाने कितनी,ईच्छाओं,मंसूबों और-अपेक्षाओं कीकीमत!चुकानी पड़ी।इसे-बँचाये रखना भी,इसके-निर्माण से कम नहीं।मतलगने दोइ
बुलन्दियों की,जिस-ऊँचाई पर,आज पहुँची हो,उस तक-पहुँचने की,सीढ़ी!रहा हूँ मैं।आज-तेरे इर्द गिर्द!घूमने वाले-कल तक कहाँ थे?-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
तेरी-लोगों में,दिलचस्पी;और-लोगों की,तेरे में!कहीं तुम,मेरे-देश की-राजनीति तो नहीं?-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
जिनके पैसों की!तुम- तारीफ करते,नहीं थक रही,जानती हो?उन्हीं-पैसों की गर्मी ने,रिश्तों को-जलाकर,राख कर दी है।-ओंकार नाथ त्रिपाठी,गोरखपुर, उप्र।
तुम्हारी-सरलता,तरलता,मिठास,और-सुन्दरता ही,जोड़ता है,एक दुसरे कोदुसरों के,दिलों से।तभी, तो-जीवन रेखा! सी,हो गयी हो-अब, जीवन में।तुम हमारी,संस्कृति के,माथे की बिंदी! ,हाथों में-पूजा की,थाल हो,'हिन्दी'!!-
वैधानिक-चेतावनी!रुह की खुराक,प्रेम!!एक जानलेवा,बिमारी है।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
हाँ-मानता हूँ,मेरी गलती,मेरा-बेबाकपना, तथा-दिल में,मलाल न रखना है।लेकिन,यह मुझसे-नाराजगी की,वजह होगी,इसका भान,मुझे नहीं था।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
मैंने-जरुरत, और-जरुरी होने में,फर्क नहीं किया,शायद!यही कारण रहा,मेरे-आहत होते रहने का।सच तो, यही रहा,कि-उन्हें मेरी, जरुरत रही,मैं,उनके लिये, जरुरी नहीं रहा।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर
तुम-मेरीआँखों में,झाँकते ही,समझ गयी मुझे।जब कि-मैं तेरीआँखों मेंझाँकते ही,डूब गया।तेरा समर्पणतुम्हें!बँचालिया,मेरा अहंकारमुझे डूबो दिया।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
जब से,हाथ!मिलने की जगह,जुड़ने लगे,तब से,वो-अभिन्न से!!भिन्न हो गये।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
मैं-बहता गया,भावनाओं में;और,तुम-तलाशती रही,सम्भावनाएं।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
तुम-अपने को,जितना ही दूर,करती गयी मुझसे।मैं पाता गया,उतना ही- नजदीक तेरे,अपने आपको।तेरा-एक कदम,जो मुझसे!दूर चला,मेरा भीकदम उठकरतेरे पीछे पीछेसाथ हो चला।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र।
आज- उदास है मन!घोंसला-खाली जो है?जिसकी-परवरिश में मैंने,वर्षा,शीत और-तपन को,झेला।जिन्हें-पिलाया दूध!!लहू का,वही- खून के,आँसू दे गये।कलतक-थकते थे पाँव!!!हिफाजत में,जिस, परिंदे की,आज-थक र