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कुंवारी रात

ओंकार नाथ त्रिपाठी

51 अध्याय
3 लोगों ने लाइब्रेरी में जोड़ा
34 पाठक
21 फरवरी 2024 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

"कुंवारी रात"शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली यह मेरी नौंवी कविता संग्रह है,जिसकी पृष्ठभूमि 10जनवरी 2024को एक अस्पताल में तैयार हुई और 21फरवरी 2024को पूर्ण हुई।आज ही मेरी कविता संग्रह "बस! इतना सा" पूरी हुई है। कुंवारी रात की पहली कविता ही सार है इस कविता संग्रह का।इस कविता संग्रह में किस तरह की कविताएं होंगी यह पूरी होने के बाद ही पता चल सकेगा। फिलहाल शुरू है कुंवारी रात, आशा है आप लोगों का साहित्यिक सहयोग प्राप्त होगा।रचना पथ पर एक और कदम कुंवारी रात के साथ। ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर, उप्र। 

kunwari raat

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पुस्तक के भाग

1

मेरी कोख में

12 जनवरी 2024
13
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तेरा-मेरी कोख में,अंकुरित होना,मुझे!पूर्णता का,अहसास!कराना रहा,मेरे लिए।जैसे-जैसे-तेरा! अखुआना,बढ़ता गया,मुझमें-प्रस्फुटित, होता गया,वात्सल्यमयी,एक-जाना सा,पहचाना सा,तेरा अहसास।काश!गूंज सकी

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स्त्री

14 जनवरी 2024
6
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माना कि-तुम्हें!महारत!!हासिल है,स्त्री!तन का,भूगोल,पढ़ने में।लेकिन-तुम तो,स्त्री!!मन के,उबलते!इतिहास को,पढ़ने में,गबद्दू निकले।जानते हो,तुम्हारा!सारा इतवार,उसी की,गोद में,सोता रहा आज तक।© ओंकार न

3

कुसुर

16 जनवरी 2024
4
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मेरा-इतना ही,कुसुर है,कि, मैं-सिर उठाकर,चलता हूं।जब कि-उन्हें!पसंद हैं,सिर झुकाकर,चलने वाले,लोग!!© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &n

4

न तुम रुठी....

20 जनवरी 2024
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सुनो! बहुत दिन, हो गये, न तुम रुठी न ही,मैंने-मनाया तुमको।याद आते हैं,वो दिन!जो गुजारे थे,कभी-साथ-साथ,एक साथ रहकर।हालांकि-तुममें कोई,बदलाव तो नहीं,दिखता,हां,कुछ-अंतर सा जरुर,लगता है,तुम

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उड़ान

23 जनवरी 2024
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उन्होंने,सच ही, कहा था, मैंने-कोई मशवरा,नहीं किया,तेरी-उम्मीदों को,पंख! देने के लिए।क्योंकि-मुझे तो, जुनून था,तेरी!ऊंची उड़ान,देखने का,तेरे,अपने- आकाश में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी

6

बेटी हो

26 जनवरी 2024
1
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तुम्हें! अहसास है?जो शक्ति,तुममें है,वह-पूरी कायनात में,किसी में भी,नहीं है।इसीलिए,तुम-अपनी,आधी जिंदगी,छोड़कर,जब-दुसरी जगह,स्थापित होती हो,तब-वहीं की,होकर- रह जाती हो,और-अपना पूरा,जीवन!खपा द

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तेरा, इतना...

27 जनवरी 2024
1
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तुम्हें!भले ही,अहसास!न हो रहा हो,लेकिन- सच तो यही है,तेरी, चाहत!मुझमें, कम होने से,मैंने,तुम्हें- खोने जैसा,महसूस किया है।शायद-तुम्हें!पता नहीं,कि-खोया तो,तुम्हारा भी है,कभी तेरा,तुम्हे

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उम्मीद!

27 जनवरी 2024
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तेरी!इस हरकत से,मेरे-केवल एक,उम्मीद पर,पानी नहीं फिरा है।मेरी- एक नहीं, कई उम्मीदें,चकनाचूर हुई हैं।तुम्हेंपता भी है?उम्मीदें!कभी भी,अकेली नहीं होतीं।एक-उम्मीद में,अनेक उम्मीदें!निहित होती ह

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इसकी खबर

29 जनवरी 2024
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मेरी!हथेली पर,जो उम्मीदें!ऊगीं थीं, एक- कोमल!और-शीतल!!अहसास लिये;उसे-सहेजे रखा है,तेरी!खूशबुओं के साथ,सजाकर,करीने से,छिपा रखा है,अपनी डायरी के,पन्नों के बीच।तेरे-हरेक शब्द को,सुरक्षित रखा है

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नये! बर्ष का क्या?

30 जनवरी 2024
1
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नये!वर्ष का क्या?यह तो-आता रहता है।साल!बदलता रहता है,लेकिन!दिल तो, दिल होता है।यह-कहां बदलता है?ऐसे में-तेरी चाहत का,बदलना-संभव कहां है?मैं तो-यूं ही चाहता रहूंगा,तुम्हें! पहले,जैसे ही,मैं क

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संबंध!

1 फरवरी 2024
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दिल में,उमड़ता हुआ,तेरे लिए-रखा गया,सारा का सारा,शुभ चिंतन!धुंधला बना रहा,प्रदर्शनी के आगे।संबंधों के-आकर्षक बाजार में,प्रदर्शन,अब-खरीद फरोख्त का,टूल किट सा,जो,बन गया है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर

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जुल्फें!

3 फरवरी 2024
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जुल्फें!यूं न उछालो,हवाओं में,इस तरह।इनको-उछालने से,सरसराती,सुरसुरी लिये,ठंडी-ठंडी,हवाएं गुजरती हैं।जिससे-ठंडक की, हलचल! मच जाती है,मेरे पूरे,तन बदन में।इस फरवरी,महीना में, कहीं सर्दी&n

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रईश!

4 फरवरी 2024
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मेरी-मत पूछ!अब-कैसे हूं मैं?घूमता!रहता हूं,तेरे-न होने पर।मैं तो-फकीर बना,लेकिन-तेरी यादों ने,मुझे!रईश बना रखा है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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मैं!गधा हूं

7 फरवरी 2024
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------------------------मैं-गधा हूं,ऐसा भी नहीं,कि-सभी मुझे!मूर्ख समझते हैं।कुछ लोग!मेरे- श्रम को,आदर्श मान कर,मेरी,मूर्ति! अपनी दलान में,बनवा कर,माला भी पहनाते हैं।तो कुछ-मुझे!अपनी, कह

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प्रपोज्ड डे

9 फरवरी 2024
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मेरे-प्रपोजल के, साथ ही,तेरे होंठ!फैलते गये,और-धरती पर,खिलते गये,ढेर सारे फूल।तेज!हो चला, तब-बहाव!मन की नदी का।और-पत्थरों पर,बादल!टूटकर बरसने लगे।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप

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मार्ग

9 फरवरी 2024
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वो-इंसानों पर,मूतने!तथा,जानवरों के,मूत के,सेवन को; धर्म का मार्ग,मानने लगे हैं।और तो-और!जब से,उनके-संसर्ग में आये हैं,तब से-भगवान को भी,ले आने लगे हैं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखप

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चाकलेट डे

9 फरवरी 2024
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यूं तो,लेती गयी,बीन-बीन कर,अपने सभी सामान।फिर भी-सुरक्षित हैं,तमाम! पलों की यादें,मेरे मस्तिष्क के,तेरे डिजीलाकर में।उसी में से,आज!तेरी,पसन्द वाला,चाकलेट मिला,लगता है कि-फ़रवरी है।© ओंकार न

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यादें!

9 फरवरी 2024
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यूं तो,लेती गयी,बीन-बीन कर,अपने सभी सामान।फिर भी-सुरक्षित हैं,तमाम! पलों की यादें,मेरे मस्तिष्क के,तेरे डिजीलाकर में।उसी में से,आज!तेरी,पसन्द वाला,चाकलेट मिला,लगता है कि-फ़रवरी है।© ओंकार न

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उठ रहा धुंआ

10 फरवरी 2024
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यह!धुआं उठ रहा,किस-बस्ती से?आज!कहां धर्म की, फिर-आग लगी?मानवता!और-भाईचारा,किसकी सूली परआज चढ़ी?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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टेडीबियर

10 फरवरी 2024
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मेरी-शुभकामनाओं के,जवाब में,टेडीबियर,भेंज देना।तेरी-अनुपस्थिति में,वही मेरा-साथी रहेगा,इस-फ़रवरी में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

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हग डे

10 फरवरी 2024
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इस!फ़रवरी में,चलो,हग! कर लें,हम दोनों।किसे पता,कल-हम!रहें- न रहें।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चि

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प्रामिश डे

10 फरवरी 2024
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जब!हम दोनों,आप! से-तुम हुए थे।तब!पहली बार,तुमने!नाम लिया था।तब,कितनी- मिठास के साथ,मुझसे,प्रामिश किया था।इसी तरह,साथ-साथ,एक साथ,चलते रहने का।याद है ना?तब भी-यही-फ़रवरी ही थी। (प्रामि

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किस डे

10 फरवरी 2024
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उस दिन,जब मैं!अपनी-उंगलियों से,तेरी!पीठ पर,कविता! लिख रहा था,तब- हम दोनों का,प्रेम!एकांत!!तलाश रहा था,नजरें चुराये।सांसें!ज्वार भाटा बनीं,आपस में,टकरा रही थीं।नाकों में,समा गयी थी,मदमस्त!बसं

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वही तो, नहीं?

11 फरवरी 2024
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रिश्ते!मोहब्बत!!और,इंसानी, जज़्बात का,अंबार होता है,इश्क!!भावनाओं,और-प्रेम की,पेंचदगीयों के, बावजूद!चांद तारों की,खोज में,अंधेरों को चिरती,दीवानगी! निकल पड़ती है,ख्वाब! जागते रहते

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आंखें खोज रही

11 फरवरी 2024
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फिर वही- पसरा!सुनापन,अब-सब!खाली-खाली,लगता है।दुबक गयी,कोने में,खुशियां,संग तेरे-जाने के हठ में।आंखें!खोज रहीं तुमको,घर के-कण-कण में।यूं तो, तेरा!इठलाना,अब!होता है,किसी! और के लिए;फिर भी

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मित्र

12 फरवरी 2024
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चलो!कृष्ण और-कर्ण सा,मित्र बनें।ताकि-साथ! न रहने पर भी,जीत! पक्की कर दें,और-हार!पक्की! होने के बाद भी,साथ न छोड़ें।ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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अपना, ख्याल रखना

12 फरवरी 2024
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सुनो!अपना, ख्याल रखना,तुम!भले ही- तेरा हाथ,भरोसेमंद के, हाथ में है।तेरी!सलामती की,चिंता!मुझे बनी रहेगी।क्योंकि-मैं नहीं हूं,अब!तेरे पास।शायद!यही-अन्तर है,मेरे और उनमें।© ओंकार नाथ त्रिप

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कसमें

13 फरवरी 2024
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तोड़ दो,वो कसमें सारी,जो खायी थी,तुमने,मेरा,साथ-निभाने के लिए।क्या,फर्क पड़ता है,कभी कभी,कुछ!कसमों के,टूट जाने से।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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अकेला!

13 फरवरी 2024
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मैं!अकेला ही,ठीक हूं,बीना साथी के।सुना है-साथी जब,साथ निभाना,छोड़ देता है;तब,चेहरे पर,मुस्कान नहीं,आंखों में-आंसू होते हैं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

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शूल

16 फरवरी 2024
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जिनकी,खातिर, तुमने-फूल!उगाया था बाहों में;वही-बिछाये हैं,शूल!! अब,देखो-तेरी राहों में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

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तेरे..न होने...पर

16 फरवरी 2024
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तेरा!मेरे पास,न होना,न होनातुमसे,मेरी बात।होता है, जैसे-खुद ही,मेरा न होना।तुम्हें-अगर,विश्वास नहीं,तब आकर, देख ले-किसी दिन।तुम्हें,मैं! खोया हुआ ही,मिलूंगा!उसी कमरे में।तेरे, बगैर!मेरी

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तुम

16 फरवरी 2024
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मुझे- ‌‌ इंतजार था, तेरा! कि- &

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स्मृति

17 फरवरी 2024
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स्मृति! एक दिन, तुम! सपना!! &n

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आहट!

17 फरवरी 2024
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मैं!यूं ही,खटखटाता रहा,दरवाजा! तेरे!मन का। लेकिन- तुमसे!मुलाकात की,कौन कहे,मुझे,तो-तेरी!आहट तक,नहीं लगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

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दिल!

17 फरवरी 2024
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मैं!यूं ही,खटखटाता रहा,दरवाजा! तेरे!मन का। लेकिन- तुमसे!मुलाकात की,कौन कहे,मुझे,तो-तेरी!आहट तक,नहीं लगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

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दिल!

17 फरवरी 2024
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मैं!यूं ही,खटखटाता रहा,दरवाजा! तेरे!मन का। लेकिन- तुमसे!मुलाकात की,कौन कहे,मुझे,तो-तेरी!आहट तक,नहीं लगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

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खुशियां

17 फरवरी 2024
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अगर-तेरी खुशियां,मुझसे!दूर जाने पर ही,तुमसे-मिलती हैं,तब- तूं जा,मैं अपने, आंसुओ को,पलकों के अंदरबंद कर लूंगा।कौन?क्या कहेगा?इस उलझन में,मत पड़।ज़माने की,चिंता!मत कर,उसे-कोई कहानी, सुना

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सुकून!

18 फरवरी 2024
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तुमसे,मिलने के ,आज!बहुत दिनों बाद,सुकून!मिला है।मुझे!याद रखती हो,या नहीं, यह नहीं पता,लेकिन-इतना तो है,कि-मैं तेरी!वह याद हूं,जिसे तुम-अक्सर!भूल जाया करती हो।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपु

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बेशक!

18 फरवरी 2024
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तुम!भूलना,चाहती हो,मुझे!तब,बेशक!भूल जाना;लेकिन-इससे पहले,बीते! लम्हों की, धड़कनें!सुनने के बाद।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

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झुकना!

18 फरवरी 2024
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झुकना!मेरी-कमजोरी नहीं,यह-मेरा शौक है!रिश्तों को, निभाने का।अगला भी,ऐसा ही करेगा,यह- तय नहीं है।क्योंकि-जीवन में,मृत्यु के अलावा,कुछ भी,तय नहीं होता।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर

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आस!

18 फरवरी 2024
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मुझे! ऐतराज़ नहीं, तेरी! मशगूलियत से।लेकिन-इतनी आस तो,जरुर!बधी रहती है,कि-शायद! कहीं न कहीं- अब भी हूं!मैं, राख में-आग की तरह।और-तुम आकर,मुझे फिर-सुलगा जाओगी।© ओंकार नाथ त्रिप

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अमीरी!

18 फरवरी 2024
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मैं तो-निभाता गया,रिश्तों को-गरीब होकर भी।लेकिन-तुमने अमीरी में,उसकी-कद्र ना की।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्

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दीवानगी

19 फरवरी 2024
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मैंने!तुम्हें ढूढ़ने में,दिल,और-आंखों!दोनों का, इस्तेमाल किया।लेकिन-तुम!कहीं भी,मुझे दिखी नहीं।तेरी-मासुमियत ही,दीवानगी की,हद रही।और तुम!दिखावे की,दीवानी!बनी घूमती रही।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक न

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उफ़!

19 फरवरी 2024
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एक-तूं है!जो-मुझसे,दूर होकर,भी-उफ़!नहीं करती।दुसरा!मैं हूं,जो-बिछड़कर,तुमसे-मिलता हूं,सबसे!तुम्हें!ढूंढ़ते-ढूंढते।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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आवाज आयी

19 फरवरी 2024
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जैसे ही,तुम्हें!याद किया,मैंने।चारों तरफ,तेरी-खुशबू की,महक आयी।जब-लिखने बैठा,इन- पंक्तियों को।तब-हर शब्द से,मुझे!महकती हुई,तुम्हारी!आवाज आयी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।&n

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खुशियों का आकाश

19 फरवरी 2024
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मैं!कभी भी,नहीं-बांधना चाहता,तुम्हें!प्रेम की बेड़ियों में।मैं तो-अपने प्रेम का,पंख देकर,तुम्हें! इस जहां की,सारी!खुशियों का,आकाश,देना चाहा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।&nb

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मैं भी

21 फरवरी 2024
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जैसे-जैसे-मुझे!भुलाती जाओगीतुम!धीरे-धीरे,सब कुछ!भूलता जाऊंगा,मैं भी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभा

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खुबसूरत

21 फरवरी 2024
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वक्त!पड़ने पर,अगर-वक्त दे देती तुम।खुदा कसम!और-खूबसूरत!हो जाती तुम।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभार

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अनुत्तीर्ण

21 फरवरी 2024
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कुछ!पाने की,क्षमता!कुछ-देने की,योग्यता पर,निर्भर!करती है।फिर!मैं अनुत्तीर्ण,कैसे-हो गया?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

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मां

21 फरवरी 2024
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एक!पीड़ा लिख रहा,आकाश!और-कराह रही, धरती।पत्ते!छोड़ रहे,पेड़ का साथ,पतझड़ में।प्रकृति का,वैधव्य!बिन श्रृंगार केस्त्री सी।मां!तड़प रही,पिता!!आकाश बन गये।दूर!दृष्टि के,ओझल होने तक,दोनों !मिलने को आत

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आनंद!

21 फरवरी 2024
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मेरी-कुछ न पूछ!मैं तो-खुद को,खर्च! कर चुका हूं,तेरी ही-खैरियत की खातिर।लेकिन!तेरे साथ का,आनंद!बहुत कीमती था। जिसे-अब,वह पाया,जिसके पास-कुछ भी न था।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरख

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