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नन्हीं परी

30 जनवरी 2025

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हां
नयी थी 
वो भोर मेरे लिए 
जब पहली बार 
तुम्हें देखा
अपनी आंखों में समेटे।
लगा 
जैसे रोशनी 
छू ली हो मुझे
तेरे नन्हें हाथों की
छुअन से।
हम दोनों 
अपलक,
निहारती रहीं
एक दुसरे को
जैसे मां बेटी को 
मिल गया हो वरदान।
तेरी हंसी से
खिल उठा मेरा जहां 
तेरी किलकारी 
चांदनी सी उजास।
रुह में
रच बस गयी
ममता की सुगंध
मुझे मां का दर्जा मिलते ही।
तेरा आना
बहारों का गीत बन कर
मेरी बगिया में फैला गया
अनमोल उजाला।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।article-image
                   
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रचनाएँ
उदास वीरानियां
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उदास वीरानियां --------------------- © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर शब्द इन पर आनलाइन प्रकाशित होने वाली यह मेरी सोलहवीं कविता संग्रह है। आनलाइन अब तक प्रकाशित होने वाली यह अठारहवीं किताब है।इस संग्रह में मानव हृदय में तरह तरह के आने वाले हर्ष विषाद,सुख दुख,संयोग वियोग, शांति अशांति आदि अनेक विषयों पर संवेदी शब्दों का कोलाज तैयार कर एक फैंटेसी बनाने की एक कोशिश की गयी है। भावनाओं की गहराई तक उतरने वाले शब्दों से संवेदनाओं का एक इन्द्रधनुष सा बनाने एक प्रयास है उदास वीरानियां। आशा है आपको पसंद आयेगी। © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर --------------------------------------------------
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आदत!

26 जनवरी 2025
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ऐसा नहीं, कि मैं आदतबनाना चाहता थातुम्हें! तुम तो-खुद ब खुदमेरी आदत मेंरच बस गयी।सुनते हैं किबढ़ती उम्रखत्म कर देती हैलगाव और उम्मीदें।लेकिन मेरे लिए तोयह बढ़ता ही जा रहातुम्हें न पाकर

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अहंकार

27 जनवरी 2025
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अहंकार! सागर जैसाजीवन एक बूंद साऐसे मेंदोनों का क्या मेल?भले हीतुम निकाल दोकुछ तारीखें काल के कैलेंडर सेलेकिन नहीं बदल सकोगेनियति केमजमून,जो मंजूर है।मत बनलूटेरा अमन का तूंतारीख के

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हवस

27 जनवरी 2025
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तुम्हें!शोहरत की हवस नेकुछ ऐसानशीला बना दिया कि सोहबत का तुम पर असर होता ही नहीं।नज़रें!बिक जाती रहीं अक्सर जब भीउठायीं प्रश्न तेरे नजरिये पर।तेरी नीयतबोल उठती रही स्पर्श से हीभाषा के भ

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मेरी जीवन यात्रा

27 जनवरी 2025
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क्या? तुम्हें भीयाद आ रही हैंकिलकारी से होकरजीवन के तमाम चौराहों तकगुजरतीमेरे संघर्ष कीअंतहीन! यात्राएं ।अदम्य साहस सेलबरेज! कैसी उमंगों भरी थी,मेरी जीवन यात्रा ।आज!जब तुम आये हुए हो,थके हुए

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अंधभक्ति

28 जनवरी 2025
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जबकहार हीलुटने लगे होडोली की दुलहन।तबऐसे मेंभला भरोसाकिस पर करे यह मन।औकात उनकी कत्तई नहीं थी इतनी किआंख दिखायें हमें बार-बार।वो तो मेरादीवानापन था जो सौंप दी हमनेअपने अधिकारों की चाभी।

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बेटी!

30 जनवरी 2025
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जबएक नन्हीं कली सी थी तुम मेरी गोंद मेंतबतेरे पासपंख नहीं थेजैसे अब हैं।आजपहली बार भेज रहा हूं तुम्हें दूर अकेले पंख पसार।तुमरहना चौकन्ना संभले हर पलखुद को थामे हुए।नहीं हूंपा

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नन्हीं परी

30 जनवरी 2025
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हांनयी थी वो भोर मेरे लिए जब पहली बार तुम्हें देखाअपनी आंखों में समेटे।लगा जैसे रोशनी छू ली हो मुझेतेरे नन्हें हाथों कीछुअन से।हम दोनों अपलक,निहारती रहींएक दुसरे कोजैसे म

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