shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

बस, इतना सा..

ओंकार नाथ त्रिपाठी

52 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
35 पाठक
10 जनवरी 2024 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

बस, इतना सा ******** ओंकार नाथ त्रिपाठी -------------------------- "बस,इतना सा"यह मेरी "शब्द इन" पर प्रकाशित होने वाली आठवीं नई कविता संग्रह है।आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई मेरी रचनाएं मानवीय सोच विचार को उद्धृत करती हैं।मेरी रचनाओं में बात के लिए माध्यम मेरी मानस नायिका होती है और उसी से की गयी बतकही को शब्द पुष्पों से सजाकर एक चरित्र को उकेरने का कार्य करती दिखेंगी मेरी रचनाएं। मेरी इन रचनाओं में अनेक साहित्यिक कमियां हैं सकती हैं लेकिन इन रचनाओं में मेरे द्वारा उकेरे गये भावों का अगर पाठकगण रेखांकित करते हैं तब मुझे लगेगा कि मेरा प्रयास सफल है।मुझे"बस, इतना सा"में अपनी रचनाओं पर आप पाठक गण का सुझाव तथा आलोचना सादर स्वीकार्य होगा। आशा है कि आप पाठक गण मुझपर अपना स्नेह बनाए रखेंगे। -------------------------------------------------------------------- 

bas

0.0(1)


बहुत खूबसूरत सृजन

पुस्तक के भाग

1

तुम..

17 अगस्त 2023
5
1
1

समझ!नहीं पा रहा हूं,तूं मुझमें-समा गयी हो,और-,मैं तुम्हें!ढूंढ़ रहा हूं।या?तुम-खो गयी हो,कहीं?मै तुम में-बसा हुआ हूं।©ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर । &

2

करीब

18 अगस्त 2023
3
2
4

इतने करीब,मत!आया कर तूं,क्योंकि-नजदीकियां,बढ़ने के- साथ-साथ ही,तुमसे!बिछड़ने का डर,सताता रहता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र:साभार)

3

दास्तान

19 अगस्त 2023
2
1
2

हमारी-दोस्ती की,दास्तान तो-व्यवहार की,कहानी है।यह!किसी कलम और-स्याही से,थोड़े लिखी गयी है।जिसे!किसी के द्वारा,मिटाने, अथवा-फ़ाड़ दिये जाने का डर हो।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।&nbsp

4

एक दिन

22 अगस्त 2023
3
1
1

एक दिन-पायल को,चीटकाती हुई,नथुनी बोली-तुम तो-हरदम पांवों से! चिपकी रहती है,मैं तो-उसके लबों को,चूमते रहती हूं ।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। &n

5

सहगामी बनकर

24 अगस्त 2023
2
1
4

तुम!अबला नहीं हो,कौन-कहता है अबला, तुम्हें?तुम तो-थकान का मरहम,और-ऊब की दिलासा हो।सहारा हो- टुटे दिलों की।क्योंकि-स्त्री!बचाती है,हर पुरुष को,उसकी थकान,ऊब, और-उसके टूट जाने पर,सहगामी बनकर।© ओंकार

6

जब गुजरती हो

28 अगस्त 2023
1
1
2

तुम्हें-पता हो,या न हो,लेकिन-जब-गुजरती हो,हवा बनकर,पास से मेरे,तब, तेरी-खुशबू से ही,मैं तुम्हें-पहचान लेता हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।

7

अहंकार

29 अगस्त 2023
1
1
1

अहंकार की!पहाड़ी के,चोटी पर,चढ़ने के बाद,जब,वह-अपनी!उपलब्धियों को-बताने के लिए,चिल्ला चिल्ला कर,कहने लगा,तब-जमीन पर,खड़े लोगों को,उसकी आवाजसुनाई ही नहीं दे रही।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर ग

8

राखी

31 अगस्त 2023
1
1
1

मैं!भले ही,न पहुंच सका,मगर-तेरी राखियां,पहुंचती रहीं।तेरी आंखें-रहती रहीं,उदास!इंतजार!!करते करते, मेरा!लेकिन-मेरी कलाई,आज भी-सूनी नहीं रही।तूं नहीं है,अब!फिर भी,तेरी राखी!पहुंच गयी है,मेरे पास।मे

9

याद

2 सितम्बर 2023
1
1
1

तुम-मुझे याद,करो-या‌ न करो,लेकिन-जब,उदास होगी,कभी!याद आऊंगा तुम्हें।और-अपने हर जश्न में,तुम!उदास हो उठोगी,मुझे-याद कर कर के।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर &n

10

जो पल....

7 सितम्बर 2023
1
1
2

जो- पल!गुजरे थे,कभी!साथ-साथ,उनकी-यादें!संभाले हुए हूं,आज भी,अपने पास।अभी-मैं हूं!तुम भी हो,यादें हैं।जानती हो?ये यादें!आयेंगी, लेकिन-वापस! नहीं जायेगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशार

11

तुम नारी हो

12 सितम्बर 2023
1
1
1

हे!नर की,सहचरी,उसके-धर्म की,रक्षक!तुम-गृह लक्ष्मी,और-देवत्व तक,पहुंचाने वाली,एक-साधिका भी,तुम ही हो,क्योंकि-सृष्टि की,सबसे सुन्दर-कृति!नारी हो तुम।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।

12

हे पुरुष!

18 सितम्बर 2023
1
1
1

हे पुरुष!जब-तुम रोते हो,तब-पूरी की पूरी,सृष्टि!यह देखकर,चौंक जाती है।तेरा रोना,धैर्य के!सारे- बांधों का,हताश होकर,टूट जाना होता है।आकाश का,झुक जाना होता है।जब- तुम रोते हो,समुद्र का हाहाकार,

13

आज!

19 सितम्बर 2023
1
1
2

फोन के,स्क्रीन पर,घुंघराले!लटों के बीच-झांकता हुआ,तेरा-सूरज सा,चेहरा!खुबसूरती समेटे,उसी, जैसा नूर!वही गुरुर!!और-वैसा ही, सुरुर लिये,दमकता हुआ,पास में तो है,लेकिन-तुम!सूरज सा ही,दूर!बहुत दूर हो,आज

14

अदा!

13 अक्टूबर 2023
1
1
1

मैं-जिम्मेदारियां-पूरी करते करते,अपनी-ख्वाहिशों को,तिलांजली देता रहा।तभी तो-मेरी!इस अदा पर,चाहने वाले तो-बहुत मिले,लेकिन-मिटने वालों के,लाला ही पड़े रहे।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।

15

जिंदगी की वापसी

20 अक्टूबर 2023
1
1
1

सुरमई हुई,शाम!ढ़ल रही है,धीरे-धीरे।भीन सहरे से-जगी हुई जिंदगी!थकी हारी-अंततः!मुड़ चुकी है,वापसी की ओर।दुपहरी की धूप!और-शाम की खुशनुमा,नमी पाकर-सिहर उठी है,जिंदगी।बाट जोहती-खुशियां!मुस्कुरा रही हैं,मुझ

16

रावण!

24 अक्टूबर 2023
1
1
1

अगर!रावण का ही,किरदार!!पसंद है,तब-राम के समय का,रावण बनो।जो कि-शिव की! आराधना में,राम के-उपरेहित भी बने!और-पूजा की,पूर्णता के लिए,सीता को भी-साथ ले आये।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर।&nbs

17

दिल!

25 अक्टूबर 2023
1
1
1

जैसे-जैसे-जिंदगी की, शाम!ढलती गई,वैसे-वैसे-महफ़िल!सजने की,आस! लिये हुए,बेचारा-दिल! जवान- होता गया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।

18

कद!

27 अक्टूबर 2023
1
0
0

अगर-बढ़ाना ही है,तब-अपना कद!कुछ-इस कदर बढ़ायें,जिससे कि-हम, हमारे बीच की-वैमनस्यता की,दीवार से- ऊंचा दिखें।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। &

19

उदात्त

1 नवम्बर 2023
1
1
1

धीरे-धीरे,मेरी-कविताओं की,लाईनें!होने लगी हैं,अब उदात्त!जैसे-जैसे,ढ़लने लगी है शाम।अंधियारा-बढ़ने लगेगा,अब-अमावस की ओर,और-एक खुशनुमा,स्वप्न!बस जायेगा,मेरी आंखों को,गहरी नींद में-सुला कर।जहां-तुम होगी,

20

घर

3 नवम्बर 2023
0
0
0

मैं-बसाता रहा,घर उनका-जो-अपना सा लगे,मुझको।ये बात,और है कि-मेरे बेघर होने का-उन्हें!कोई भी-फर्क नहीं पड़ता।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर उप्र।

21

ठहराव!

8 नवम्बर 2023
1
1
2

अब तो-न मेरे,देर! हो जाने पर,तेरा-फोन आता है,कि-कहां हैं?और-न ही मैं!तेरे-न होने पर,यह-पूछता ही हूं,कि-कब तक,आ रही हो?शायद!यह मेरी,एक!निश्चिंतता सी,हो गयी हैअब,तेरे लिए। और,तुम-बे परवाह सी-ह

22

कमियां

9 नवम्बर 2023
0
0
0

लोग-ढूंढते रहे,कमियां! नीत,मेरे में-फिर भी,मैं हरपल-निभाता रहा,कर्तव्य अपना।इसके लिए,मुझे!कभी किसी-एलार्म कीजरुरत!नहीं पड़ी।©ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।

23

वो!

10 नवम्बर 2023
0
0
0

वो-जुबान की,लंम्बाई से,फेक!फेंककर,चलाते रहे,देश!हमें-अपने, सीने के,चौड़ाई की,नाप!बता-बता कर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र:स

24

अकेलापन

10 नवम्बर 2023
1
0
0

मेरी-सारी उम्र,गुज़री! तेरी -ख्यालों में।घाव!सहलाते हुए,दौड़ता रहा, हर बुलावे पर।यह-सोचकर,कि,इस बार-बदल गयी होगी।एक तूं है,जो,उम्र भर-मेरी!परवाह ही न की।कभी-अकेला तो,तुम भी-होती होगी?सोचा है

25

बेचारा वह!

11 नवम्बर 2023
0
0
0

उसकी-ऊंचाईयों तक,उड़ने की,जिद ने;उसको,आखिर -कहीं का,नहीं छोड़ा।न वह-ऊंचाई पा सका,और- न ही जमीन का,हो सका,बेचारा वह!-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। &nbs

26

उत्स रहा!

12 नवम्बर 2023
0
0
0

मैं तो-हरपल! तुम्हें- हाजिर मिलूंगा,अब भी-जब-जब,तेरी ईच्छाएं-मुझे ढूंढेंगी,अपने-आस-पास।जैसे-उत्स रहा,कभी,पहलेतेरी आकांक्षाओं का।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। &

27

उम्र का तराजू

13 नवम्बर 2023
1
1
2

उम्र के-तराजू में,तुलती रहीं,फ़र्ज़!और- ख्वाहिशें!!दोनों को,बराबर-करने में, गुजर गयी,जिंदगी!लेकिन-पलड़ा, कभी भी,बराबर-न हो सका।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। &nbs

28

वापसी

14 नवम्बर 2023
0
0
0

कई बार,तुमसे-दूर जाने के,बाद भी,मैं,वापस-लौट आया हूं।जबकि-लौटकर आना,आसान-नहीं होता है।मन!थक कर,बेसुध हो,हार जाता है।मैं,बिना-विकल्प के,लौटता रहा-तुम्हारी तरफ।यह-जानते हुए भी,कि, वापसी का,अब राह नहीं।&

29

अनेक प्रश्न

18 नवम्बर 2023
0
0
0

एक समय,वह भी होगा,जब तेरी-इच्छा भी होगी,तेरे पास-समय ही समय होगा,लेकिन-नहीं होगा तेरे पास,तो केवल-मेरा कोई संपर्क सूत्र ।थिरकती अंगुलियां, फोन के स्क्रीन पर,ढूंढ़ रही होंगी,मेमोरी गैलरी में मेरा

30

खाली होती हो

20 नवम्बर 2023
0
0
0

जब-खाली होती हो,तुम!तब न तो,अपना- श्रृंगार करती हो,और- न ही तुम!अपने बेतरतीब पड़े,कपड़ों को ही,तह करके-सहेजती हो।तुम तो-अपने बिखरे,रिश्तों को सिलने,और-मुट्ठी से झर रही,रेत के मानिंद!मायके की

31

दस्तूर!

21 नवम्बर 2023
0
0
0

आखिर-कब तक? बेख़ौफ़ रहेंगे,इससे कि-कब!सांझ हुई?कब!रात ढ़ली?चलो चलें,मैं!मैं न रहूं,तुम!तुम न रहो,न हों,मिलने को- हम मजबूर, बन जायें,ईश्क का दस्तूर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर

32

याद करके

22 नवम्बर 2023
0
0
0

तुम्हें! याद कर करके,थक हार ,जाने के बाद,भेंज देता हूं,मैसेज!तुम्हारे-ह्वाट्सएप पर।देखता हूं,बार-बार,लेकिन-नहीं पढ़ती हो,उसे तुम!इस बार भी।मैं हताश!मिटाता,लिखता रहता हूंतुम्हें बार बार,इससे!बेखबर

33

सिर्फ यादें!

26 नवम्बर 2023
0
0
0

ऐसे ही-आहिस्ता-आहिस्ता,भूलता जाता है,सब कुछ। जैसे-सुबह के बाद,ढलती जाती है,शाम!बीतती जाती है,रात!पल,दिन,महिने, और-बरस!सब, गुजरते जाते हैं।पत्तियां-फूल और फल,सर्द,गर्म और-बरसात के मौसम।एक-एक करके,

34

तेरी यादें

27 नवम्बर 2023
0
0
0

तेरी यादों को-स्याह रात में भी,अंधेरे की-चादर में लपेटे,हरपल!मैंने दिल में,छिपा रखी है।ये यादें!काली घनेरी, रात की आड़ से,न जाने,कबसे-कर रही हैं अनवरत,इंतजार!भोर के-सुनहरी किरणों की।तुम्हें!

35

चुप्पी!

29 नवम्बर 2023
0
0
0

जब,तुम!चुप्पी-साध लेती हो,तब,मैं!भांप लेता हूं,तेरी,नाराज़गी को।हालांकि-तेरी!न तो कोई,शिकवा होती है,और न ही-कोई शिकायत।तेरा!कुछ भी, न कहना-कह देता है,बहुत कुछ,मुझसे।कभी-कभी,जो नहीं, समझता है

36

मुस्कान!

29 नवम्बर 2023
0
0
0

चलो-गुब्बारा,खरीदा जाये,और,उसे-बेंच रही बच्ची के,चेहरे पर-एक मुस्कान,लाया जाय।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (

37

ठांव!

4 दिसम्बर 2023
1
0
2

समय! परिवर्तनशील है।आज धूप- तो, कल छांव है।।उथल पुथल ही,है जिंदगी।कहीं न कहींइसका भी ठांव है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

38

मोह!

6 दिसम्बर 2023
0
0
0

तब!मोह अधिक था,तभी तो-बुराई नहीं दिखी।अब!घृणा हो गयीहै,इसीलिए-अच्छाई नहीं दिख रही।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चि

39

कोई, भूल जाता है

7 दिसम्बर 2023
1
1
1

भूलने,भूलाने में,फर्क!बस,इतना होता है,कोई-भूल जाता है,बेतहाशा!दर्द देकर,और- किसी की जान,निकल जाती है,भूलने के-अहसास से ही।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

40

एक दिन

9 दिसम्बर 2023
1
0
1

एक दिन-पत्थरों से,इतराते हुए,झरने ने कहा-तुम तो!मेरी राहों में,बाधा बने,पड़े रहते हो।इसपर-पत्थरों ने,कहा-मत भूलो!तेरी-मधुर,संगीतमय,आवाज!मेरी ही,देन है।जब तुम-बलखाती हुई,गुजरती हो,तब तेरे-पांवों की,पाय

41

दूर रह कर

11 दिसम्बर 2023
0
0
0

मैं,तो!सुनता रहा,तेरी-हर आवाज।मैंने-कभी भी,रोका नहीं,कहीं पर भी तुम्हें।जो सुना-उसे,अंगीकार किया,न तो मैंने,ठुकराया!न दबाया!!और न ही- समझाया।बल्कि!तेरे,हर जज़्बात को,सहेजा!अपने दर्द को,एक कोने मे

42

तुम भी

12 दिसम्बर 2023
0
0
0

क्यों नहीं? तुम भी,अपनी-एक दिन!आत्मकथा! लिखती।ताकि-सामने,आ सकतीं,गंदी गलियों केअंधेरों में,चमकने वाले,हर वो चेहरे,जो-सम्भ्रांत!बनते रहे,तुमको- समाज के,उजाले में,तवायफ!कह कर।© ओंकार नाथ

43

श्रृंगार कहें हम

16 दिसम्बर 2023
0
0
0

क्या,तुमने कभी-ध्यान दिया है?बहता हुआ,पानी!वापस!!नहीं लौटता, और न ही-बिछड़ा दोस्त ही,दोबारा!मिल पाया है,कभी।ये पानी और-दोस्त!जब तक-मैंने!! थामा उनको,तब तक ही उसने माना हैमुझको।मुझे!पता

44

नाराज़गी भी...

23 दिसम्बर 2023
0
0
0

फिर-याद आने लगे हैं,वो पुराने-तारीख।जब-मैं था,तुम थी,हम दोनों खुश थे।तभी तो,जमाना!नाराज था,हम दोनों से।आज-मैं हूं,तुम नहीं हो,हम खुश नहीं हैं।यह देखो-किसी की,नाराज़गी भी,अब नहीं है।© ओंकार नाथ त्रिपाठ

45

घड़ी

23 दिसम्बर 2023
0
0
0

एक दिन,मैं-घड़ी से पूछा,तुम-चलते-चलते,थकती नहीं क्या?घड़ी!जवाब दी-चलते रहना ही,अस्तित्व है मेरा।जिस दिन-मैं रुकी,उसी दिन-समाप्त हो जाऊंगी।क्योंकि-सतत!गतिशीलता ही,जीवंतता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक न

46

वही

24 दिसम्बर 2023
0
0
0

वही,चौराहा, और-गलियां भी,वही।पगडंडी!भी है,और-बागीचा भी।पर,चलने की,अब,राह-नई।आचार!वही-पर विचारनये हैं।चेहरे वही,नाते!और,रिश्ते भी- वही।पर- पहले वाले,वह!दिन नहीं हैं।मान वही,और-सम्मान भी,वही।ल

47

सोच!

26 दिसम्बर 2023
0
0
0

चलो न!सोच के-अंधेरे को,मिटाया जाये;जिससे,कि-रात का,अंधेरा!डराने वाला,होने के बजाय,खुशनुमा!लगने लग जाये।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

48

ऐतराज़, मत करना

26 दिसम्बर 2023
0
0
0

जब-तुमने,ठान ही,ली है,समाज को,जला देने को।तब!उठ रहे,धुंआ पर,बहस!क्यों- करते हो?याद रखना,राख में-जरा सी भी,बची हुई,आग!काफी होती,समय-पाने पर,धधक!!उठने को।अगर-कभी,ऐसा हो,तब-ऐतराज़!मत करना।© ओंकार ना

49

वह

27 दिसम्बर 2023
0
0
0

हमें-गिराने की,कोशिशों में,हद तक-गिरता गया,वह।हम तो,गिरे नहीं,मगर-सरेराह!लड़खड़ाता गया,वह।भूलता गया,वह!कर कर केवादे!हम उसके, वादों को,याद करते रहे,आज तक।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोर

50

रहनुमा

27 दिसम्बर 2023
0
0
0

तुम्हें!देखकर,हम-मुस्कुराते रहे।यह-सोचकर,कि-चलो-रहनुमा!मिल गया,हमको।नहीं,पता था,दिन!तबाही के,आ गये हैं,अब-हमारे।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

51

मानक

30 दिसम्बर 2023
0
0
0

पत्नी-और, मासूका,बनने से,भले ही-रोक दिया,तुमको,तेरा-काला रंग।लेकिन-तुमने तो,मानक!स्थापित किया है,प्रेम का-मजनूं की,कभी-प्रेमिका बनकर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

52

तुम

10 जनवरी 2024
0
0
0

घर की,बालकनी में,अंधेरों के,साये में,सूने, कमरों में,जीना के,दरवाजे पर,हर जगह,दिखती रहती हो,तुम!जब मैं,घर!वापस आता हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए