27 जनवरी 2025
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शब्दों को अर्थपूर्ण ढंग से सहेजने की आदत।D
ऐसा नहीं, कि मैं आदतबनाना चाहता थातुम्हें! तुम तो-खुद ब खुदमेरी आदत मेंरच बस गयी।सुनते हैं किबढ़ती उम्रखत्म कर देती हैलगाव और उम्मीदें।लेकिन मेरे लिए तोयह बढ़ता ही जा रहातुम्हें न पाकर
अहंकार! सागर जैसाजीवन एक बूंद साऐसे मेंदोनों का क्या मेल?भले हीतुम निकाल दोकुछ तारीखें काल के कैलेंडर सेलेकिन नहीं बदल सकोगेनियति केमजमून,जो मंजूर है।मत बनलूटेरा अमन का तूंतारीख के
तुम्हें!शोहरत की हवस नेकुछ ऐसानशीला बना दिया कि सोहबत का तुम पर असर होता ही नहीं।नज़रें!बिक जाती रहीं अक्सर जब भीउठायीं प्रश्न तेरे नजरिये पर।तेरी नीयतबोल उठती रही स्पर्श से हीभाषा के भ
क्या? तुम्हें भीयाद आ रही हैंकिलकारी से होकरजीवन के तमाम चौराहों तकगुजरतीमेरे संघर्ष कीअंतहीन! यात्राएं ।अदम्य साहस सेलबरेज! कैसी उमंगों भरी थी,मेरी जीवन यात्रा ।आज!जब तुम आये हुए हो,थके हुए
जबकहार हीलुटने लगे होडोली की दुलहन।तबऐसे मेंभला भरोसाकिस पर करे यह मन।औकात उनकी कत्तई नहीं थी इतनी किआंख दिखायें हमें बार-बार।वो तो मेरादीवानापन था जो सौंप दी हमनेअपने अधिकारों की चाभी।